श्री सालासर बालाजी मंदिर 2024 | श्री सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास | Salasar Balaji Mandir Travel Guide in Hindi | Shree Salasar Balaji Temple 2024 | Salasar Balaji Temple History in Hindi | Salasar Balaji in Hindi | Aarti Timings | History | Entry Fees | Best Time For Salasar Balaji Mandir | Things To Do in Salasar Balaji Mandir
श्री सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास – Salasar Balaji History in Hindi
राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 170 किलोमीटर दूर स्थित श्री सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के सबसे बड़े धार्मिक तीर्थ स्थल में एक माना जाता है। सालासर बालाजी मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की यहाँ पर हनुमान जयंती के समय लगने वाले लक्खी मेले में सालासर बालाजी के दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु सालासर आते है। सालासर बालाजी मंदिर निर्माण की कहानी संत मोहनदास जी और सालासर से 31 किलोमीटर दूर स्थित आसोटा गाँव में जमीन से प्रकट हुई हनुमानजी की प्राचीन मूर्ति से जुड़ी हुई है।
सालासर बालाजी मंदिर निर्माण से जुड़ी हुई कथा के अनुसार सीकर से 38 किलोमीटर दूर स्थित रुल्याणी गाँव के निवासी पंडित लछीरामजी पाटोदिया के सबसे छोटे बेटे मोहनदास जी बचपन से ही बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। मोहनदास जी के जन्म के बाद ही ज्योतिष ने उनकी जन्म कुंडली देखकर यह भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक आगे जा कर एक बहुत बड़ा संत बनेगा और पूरे विश्व मे प्रसिद्धि प्राप्त करेगा। मोहनदास जी का अपनी बहन कान्ही का साथ बड़ा स्नेह था।
कान्ही का विवाह उस समय सालासर में हुआ था, विवाह के कुछ समय के बाद कान्ही के एक पुत्र का जन्म होता है। पुत्र के जन्म के कुछ समय पश्चात दुर्भाग्यवश कान्ही के पति के देहांत हो जाता है। अपनी बहन के विधवा होने के पश्चात मोहनदासजी अपने भांजे और बहन को सहारा देने के हिसाब से सालासर आकर रहने लगे जाते है। उनके द्वारा किये गए कठिन परिश्रम की वजह से खेतों में बहुत अच्छी फसल होने लगती है और उन सब के अभाव के दिन दूर होने लग जाते है। समय के साथ-साथ मोहनदास जी का भांजा उदय बड़ा होता है और अपने मामा को खेतीबाड़ी में हाथ बंटाना शुरू कर देता है।
एक दिन मामा और भांजा अपने खेत मे काम कर रहे थे तब किसी ने मोहनदास जी के हाथ से गंडासा छीनकर दूर फेंक दिया। मोहनदास जी उस गंडासे को उठा कर वापस अपना काम करने लग जाते है। लेकिन कोई अदृश्य शक्ति उनके हाथ से गंडासे को छीन कर वापस फेंक देती है और मोहनदास जी वापस उस गंडासे को उठा कर अपना काम शुरू कर देते है। मोहनदास जी का भांजा उदय दूर से इस घटनाक्रम को कई देर से देख रहा होता है। उदय अपने मामा जी के पास जा कर उन्हें कुछ समय विश्राम करने की सलाह देता है। ऐसा करने पर मोहनदास जी अपने भांजे उदय को बताते है कि कोई अदृश्य शक्ति उनके हाथ से गंडासे को छीन कर दूर फेंक रही है।
शाम को खेत से घर लौटने के पश्चात उदय अपनी माँ कान्ही से खेत मे हुए घटनाक्रम के बारे में बताता है। इस पर कान्ही यह विचार करती है कि उसे अब अपने भाई का विवाह कर देना चाहिए। अपने विवाह की बात जब मोहनदास जी को पता चलती है तो वह अपनी बहन से बोलते है कि वह जिस कन्या से उनके विवाह की बात चलाएगी उसकी अकाल मृत्यु हो जाएगी। कान्ही अपने भाई की बात पर विश्वास नहीं करते हुए एक कन्या के परिवार वालों से अपने भाई के रिश्ते की बात करती है। कुछ समय के बाद जिस कन्या से कान्ही अपने भाई का विवाह करना चाहती है उसकी अचानक मृत्यु हो जाती है। इस बात का पता जब कान्ही को चलता है तब वह अपने भाई के विवाह का विचार पूरी तरह से त्याग देती है।
इस घटना के बाद मोहनदास जी भी आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लेते है और पूजा-पाठ और धार्मिक कार्य मे अपना मन लगाना शुरू कर देते है। इस घटना के कुछ समय के बाद कान्ही अपने भाई और पुत्र को घर पर भोजन करवा रही होती है, उसी समय घर के दरवाज़े पर एक याचक भिक्षा माँगने के लिए आता है। भिक्षा लेकर दरवाज़े तक पहुंचने में कान्ही को थोड़ा सा विलंब हो जाता है। कान्ही जब भिक्षा लेकर जब तक दरवाज़े तक पहुंचती है तब तक वह याचक वहाँ से चला जाता है।
और उस जगह पर उस याचक की परछाई मात्र दृष्टिगोचर होती है। इस बात का पता जब मोहनदास जी को लगता है तब वह भी दौड़ते हुए दरवाज़े तक आते है क्योंकि उन्हें उस याचक की सच्चाई का पता होता है कि वह याचक और कोई नहीं स्वयं बालाजी है। अपने द्वारा विलंब करने पर कान्ही को बड़ा दुख होता है। इस मोहनदास जी अपनी बहन को धैर्य रखने की सलाह देते है। धीरे-धीरे से समय बिताता है और लगभग डेढ़ से दो महीने के बाद कान्ही के घर के दरवाजे पर एक साधु नारायण हरि- नारायण हरि का उच्चारण करता है। यह आवाज सुन कर कान्ही दौड़ते हुए मोहनदास जी को जा कर बताती है घर के दरवाजे पर कोई आया है। मोहनदास जी तुरंत दौड़ कर घर के दरवाज़े तक पहुंचते है।
उस समय साधु का वेश धरे हुए बालाजी वापस लौट रहे होते है लेकिन मोहनदास जी दौड़ कर को कर उनके चरणों में लेट जाते है और विलंब के लिए क्षमा प्रार्थना करते है। तब बालाजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो कर मोहनदास जी को बोलते है कि – में तुम्हारी सेवा और भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ, तुम सैदेव सच्चे मन से मेरी पूजा और ध्यान करते हो इसलिए में तुम्हारी सभी मनोकामना पूरी करुंगा बोलो क्या मांगते हो। इस पर मोहनदास जी बालाजी से विनयपूर्वक निवेदन करते है को वह उनकी बहन कान्ही को भी दर्शन दे। बालाजी मोहनदास जी के इस आग्रह को स्वीकार कर लेते है और कहते है कि – में पवित्र आसन पर विराजमान होऊंगा और मिश्री सहित खीर और चूरमे के भोग को स्वीकार करूंगा।
इसके बाद बालाजी मोहनदास जी के साथ उनके घर पर आते है। यहाँ पर मोहनदास जी और उनकी बहन कान्ही बड़ी कृतज्ञता से बालाजी को उनकी पसंद का भोजन करवाते है। सुंदर और स्वच्छ शैया पर विश्राम करने के बाद बालाजी दोनों भाई-बहन से प्रसन्न होकर कहते है कि कोई भी मेरी छाया को अपने ऊपर करने की चेष्टा नहीं करेगा। मुझे श्रद्धा और प्रेम पूर्वक जो भी भेंट चढ़ाई जाएगी में उसे स्वीकार करूंगा और अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करूँगा और इस सालासर नाम के स्थान पर सैदेव निवास करूंगा इतना कह कर बालाजी अंतर्ध्यान हो जाते है।
इस घटना के बाद मोहनदास जी मौन व्रत धारण कर लेते है और एकांत में शमी के पेड़ के नीचे आसान लगा कर बैठ जाते है। कुछ समय के बाद लोग मोहनदास जी को पागल समझ कर बावलिया बुलाने लगते है। एक दिन मोहनदास जी जिस शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या कर रहे थे वह वृक्ष अचानक फलों से लद जाता है। शमी के वृक्ष पर लगे हुए फलों को तोड़ने के लिए एक जाट का बेटा शमी के पेड़ पर चढ़ जाता है। लेकिन उसकी घबराहट की वजह से कुछ फल मोहनदास जी के ऊपर गिर जाते है।
अपने ऊपर फल गिरने की वजह से मोहनदास जी की तपस्या भंग हो जाती है। आँख खोलने पर वह देखते है कि एक जाट का बेटा शमी के पेड़ पर चढ़ा हुआ है और डर में मारे कांप रहा है। मोहनदास जी उसे बोलते है कि डरने की कोई बात नहीं है और उसे पेड़ से नीचे उतरने के लिए भी बोलते है। पेड़ से नीचे आने के बाद जाट का बेटा मोहनदास जी को बताता है कि उसकी माँ ने तो मना किया था लेकिन उसके पिता ने जबदस्ती उसके शमी का फल लाने के लिए भेजा है और कहा कि पेड़ के निचे बैठा वो बावलिया तुझे खा थोड़े जाएगा। मोहनदास जी उस जाट के बेटे को बोलते है कि अपने पिता से कहना कि शमी के फलों को खाने वाला व्यक्ति जिंदा नहीं रहता है।
लेकिन वह जाट मोहनदास जी के द्वारा कही गई बात को गंभीरता से नहीं लेता है और फल खा लेता है। ऐसा माना जाता है कि फल खाने के बाद जाट की मृत्यु हो जाती है। उसके बाद से ही लोगों के मन मे मोहनदास जी के प्रति भक्ति की भावना प्रकट होती है। इस घटना में बाद ऐसी और भी कई चमत्कारिक घटनाएं होती है जिससे लोगों में मोहनदास जी की प्रति श्रद्धा और भी बढ़ जाती है। एक बार उदय ने देखा कि मोहनदास जी के शरीर पर पंजो के बड़े-बड़े निशान बने हुए है। उदय के पूछने पर मोहनदास जी उसकी बात को टाल जाते है। कुछ समय के बाद पता चलता है कि बालाजी और मोहनदास जी प्रायः मल्लयुद्ध और अन्य तरह की क्रीड़ाओं का अभ्यास साथ मे किया करते थे।
इस प्रकार की चमत्कारिक घटनाओं की वजह से मोहनदास जी की कीर्ति चारों तरफ फैलती चली गई और लोग मोहनदास जी के दर्शन करने के लिए आने लगे। ठाकुरों और मोहनदास जी के बीच मे घटित एक घटना बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। उस समय सालासर तत्कालीन बीकानेर राज्य के अधीन आता था। सालासर के आसपास के गाँवों में ठाकुरों का शासन रहता था। उस समय ठाकुर धीरज सिंह के पास सालासर के आसपास स्थित गाँवों की देखरेख की जिम्मेदारी थी। एक दिन ठाकुर धीरज सिंह को खबर मिलती है कि डाकुओं की एक बड़ी सेना लूटपाट के इरादे से उनके गाँव की और बहुत तेजी से आ रही है।
ठाकुर साहब के पास इतना समय नहीं था कि वह बीकानेर से सैन्य सहायता मंगवा सके। अंततः उस समय सालासर के तत्कालीन ठाकुर सालम सिंह ने ठाकुर धीरज सिंह को मोहनदास जी से मिलने की सलाह दी। जब दोनों ठाकुर सहायता के लिए मोहनदास जी की पास पहुँचे तो उन्होंने ने दोनों ठाकुरों को आश्वस्त किया और कहा कि बालाजी का नाम लेकर डाकुओं की पताका को नीचे गिरा देना है। उस समय किसी भी सेना की शक्ति उसकी विजय पताका मानी जाती थी। मोहनदास जी के कहे अनुसार ठाकुरों ने अपनी तलवार से डाकुओं की विजय पताका को काट कर जमीन पर गिरा दिया। ऐसा करने के बाद डाकुओं का सरदार ठाकुरों के चरणों मे आ गिरा। इस घटना की वजह से मोहनदास जी के प्रति ठाकुरों में भी श्रद्धा बहुत ज्यादा बढ़ गई।
इस घटना के बाद मोहनदास जी ने सालासर में बालाजी के भव्य मंदिर के निर्माण का संकल्प कर लिया। सालासर के ठाकुर सालम सिंह ने मोहनदास जी को बालाजी के मंदिर निर्माण के लिए पूर्ण सहयोग देने का निर्णय किया और सालासर से 31 किलोमीटर दूर स्थित आसोटा गांव में अपने ससुर चम्पावत जी को बालाजी की मूर्ति भेजने का संदेश भिजवाया। उसी समय आसोटा में एक किसान ब्रम्हमुहूर्त के समय जब अपने खेत के बुवाई कर रहा था तब उस किसान का हल एकाएक किसी पथरीली वस्तु से टकराता है। उस जगह खुदाई करने पर उसे एक मूर्ति मिलती है। वह किसान उस मूर्ति को निकाल कर दूसरी जगह रख देता है और वापस अपने खेत की बुवाई में मगन हो जाता है। थोड़ी ही देर बाद उस किसान के पेट मे बहुत तेज दर्द होना शुरु हो जाता है।
किसान की पत्नी को जब अपने पति के बारे में पता चलता है तो वह जल्दी से अपने पति के पास पहुँचती है। अपनी पत्नी के द्वारा पेट दर्द के बाते में पूछने पर किसान अपनी पत्नी को जमीन से निकली हुई प्रतिमा के बारे में बताता है और उसके बाद अपने पेट में हो रहे दर्द के बारे में बताता है। किसान की पत्नी समझदार थी वह तुरंत उस जमीन से निकली हुई प्रतिमा के पास जाती है और उस पर लगी हुई मिटटी को साफ़ करती है। प्रतिमा पर लगी हुई मिटटी साफ़ करने पर किसान की पत्नी को भगवान राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बिठाये हुए हनुमान जी ने दर्शन हुए। किसान की पत्नी ने उस काले पत्थर की प्रतिमा को पास के ही एक पेड़ के पास सम्मान के साथ स्थापित किया और प्रतिमा पर प्रसाद चढ़ा कर किसान द्वारा अनजाने में किये गए अपराध की क्षमा मांगी।
ऐसा करने के तुरंत बाद ही किसान का पेट दर्द पूरी तरह से ख़तम हो जाता है और किसान पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है। प्रतिमा से जुड़े हुए इस चमत्कार की खबर पुरे गाँव में आग की तरह फ़ैल जाती है। असोटा के ठाकुर चम्पावत भी इस प्रतिमा के दर्शन करने के लिए आते है और प्रतिमा को अपनी हवेली पर ले कर आ जाते है। उसी रात ठाकुर चम्पावत को बालाजी सपने में दर्शन देते है और उस प्रतिमा को सालासर पहुँचाने की आज्ञा देते है। अगली सुबह ठाकुर चम्पावत अपने सैनिकों की सुरक्षा में एक बैल गाड़ी को सजवाते है और भजन मण्डली के साथ उस प्रतिमा को असोटा से सालासर के लिए विदा करते है।
जैसे ही बैल गाड़ी में प्रतिमा असोटा से सालासर के लिए रवाना होती है उसी रात बालाजी मोहनदास जी के सपने में दर्शन देते है और कहते है की अपने दिए गए वचन को निभाए के लिए वह काली मूर्ति के रूप में सालासर आ रहे है। अगली सुबह सालासर के ठाकुर सालम सिंह के साथ मोहनदास जी और ग्रामवासियों ने प्रतिमा का स्वागत बड़ी धूमधाम से किया। 1754 में शुक्ल नवमी शनिवार के दिन पुरे विधि-विधान से सालासर गाँव में हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित किया गया।
श्रावण द्वादशी मंगलवार के दिन मोहनदास जी बालाजी की सेवा में इतने मगन हो गए की उन्होंने घी और सिंदूर से प्रतिमा का पूरा श्रृंगार कर दिया। उस समय के बाद बालाजी अपने पूर्व दर्शित रूप जिसमे वह भगवान श्री राम और लक्ष्मण को अपने कंधो पर धारण किये हुए थे उसकी जगह अब दाढ़ी-मुछ, मस्तक पर तिलक, बड़ी भौहें, बड़ी और सुन्दर आखें और पर्वत पर गदा धारण किये अद्भुत रूप में दर्शन दे रहे थे।
सालासर बालाजी मे लगने वाले विशाल मेले – Large fair to be held in Salasar Balaji in Hindi
सालासर बालाजी मंदिर में प्रति वर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है। यहाँ लगने वाले मेलों के समय लाखों की संख्या में श्रद्धालु बालाजी के दर्शन करने के लिए सालासर आते है। सालासर में पहला मेला साल के अप्रैल माह में आने हनुमान जयंती के समय लगता है। उसके बाद अक्टूबर महीने में शरद पूर्णिमा के समय भी सालासर में बहुत विशाल मेला लगता है। इन दोनों प्रमुख मेलों के अलावा हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहार होली, दिवालज और विजया दशमी के समय भी बहुत भारी संख्या में श्रद्धालु बालाजी के दर्शन करने के लिए सालासर आते है।
बाबा मोहन दास जी की समाधि – श्री सालासर बालाजी मंदिर – Samadhi of Baba Mohan Das Ji – Shri Salasar Balaji Temple in Hindi
सालासर बालाजी मंदिर के मुख्य परिसर में उनके परम भक्त बाबा मोहनदास जी की समाधि बनी हुई है। मान्यता है कि मोहनदास जी की समाधि के दर्शन किये बिना सालासर बालाजी के दर्शन पूरे नहीं माने जाते है। मोहनदास जी अपनी बहन कान्ही की सेवा करने के लिए ही सालासर आये थे। सालासर में बालाजी के मंदिर निर्माण के कुछ समय बाद ही उनकी बहन कान्ही का देहांत हो गया था। अपनी बहन की मृत्यु के कुछ समय बाद मोहनदास जी ने भी जीवित समाधि ले ली।
ऐसा कहते है कि मोहनदास जी अपनी बहन की सेवा के लिए यहाँ आये थे और आज भी अपनी बहन की सेवा के लिए यहाँ पर है। श्रद्धालुओं में ऐसा विश्वास है कि वह समाधि के रूप के आज भी यहाँ विराजमान है, समाधि लेने से पहले मोहनदास जी ने अपना चोला और बालाजी की पूजा का अधिकार अपने भांजे उदय को दे दिया था। आज भी सालासर बालाजी मंदिर में मोहनदास जी की समाधि पर मोहनदास जी की मंगल स्तुति का पाठ किया जाता है।
सालासर बालाजी की धूनी – Salasar Balaji’s Dhuni in Hindi
सालासर बालाजी मंदिर से जुडी हुई मान्यता के अनुसार यहाँ पर बालाजी के दर्शन करने के बाद सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। मंदिर परिसर में हनुमान जी की धूनी भी है जिसके लिए यह माना जाता है बालाजी के दर्शन करने के बाद धूनी के धोक लगाना बहुत जरुरी माना जाता है। श्रद्धालु मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से अंदर आने के बाद सबसे पहले धूनी के धोक लगा सकते है, और दर्शन के बाद भी धूनी के धोक लगा सकते है। ऐसा माना जाता है की धूनी की भभूत से हजारों तरह की बीमारियों का इलाज हो जाती है।
यहाँ पर आने वाले अनेक श्रद्धालु लोहे की कील अपने साथ लेकर जाते है। श्रद्धालु अपनी साथ लाई हुई कील को धूनी के ऊपर से घुमा कर अपने घर के चारों कोनों में गाड़ देते है। श्रद्धालुओं में ऐसा विश्वास है की ऐसा करने पर घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। कई भक्त धूनी की भभूत को प्रसाद स्वरुप मान कर अपने घर भी लेकर जाते है।
सालासर बालाजी मंदिर की लोकेशन – Salasar Balaji Temple location in Hindi
सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के चूरू जिले की सुजानगढ़ पंचायत समिति के अंतर्गत आता है। राजस्थान के सीकर जिले से सालासर की दुरी मात्र 55 किलोमीटर (Sikar to Salsar Distance) है। सुजानगढ़ से सालासर की दुरी मात्र 27 किलोमीटर (Sujangarh to Salasar Distance) है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से सालसर की दुरी मात्र 171 किलोमीटर (Jaipur to Salasar Distance) है।
माता अंजनी का मन्दिर सालासर बालाजी – Anjani Mata Temple Salasar Balaji in Hindi
बालाजी के मुख्य मंदिर से मात्र 02 किलोमीटर की दुरी पर स्थित अंजनी माता का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। अंजनी माता से जुडी हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार रामायण के समय माता अंजनी ने अपनी दूध की धार से एक पहाड़ को चूर-चूर कर दिया था। मंदिर में अंजनी माता का विग्रह ऐसा है जिसमे माता अंजनी हनुमानस जी को अपनी गोद में बिठाये हुए है। माता जी के विग्रह के एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में कलश है। श्रद्धालुओं द्वारा ऐसा माना जाता है की माता के दर्शन करने पर सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिल जाती है।
अपने विवाह के बाद महिलाएं यहाँ सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करती है। स्थानीय लोगों के रीति रिवाज के अनुसार विवाह का सबसे पहला निमंत्रण अंजनी माता को दिया जाता है, ताकि वर-वधु दोनों का वैवाहिक जीवन सुखी रहे। सालासर में अंजनी माता मंदिर का जीर्णोद्धार 1963 में करवाया गया था।
सालासर बालाजी दर्शन का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Salasar Balaji in Hindi
वर्ष में अक्टूबर से अप्रेल तक का समय सालासर बालाजी के दर्शन करने के लिए मौसम के हिसाब से सबसे अच्छा समय समझा जाता है। वैसे तो पुरे साल सालासर बालाजी महाराज के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लेकिन सप्ताह में मंगलवार और शनिवार के दिन भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है। अगर आप ज्यादा भीड़ से बचना चाहते है तो मंगलवार, शनिवार और रविवार छोड़ कर सप्ताह के बाकी दिनों में बालाजी के दर्शन करने के लिए आ सकते है।
Salasar Balaji Aarti Timings And Darshan Timings – सालासर बालाजी महाराज के दर्शन व आरती का समय :-
मंदिर कपाट का खुलना – प्रातः 04:30 बजे
मंगल आरती – प्रातः 05:00 बजे
बालाजी महाराज का राजभोग – प्रातः 10:30 बजे
धूप और मोहनदास जी की आरती – साॅय 06:00 बजे
बालाजी की आरती – साॅय 07:30 बजे
बाल भोग – रात्रि 08:15 बजे
शयन आरती – रात्रि 10:00 बजे
Note : हर मंगलवार को प्रातः 11:00 बजे सालासर बालाजी महाराज की राजभोग आरती भी होती है।
सालासर बालाजी में कहाँ ठहरे – Hotels in Salasar Balaji in Hindi
सालासर में श्रद्धालुओं और पर्यटकों के ठहरने के लिए कई धर्मशालाएं और होटल्स बने हुए है। धर्मशाला में कमरा बुक करवाने के लिए आप सालासर पहुंच कर अपने लिए रूम ले सकते है, और आप चाहे तो इंटरनेट से सालासर की किसी भी धर्मशाला का फ़ोन नंबर लेकर अपने लिए अपने धर्मशाला में रूम बुक करवा सकते है। धर्मशाला के अलावा आप ऑनलाइन होटल बुकिंग वेबसाइट और एप्प की मदद से आप अपने लिए सालासर के किसी भी होटल में अपने लिए रूम बुक करवा सकते है। सालासर में धर्मशाला या होटल में रूम बुक करवाने से पहले आप होटल वाले से मोलभाव जरुर करें।
सालासर बालाजी का स्थानीय बाजार – Salasar Balaji Local Market in Hindi
एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल होने की वजह से सालासर बालाजी के स्थानीय बाजार में अधिकांश आपको प्रसाद और हनुमान जी की मूर्तियों की दुकाने ज्यादा दिखाई देती है। प्रसाद और तश्वीरों की दुकानों के अलावा यहाँ पर आपको छोटे-बड़े रेस्टॉरंट भी खुले हुए मिल जाएगें। अपने घर के मंदिर की सजावट के लिए यहाँ से आप बहुत कुछ खरीद सकते है। सालसर के स्थानीय बाजार में आपको बच्चों के खिलोने की दुकानों के अलावा राजस्थान के प्रसिद्ध हस्तशिल्प से निर्मित उत्पाद भी मिल जाएंगे।
सालासर बालाजी कैसे पहुंचे – How to reach Salasar Balaji in Hindi
हवाई मार्ग से सालासर बालाजी कैसे पहुंचे – How to reach Salasar Balaji By Flight in Hindi
सालासर के सब्स नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर हवाई अड्डा है। जयपुर हवाई अड्डे से सालासर की दूरी मात्र 184 किलोमीटर (Jaipur Airport to Salsar Distance) है। जयपुर हवाई अड्डा भारत के प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा है। इसके अलावा दुनिया के कई देशों से भी जयपुर हवाई अड्डा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा आप दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी सालासर बहुत आसानी से पहुँच सकते है। दिल्ली के हवाई अड्डे से सालासर की दूरी 367 किलोमीटर (Delhi airport to Salasar Distance) है।इन दोनों हवाई अड्डों से आप टैक्सी और कैब की सहायता से बहुत आसानी से सालासर पहुँच सकते है।
रेल मार्ग से सालासर बालाजी कैसे पहुंचे – How to reach Salasar Balaji By Train in Hindi
सालासर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन सुजानगढ़ रेल्वे स्टेशन है। सुजानगढ़ रेलवे स्टेशन से सालासर बालाजी की दूरी मात्र 27 किलोमीटर (Sujangarh to Salasar Distance) है। दिल्ली से सालासर बालाजी के दर्शन करने आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए नियमित रेल सेवा सुजानगढ़ के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा अगर आप मुम्बई से सालासर दर्शन करने के लिए आ रहे तो दो साप्ताहिक ट्रैन चलती है। इसके अलावा आप जयपुर, सीकर और रतनगढ़ के रेलवे स्टेशन से भी आप बहुत आसानी से सालासर पहुँच सकते है। दिए गए सभी रेल्वे स्टेशन से आप कैब, टैक्सी और बस के द्वारा सालासर बहुत आसानी से पहुंच सकते है।
दिल्ली ट्रैन डिटेल – सालासर एक्सप्रेस (22421 / 22422)
मुम्बई ट्रैन डिटेल – विवेक एक्सप्रेस 19027 / हिसार-बांद्रा 22916
सड़क मार्ग से सालासर बालाजी कैसे पहुंचे – How to reach Salasar Balaji By Road in Hindi
अगर आप अपने निजी वाहन या फिर टैक्सी और बस के द्वारा सालासर आना चाहते है तो दिल्ली और जयपुर जैसे शहरों से सालासर सड़क मार्ग के द्वारा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इन दोनों से शहरों से सालासर के लिये नियमित सरकारी बस और निजी बस सेवा उपलब्ध रहती है।
सालासर के पास घूमने के पर्यटक स्थल – Near By Places to visit Salasar Balaji in Hindi
जयपुर, रणथम्बोर, गोविन्द देव जी, आमेर किला, हर्ष भेरू, जीणमाता, शाकम्भरी माता, लोहागर्जी, खाटू श्याम जी
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )