कोणार्क सूर्य मंदिर 2024 | कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास | Konark in Hindi | Konark Sun Temple 2024 In Hindi | Konark Sun Temple In Hindi | Konark Mandir | Konark Surya Mandir | Entry Fee | Timing | History | Best Time To Visit

कोणार्क का इतिहास | History of Konark in Hindi

पुरी से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोणार्क एक छोटा और प्राचीन शहर है। एक छोटा शहर होने के बावजूद भी कोणार्क भारत के सबसे प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है।कोणार्क के आसपास के क्षेत्र में अनेक प्राचीन स्मारक और मंदिर बने हुए है। जिन्हें देखने के लिए पूरे वर्ष देश और दुनिया के अलग-अलग कोनो से पर्यटक और पुरातत्वेता कोणार्क आते रहते है।

शहर के पास बहने वाली चंद्रभागा नदी के किनारे पर बसा हुआ कोणार्क शहर मुख्य रूप से यहां पर स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर की वजह से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। कोणार्क के आसपास बने हुए सभी प्राचीन मंदिर बहुत ही विशाल और भव्य बने हुए है। आप कोणार्क में बने हुए मंदिरों और स्मारकों की विशालता  का अनुमान इस बात से लगा सकते है की कोणार्क में बने हुए लगभग सभी प्राचीन मंदिरों और स्मारकों पर विदेशी मुगल आक्रान्ताओ ने अनेक बार आक्रमण किए।

लेकिन इन मंदिरों और स्मारकों को पूरी तरह से तोड़ने में कभी भी सफल नहीं हो पाये। यहाँ पर बने हुए सभी प्राचीन मंदिरों की वास्तुकला और मूर्तिकला में उस समय के कारीगरों द्वारा बहुत महीन कारीगरी का उपयोग किया गया है। बंगाल की खाड़ी के पास स्थित कोणार्क सिर्फ प्राचीन मंदिरों और स्मारकों के अलावा इस शहर के पास स्थित समुद्र तट भी यहाँ घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते है।

पुरी की तरह कोणार्क के समुद्र तट भी भारत के सबसे साफ सुथरे समुद्र तटों में से एक माने जाते है। कोणार्क के एक प्राचीन और धार्मिक स्थल होने के प्रमाण हिन्दू धर्म से जुड़े हुए अनेक पौराणिक ग्रंथों जैसे भविष्यपुराण, वराहपुराण, कपिलसंहिता, सांबपुराण और ब्रह्मपुराण आदि में प्रमुखता से पाये जाते है। पौराणिक ग्रंथों के अलावा अनेक इतिहासकारों ने भी कोणार्क के एक प्राचीन शहर होने का उल्लेख अपनी पुस्तकों में किया है।

कोणार्क सूर्य मंदिर – Konark Sun Temple in Hindi

Konark Sun Temple At Konark, Odisha

विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर कोणार्क शहर में पर्यटकों के लिए आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है। यह प्राचीन मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। प्राचीन कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंगवंश के शासक महाराजा नरसिम्ह देव प्रथम ने मुस्लिम आक्रमणकारियों पर विजय पाने के उपलक्ष में करवाया था। इस मंदिर का निर्माण सूर्य भगवान के रथ के रूप में करवाया गया था।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान सूर्य के रथ में 24 पहिये लगे हुए थे और उनके रथ को 07 घोड़े खींचते थे। कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण उस समय की पारंपरिक कलिंग वास्तुकला के अनुसार किया गया था। मंदिर के निर्माण में खोंडालिट चट्टानों का उपयोग किया गया है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार का निर्माण इस प्रकार करवाया गया है जिससे की सूर्य की पहली किरण मुख्य द्वार से प्रवेश करते हुए मंदिर के भीतरी भाग तक पहुँच जाए।

विदेशी हमलों और अन्य कई कारणों की वजह से कोणार्क सूर्य मंदिर का अधिकांश हिस्सा खंडहर में बदल गया है। कोणार्क सूर्य मंदिर पर 15वीं शताब्दी में मुस्लिम और यवन सेना ने आक्रमण कर दिया और मंदिर के अधिकांश हिस्सों को नष्ट कर दिया। मंदिर के गृभगृह में स्थापित भगवान सूर्य के विग्रह को विदेशी आक्रमण से बचाने के लिए मंदिर के पुजारियों द्वारा किसी दूसरे स्थान पर ले  जाया गया था।

बावजूद इसके यह मंदिर आज भी भारत में वास्तुकला की सर्वश्रेष्ठ इमारतों में से एक माना जाता है। मुख्य मंदिर के गृभगृह को गिरने से बचाने के लिए उसे पूरी तरह से मिट्टी से भर दिया गया है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर मंदिर की रखवाली करते हुए दो विशाल शेरों का निर्माण करवाया गया है। मुख्य मंदिर तक पहुँचने के लिए हमें कुछ सीढियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर की दीवारों पर बेहद महीन और जटिल नक्काशी की गई है।

मंदिर की दीवारों पर बनाई गई मूर्तियाँ मनुष्य के पूरे जीवनकाल को विस्तृत रूप से दर्शाती है। सूर्य मंदिर के पास दो छोटे मंदिरों के खंडहर भी मौजूद है जिन्हें वैष्णव मंदिर और माया मंदिर के नाम से जाना जाता है। मुख्य मंदिर के चारों तरफ 24 विशालकाय पहियों का निर्माण किया गया है। सभी पहियों पर बेहद महिन कारीगरी की गई है। इन विशाल पहियों के ऊपर और नीचे की तरफ हजारों की संख्या में उग्र हाथी, शिकार के दृश्य और सैनिक जुलूस के दृश्य चित्रित किये गए है।

मंदिर की दीवारों पर बेहद उत्कृष्ट श्रेणी की मुर्तियों का निर्माण किया गया है, इन दीवारों पर पुष्प, देवी-देवता, जानवर, पौराणिक जानवर और जलीय राक्षस दिखाई देते है। जब अंग्रेज भारत में शासन करते थे उस समय वो लोग समुद्र यात्रा के समय इस मंदिर की मुख्य इमारत का उपयोग नेविगेशन टॉवर के रूप में किया करते थे। मंदिर के निर्माण में उपयोग में लाये गए काले पत्थर की वजह से इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा कहा करते थे।

कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के सबसे प्राचीन और भव्य मंदिरों में से एक है। 1984 में हुई UNESCO की बैठक में कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर की उपाधि प्रदान की गई।

कोणार्क सूर्य मंदिर दर्शन का समय – Konark Sun Temple Timings in Hindi

कोणार्क सूर्य मंदिर पर्यटकों के लिए पूरे सप्ताह सुबह 09 बजे से लेकर शाम को 05 बजे तक खुला रहता है।

कोणार्क सूर्य मंदिर में प्रवेश शुल्क – Konark Sun Temple Entry Fee in Hindi

भारतीय पर्यटकों के लिए मंदिर में प्रवेश शुल्क 40/- रुपये लिया जाता है और विदेशी पर्यटकों से प्रवेश शुल्क 600/- रुपये लिया जाता है। कोणार्क सूर्य मंदिर के गाइड के लिये 200/- रुपये शुल्क निर्धारित किया गया है।

कोणार्क सूर्य मंदिर | पौराणिक कथाएँ – Konark Sun Temple Story in Hindi

Konark Sun Temple, Konark

विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर अपने शिल्प इतिहास की वजह से प्रसिद्ध है। उतनी ही रोचक है इस मंदिर के निर्माण से जुड़ी हुई पौराणिक कथायें है:-

कोणार्क मंदिर की कहानियाँ – Konark Sun Temple Story in Hindi – 01

कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण से जुड़ी हुई एक कहानी यहाँ पर सबसे ज्यादा सुनी जा सकती है। कहते है की जब सूर्य मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था तो उस समय मुख्य मंदिर के शिखर निर्माण से जुड़ी हुई एक बहुत बड़ी समस्या कारीगरों के सामने आकर खड़ी हो गई। उस समय कोई भी कारीगर मंदिर के शिखर निर्माण से जुड़ी हुई समस्या को हल नहीं कर पा रहा था।

तब उस समय मंदिर के मुख्य कारीगर के 12 वर्षीय पुत्र जिसका नाम धर्मपाद था उसने मंदिर के शिखर पर पहुंच कर शिखर निर्माण कार्य को पूरा किया। शिखर निर्माण कार्य पूरा होने के बाद धर्मपाद ने यह सोचा की उसके द्वारा किये गए इस कार्य से सभी कारीगरों की क्षमता का अपमान होगा और राजा भी उनसे नाराज होगा। राजा की नाराजगी के डर की वजह से धर्मपाद ने शिखर निर्माण का कार्य पूरा होने के बाद उस शिखर से कूदकर आत्महत्या कर ली।

कोणार्क मंदिर की कहानियाँ – Konark Sun Temple Story in Hindi – 02

Destroyed Statue At Konark Sun Temple, Konark

कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी हुई एक कथा और भी ज्यादा प्रसिद्ध है। यह कथा जितनी ज्यादा प्रसिद्ध है उससे कहीं ज्यादा स्थानीय लोगो का इस कथा पर अटूट विश्वास भी है। स्थानीय लोगों और कुछ इतिहासकारों का यह मानना है की कोणार्क सूर्य मंदिर के शिखर पर कुंभर पाथर नाम का एक चुम्बक लगा हुआ था जिसका वजन लगभग 53 टन के आसपास था। कुंभर पाथर चुम्बक इतना ज्यादा ताकतवर था की मंदिर के निकट स्थित समुद्र से गुजरने वाले जहाज और नौकाएँ इस चुम्बक के प्रभाव से तट की और खींची चली आती और चट्टानों से टकराकर नष्ट हो जाती थी।

कोणार्क संग्रहालय कोणार्क – Konark Museum In Hindi

Destroyed Statue of Elephant At Konark Sun Temple, Konark

भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1968 में कोणार्क सूर्य मंदिर से मिली हुई प्राचीन और खंडित मुर्तियों, पांडुलिपियों और पेंटिंग्स को इकट्ठा करके कोणार्क संग्रहालय को शुरू किया। कोणार्क संग्रहालय, कोणार्क सूर्य मंदिर से महज कुछ ही दूरी पर स्थित है।  कोणार्क संग्रहालय में किया गया प्राचीन मुर्तियों और पांडुलिपियों का संग्रह ओडिशा के सबसे पुराने संग्रहों में से एक माना जाता है।

इस संग्रहालय की देख रेख की जिम्मेदारी और व्यवस्था भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण के पास सुरक्षित है। कोणार्क संग्रहालय को चार अलग-अलग दीर्घाओं में बांटा गया है। इन चारों दीर्घाओं में 260 तरह पुरावशेषों को प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में प्रदर्शित किये गए पुरावशेषों में मुख्य रुप से कोणार्क सूर्य मंदिर से लाई गई अलग-अलग देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, प्राचीन पेंटिंग्स और उस समय लिखी गई पांडुलिपियों के अंश देखने को मिलते है।

संग्रहालय की पहली दीर्घा में 62 पुरावशेष देखने को मिलते है। जिनमें से खंडोलित पत्थर से बना हुआ खंडित पहिया, रेत के पत्थर से बनी सूर्य भगवान की मूर्ति और भगवान विष्णु के अलग-अलग अवतारों को प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय की दूसरी दीर्घा में 108 पुरावशेष को प्रदर्शित किया गया है। दूसरी दीर्घा में मुख्य मंदिर की दीवार के कुछ हिस्से, स्वर्ग की अप्सराएं, पत्थर पर उकेरी हुई वनस्पति और विशाल पत्थर से बने हुए मगरमच्छ के सिर को मुख्यरूप से प्रदर्शित किया गया है।

इन दोनों दीर्घाओं के बाद तीसरी दीर्घा में सूर्य नारायण भगवान की मूर्ति, राजा अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ और गाजा व्यास जैसी 45 अलग-अलग तरह की मुर्तियों को प्रदर्शित किया गया है। चौथी और संग्रहालय की अंतिम दीर्घा में कुल 45 प्राचीन और विशाल मूर्तियों का संग्रह किया गया है। अंतिम दीर्घा में  नृत्य करते हुए युगल की मूर्ति, सूर्य की मूर्ति का कुछ हिस्सा और हाथी की सूंड से बंधे हुए आदमी की मूर्ति आदि को प्रदर्शित किया गया है।

कोणार्क संग्रहालय, कोणार्क में पर्यटकों, कला प्रेमियों और इतिहासकारों के घूमने के लिए सबसे प्रमुख स्थानों में से एक स्थान है।

कोणार्क संग्रहालय कोणार्क प्रवेश का समय – Konark Museum Timings In Hindi

कोणार्क संग्रहालय पर्यटकों के लिए सुबह के 09 बजे से लेकर शाम को 05 बजे तक खुला रहता है। सप्ताह में शुक्रवार के दिन कोणार्क संग्रहालय पर्यटकों के लिए बन्द रहता है।

कोणार्क संग्रहालय कोणार्क प्रवेश शुल्क – Konark Museum Entry Fee In Hindi

कोणार्क संग्रहालय में पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क 05/- रुपये निर्धारित किया गया है।

रामचंडी मंदिर कोणार्क – Ramchandi Temple Konark in Hindi


Ramchandi Temple, Konark, Odisha | Click On Image For Credits

कोणार्क से 10 किलोमीटर दूर बहने वाली कुशभद्र नदी के किनारे पर स्थित प्राचीन रामचंडी मंदिर कोणार्क के प्रमुख और लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार कोणार्क का रामचंडी मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर से भी ज्यादा पुराना है। यह प्राचीन मंदिर ओडिशा के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और इसके अलावा माता रामचंडी को कोणार्क की ईष्ठ देवी के रूप में भी पूजा जाता है।

रामचंडी मंदिर  का आकार वैसे तो छोटा है लेकिन मंदिर प्रांगण में लगे हुए कैसरिनस के पेड़ो की वजह से यह मंदिर बहुत सुंदर दिखाई देता है। मंदिर के प्रांगण में विमना और जगमोहन की संरचनाएँ बनाई हुई है। जगमोहन सरंचना के सामने बना हुआ रामचंडी मंदिर खुला और सपाट छत वाला मंदिर है। मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर मुखी है इसके अलावा मंदिर के निर्माण में रेत के पत्थर, ईंट और लेटराइट का उपयोग किया गया है।

मंदिर के गृभगृह में  माता रामचंडी की मूर्ति कमल के फूल पर स्थापित की गई है। मंदिर के पास स्थित समुद्र तट को रामचंडी समुद्र तट के नाम से जाना जाता है। रामचंडी समुद्र तट से कुशभद्र नदी का बंगाल की खाड़ी में विलय का दृश्य बहुत सुंदर और मनमोहक प्रतीत होता है। रामचंडी समुद्र तट की मिट्टी सुनहरे रंग की है, समुद्र तटके एक तरफ साफ और नीला पानी और दूसरी तरफ विशाल ताड़ के वृक्ष इस जगह को और भी सुंदर बना देते है।

रामचंडी समुद्र तट पर पर्यटक तैराकी, नौकायन, सूर्य-स्नान और नौका विहार का आनंद ले सकते है।

रामचंडी मंदिर कोणार्क दर्शन का समय – Ramchandi Temple Konark Timings in Hindi

रामचंडी मंदिर पर्यटकों और श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए सुबह के 06 बजे से लेकर शाम को 06 बजे तक खुला रहता है।

रामचंडी मंदिर कोणार्क में प्रवेश शुल्क – Ramchandi Temple Konark Entry Fee in Hindi

प्रवेश निःशुल्क।

रामचंडी मंदिर की कहानी – Konarj Ramchandi Temple Story in Hindi

रामचंडी मंदिर से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार कालापहाड़ नाम का मुगल सेनापति कोणार्क सूर्य मंदिर को नष्ट करने के बाद रामचंडी मंदिर को नष्ट करने के लिये पहुँच गया। उस समय माता रामचंडी ने मंदिर की रक्षा करने के लिए एक की दासी का रूप धर लिया। जब कालापहाड़ रामचंडी मंदिर पहुँचा तो दासी ने उसे नदी से माता रामचंडी के लिए नदी से पानी लाने तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा।

बहुत समय तक इंतज़ार करने के बाद जब दासी वापस नहीं आयी तो कालापहाड़ ने गुस्से से मंदिर में प्रवेश किया। मंदिर में प्रवेश करने के बाद कालापहाड़ को मंदिर के गृभगृह में माता रामचंडी की मूर्ति नहीं दिखाई दी। उसके बाद कालापहाड़ ने कुशभद्र नदी तक दासी का पीछा किया। नदी के किनारे पर पहुंचने पर कालापहाड़ ने माता रामचंडी की मूर्ति को नदी के मध्य भाग में तैरते हुए पाया।

यह सब देख कर कालापहाड़ वापस लौट गया। उसके बाद माता रामचंडी ने एक पुजारी को स्वपन में दर्शन दिए और उसे आदेश दिया की वह कुशभद्र नदी के किनारे पर उनके मंदिर का निर्माण करवाये।

अस्तारंगा कोणार्क – Astranga Beach Puri Konark in Hindi

Astaranga Sea Beach, Konark | Ref Image

बंगाल की खाड़ी में विलय होने देवी नदी के पास स्थित अस्तारंगा समुद्र तट कोणार्क के सबसे ज्यादा सुन्दर और प्रसिद्ध समुद्र तटों में से एक है। अस्तारंगा समुद्र तट की कोणार्क शहर दूरी मात्रा 34 किलोमीटर है। अस्तारंगा समुद्र तट पर दूर तक फैली हुई सुनहरी रेत और इस जगह के प्राकृतिक दृश्य बेहद खूबसूरत दिखाई पड़ते है। इस समुद्रतट से दिखने वाला सूर्यास्त का दृश्य बेहद मनमोहक होता है।

इस समुद्र तट पर आने वाले पर्यटक यहाँ पर सिर्फ और सिर्फ सूर्यास्त ही देखने के लिए आता है। अस्तारंगा समुद्र तट ओडिशा के प्रमुख मछली पकड़ने वाले स्थानों में से एक है। समुद्र तट के पास में ही मछलियों का एक छोटा बाजार लगता है। इस छोटे बाजार में सुबह-सुबह मछुआरों से मछली खरीदने वाले विक्रेताओं की बहुत ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है।

सुबह-सुबह के समय इस समुद्र तट पर  लगने वाली नावों और नाविकों की भीड़ इस समुद्र तट को कोणार्क और पुरी के अन्य समुद्र तटों से अलग बनाती है। अस्तारंगा समुद्रतट के पास ही पीर जहानिया का प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है।

अस्तारंगा कोणार्क देखने का समय – Astranga Beach Puri Konark Timings in Hindi

दिन के किसी भी समय।

अस्तारंगा कोणार्क में प्रवेश शुल्क – Astranga Beach Puri Konark Entry Fee in Hindi

प्रवेश निःशुल्क।

माँ मंगला मंदिर कोणार्क – Maa Mangla Temle Konark in Hindi


Maa Mangla Deity At Maa Mangla Temple, Konark | Click on Image For Credits

कोणार्क से लगभग 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित काकटपुर में बना हुआ प्राचीन मंगला मंदिर ओडिशा के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है। स्थानीय निवासी प्राचीन मंगला मंदिर को “बाटा मंगला मंदिर” और “सरबा मंगला मंदिर” के नाम से भी पुकारते है। मंगला मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी के समय करवाया गया था।

यह मंदिर उस समय की सबसे प्रचलित कलिंग वास्तुशैली में बना हुआ है। मंगला मंदिर शक्ति पंथ के अनुयायियों का एक प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। मंदिर के भीतरी भाग में ठोस पत्थर से बना हुआ एक बिस्तर है। इस बिस्तर के बारे में कहा जाता है की माँ मंगला देवी पूरे ब्रम्हांड का चक्कर लगाने के बाद इस पत्थर के बिस्तर पर आराम करती है। मंदिर निर्माण से जुड़ी हुई एक रोचक कथा यहाँ के स्थानीय निवासियों में बेहद प्रचलित है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की ईष्ट देवी मंगला ने स्वयं को इस स्थान पर बहने वाली प्राची नदी के तल में छिपा रखा था। एक समय एक स्थानीय नाविक अपनी नाव को नदी पार करवाने में बार-बार असमर्थ हो रहा था। तब कुछ समय के बाद माँ मंगला ने उसे सपनें में दर्शन देकर आदेश दिया की वह उनकी मूर्ति को पानी से बाहर निकाले और मंगलापुर गाँव में उनकी मूर्ति को स्थापित करे।

माँ मंगला के बताये अनुसार नाविक ने प्राची नदी के पानी से माँ मंगला देवी की मूर्ति को बाहर निकाला और मंगलापुर गांव में माँ मंगला के मंदिर का निर्माण करवाया।  कुछ समय के बाद नाविक ने प्राची नदी के में देखा की उसने नदी में जिस स्थान से “माँ मंगला देवी” के विग्रह को निकाला था। ठीक उसी स्थान पर एक कौवा पानी में गोते लगा रहा है लेकिन वह कौवा दोबारा बाहर नहीं आ रहा है।

इस कारण से इस जगह को काकटपुर के नाम से जाना जाने लगा। माँ मंगला मंदिर और श्री जगन्नाथ मंदिर यह दोनों प्राचीन मंदिर ओडिशा में प्रति वर्ष मनाये जाने वाले नवकालेबारा त्यौहार की वजह से एक साथ जुड़े हुए है। नवकालेबारा त्यौहार का मतलब होता है देवताओं का नवीनीकरण। इस त्यौहार के समय जगन्नाथ मंदिर के देवताओं की पुरानी मुर्तियों को जमीन में दफनाया जाता है।

और उसके बाद पवित्र लकड़ी से तीनों देवताओं की नई मुर्तियों का निर्माण किया जाता है। नई और पवित्र लकड़ी को “दारू ब्रम्हा” भी कहा जाता है। जगन्नाथ मंदिर में नई मुर्तियों की निर्माण से जुड़ी हुई प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए जगन्नाथ मंदिर के पुजारी माँ मंगला से नई मुर्तियों के निर्माण के काम में आने वाली पवित्र लकड़ी को खोजने में सहायता माँगने के लिए माँ मंगला मंदिर आते है।

जगन्नाथ मंदिर के पुजारी मंगला मंदिर में देवी की मूर्ति सामने सो जाते है और जैसे ही पुजारी गहरी नींद में पहुँच जाते है तो माँ मंगला पुजारी के सपने में आकर जगन्नाथ मंदिर के तीनों देवताओं की नई मुर्तियों के लिए तीन पवित्र पेड़ो का सही स्थान बताती है। जगन्नाथ मंदिर में तीनों देवताओं की नई मुर्तियों के निर्माण से जुड़ी हुई इस प्राचीन परंपरा का पालन अनेक वर्षों से बिना किसी रुकावट के किया जा रहा है।

नवकालेबारा त्याहौर के साथ-साथ मंगला मंदिर में झामु यात्रा भी सबसे प्रसिद्ध त्यौहार माना जाता है। झामु यात्रा त्यौहार हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष वैशाख माह के पहले मंगलवार को मनाया जाता है। इस त्यौहार के समय श्रद्धालु प्राची नदी के पानी को इकठा करके माँ मंगला से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये प्रार्थना करते है।

झामु यात्रा के समय देवी के श्रद्धालु मिट्टी के घड़ो में पानी भर कर नंगे पैर जलते हुए कोयलों पर चलते है ताकि उनकी सभी मनोकामना पूरी हो। प्रति वर्ष आयोजित की जाने वाली झामु यात्रा के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु  माँ मंगला मंदिर में इकठ्ठा होते है।

माँ मंगला मंदिर कोणार्क दर्शन का समय – Maa Mangla Temple Konark Timings in Hindi

श्रद्धालुओं के लिए माँ मंगला मंदिर में सुबह के 09:30 बजे से लेकर दोपहर के 01:30 बजे तक और शाम 04:30 बजे से लेकर रात को 07:30 बजे दर्शन खुले रहते है।

माँ मंगला मंदिर कोणार्क में प्रवेश शुल्क – Maa Mangla Temple Konark Entry Fee in Hindi

प्रवेश निःशुल्क।

वराही मंदिर कोणार्क – Varahi Temple Koarnk sun Temple in Hindi


Varahi Temple, Chaurasi, Konark | Click on Image For Credits

कोणार्क से वराही मंदिर की दूरी लगभग 27 किलोमीटर है। यह प्राचीन मंदिर पुरी जिले के एक छोटे से गांव चौरासी में स्थित है। इस प्राचीन मंदिर को वराही मंदिर के अलावा बराही मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। वराही मंदिर भी माँ मंगला मंदिर की ही तरह प्राची नदी के किनारे पर बना हुआ है। 10वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन सोमवंशी शासक ने देवी वराही के सम्मान में करवाया था।

चौरासी गांव के स्थानीय लोग मंदिर की देवी वराही को मत्स्य वराही के नाम से भी जानते है। देवी वराही की मूर्ति मंदिर के गृभगृह में एक सादे मंच पर ललितासन मुद्रा में स्थापित की गई है। देवी वराही का दायाँ पेर महिसासुर (भैंस का सिर) नाम के दानव के सिर पर रखा हुआ है और इसके अलावा देवी को दाहिने हाथ में मछली है और बाएँ हाथ में कटोरा लिए हुए है। देवी वराही को प्रसाद के रूप में प्रतिदिन मछली का भोग लगाया जाता है।

प्राची नदी के पास स्थित वराही मंदिर की दीवारों पर कारीगरों द्वारा बेहद महीन नक्काशी की गई है। मंदिर निर्माण के लिए रेत के पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर भारत के अनेक पौराणिक घटनाक्रमों को बहुत ही सुंदर तरीके से उकेरा गया है

जैसे भगवान राम द्वारा सोने के हिरण का वध, भगवान राम द्वारा सात ताड़ के वृक्षों को एक ही तीर से भेदना, सीता अपहरण, समुद्र पर पुल निर्माण और इसके अलावा मंदिर के स्तम्भों पर नाग कन्या की मूर्तियाँ बनी हुई है।

वराही मंदिर कोणार्क दर्शन का समय – Varahi Temple Koarnk Timings in Hindi

श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए वराही मंदिर सुबह के 07:00 बजे से लेकर सुबह के 10:00 बजे तक और शाम को 05:30 से लेकर रात को 08:30 बजे तक खुला रहता है।

वराही मंदिर कोणार्क प्रवेश शुल्क – Varahi Temple Koarnk Entry Fee in Hindi

प्रवेश निःशुल्क।

कुरुमा कोणार्क – Konark Kurum Konark in Hindi

Destroyed Statue Of Lord Sun At Konark Sun Temple, Konark

ओडिशा में कोणार्क से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुरुमा नाम का एक छोटासा गांव है। भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा इस गांव में पाये गए पुरातत्व महत्व की मुर्तियों और शिलालेखों की वजह से यह स्थान एक पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। कुरुमा गांव ओडिशा के सबसे प्रमुख पुरातात्विक महत्व वाले स्थानों में से एक  माना जाता है। इस जगह का उल्लेख सीलोन और अशोक द्वारा लिखे गए बौद्ध धर्म के ग्रंथो में प्रमुखता से किया गया है।

इस अलावा चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी अपने यात्रा वर्णन में कुरुमा का उल्लेख किया है। ऐसा माना जाता है की यहाँ पाई गई पुरातात्विक महत्व की वस्तुएँ 8वीं से 9वीं शताब्दी के आसपास की रही होगी। कुरुमा के पुरातात्विक महत्व का सबसे पहले पता यहाँ के एक विद्यालय में अध्यापक रहे ब्रजबन्धु दास को पता चला। ब्रजबन्धु दास द्वारा इस स्थल की सूचना देने पर 1971 से लेकर 1975 के बीच ओडिशा राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा इस स्थान पर खुदाई का कार्य शुरू करवाया गया।

कुरुमा में खुदाई शुरू करने से पहले इस गाँव के एक तालाब के पास भगवान बुद्ध की प्रतिमा प्राप्त की गई थी। खुदाई के दौरान पाई गई भगवान बुद्ध की प्रतिमा भुमिस्परसा मुद्रा में मिली थी जिसमें उन्होंने अपने दाहिने हाथ से बाएँ पेर को क्रोस करके पकड़ा हुआ था और उनका बायाँ हाथ बाएँ घुटने पर रखा हुआ था। भगवान बुद्ध की मूर्ति के सर पर एक सुंदर मुकुट  और एक बहुत ही महीन नक्काशी वाला हार धारण किया हुआ था। भगवान बुद्ध की मूर्ति के अलावा तालाब के पास से दो प्राचीन मूर्तियाँ और भी पाई गई थी।

इन दोनों मुर्तियों में से एक को ‘हेरुका’ के रूप में पहचान गया है, जिसे स्थानीय लोग ‘धर्म ‘ यानी ‘सूर्य भगवान’ का रूप भी मानते है। इसके अलावा दूसरी मूर्ति को ‘यम’ का रूप माना गया है। कुरुमा में स्थित इस प्राचीन बौद्ध मठ एक खुले प्रांगण में बना हुआ है। बौद्ध मठ की चारों दिशाओं में तीन-तीन ब्लॉक (कुल 12 ब्लॉक) रखे हुए है। इस प्राचीन मठ में अब कोई नहीं रहता है, लेकिन इस मठ से प्राप्त प्राचीन मुर्तियों को एक छोटे से शेड में सुरक्षित रखा गया है।

और इस शेड के भीतर ही इन मुर्तियों की पूजा की जाती है। कुरुमा आने वाले पर्यटक यहां की यूजीएमई विद्यालय भी जा सकते है। विद्यालय में ब्रजबंधु दास का एक कमरा बना हुआ है, इस कमरे में खुदाई के दौरान पत्थर के शिलालेख और प्राचीन सिक्के सुरक्षित तरह से रखे गए है।

कुरुमा कोणार्क देखने का समय – Konark Kurum Konark Timings in Hindi

कुरुमा में स्थित यह प्राचीन संग्रहालय पर्यटक के लियू सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम 05:00 बजे तक देख सकते है।

कुरुमा कोणार्क देखने का समय – Konark Kurum Konark Timings in Hindi

प्रवेश निःशुल्क।

कोणार्क में होटल | कोणार्क में कहाँ रुके –  Hotel in Konark in Hindi

Hotels in Konark | Ref Image

भारत का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने की वजह से कोणार्क में बहुत सारे होटल और लॉज बने हुए है। बहुत सारी ट्रेवल वेबसाइट कोणार्क के लिये एडवांस में होटल बुकिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवाती है। अगर आप चाहे तो आप सीधे कोणार्क आकर अपने लिए हॉटेल बुक कर सकते है। इसके अलावा कोणार्क से पुरी की दूरी भी बहुत ज्यादा नहीं है अगर आप कोणार्क सिर्फ कोणार्क सूर्य मंदिर देखने के लिए आ रहे है तो आप अपने लिए पुरी में भी हॉटेल बुक करवा सकते है। एक धार्मिक पर्यटक स्थल होने की वजह से आप पुरी में हॉटेल के अलावा धर्मशाला में भी रुक सकते है।

कोणार्क कैसे पहुँचे – How to reach Konark in Hindi

Lord Sun Wheel At Konark Sun Temple, Konark

हवाई मार्ग से कोणार्क कैसे पहुँचे – How to reach Konark by flight in Hindi

अगर आप कोणार्क हवाई मार्ग से आना चाहते है तो कोणार्क के सबसे नजदीकी एयरपोर्ट भुवनेश्वर का बीजू पटनायक एयरपोर्ट है। अगर आप विदेश से कोणार्क घूमने आ रहे है तो भुवनेश्वर का बीजू पटनायक एयरपोर्ट भारत के सभी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डो से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। बीजू पटनायक एयरपोर्ट से कोणार्क की दूरी मात्र 63 किलोमीटर है। बीजू पटनायक एयरपोर्ट से आप टैक्सी के द्वारा सीधा कोणार्क पहुँच सकते है।

रेल मार्ग से कोणार्क कैसे पहुँचे – How to reach Konark by Train in Hindi

पुरी रेलवे स्टेशन से कोणार्क की दूरी मात्रा 35 किलोमीटर है। पुरी से कोणार्क के लिए नियमित रूप से बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध रहती है।

सड़क मार्ग से कोणार्क कैसे पहुँचे – How to reach Konark by Road in Hindi

कोणार्क सड़क मार्ग से भी बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पुरी बस स्टेशन से कोणार्क के लिए नियमित रूप से सरकारी बस सेवा उपलब्ध रहती है। इसके अलावा कई निजी बस संचालक भी नियमित रूप से कोणार्क के लिये बस सेवा उपलब्ध करवाते है। अगर आप बस द्वारा कोणार्क नहीं जाना चाहते तो पुरी के रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन से आप को कोणार्क के लिए टैक्सी और कैब सेवा भी उपलब्ध हो जाएगी।

कोणार्क जाने से पहले टैक्सी और कैब वालों से मोलभाव जरूर करें। अगर आप अपने निजी वाहन से कोणार्क जा रहे है तो पुरी से कोणार्क की सड़क भारत की सबसे सुंदर सड़क मार्ग में से एक है।

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