गंगोत्री 2024 | गंगोत्री मंदिर यात्रा 2024 | गंगोत्री मंदिर का इतिहास | Gangotri 2024 in Hindi | Gangotri Temple Yatra 2024 in Hindi | Gangotri Temple History in Hindi | Gangotri Yatra Travel Guide in Hindi
गंगोत्री – Gangotri in Hindi
हिन्दू धर्म मे हिमालय पर्वत से निकलकर बहने वाली गंगा नदी को “गंगा मैया” और “माँ गंगा” कह कर बुलाया जाता है। गंगा नदी हिन्दू धर्म मे सबसे पवित्र और पूजनीय मानी जाती है। गंगोत्री इस गंगा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। उत्तराखंड की छोटा चारधाम यात्रा में से एक गंगोत्री में स्थित गंगोत्री मंदिर (माँ गंगा को समर्पित मंदिर) के दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिवर्ष गंगोत्री आते है।
वास्तव उत्तराखंड में उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दूरी पर गंगोत्री नाम का एक छोटा सा कस्बा है जो गंगोत्री मंदिर (माँ गंगा का समुद्र तल से सबसे ज्यादा ऊँचाई पर स्थित मंदिर) की वजह से प्रसिद्ध है। कस्बे में बने हुए गंगोत्री मंदिर की वजह से ही इस कस्बे के नाम गंगोत्री पड़ गया।
वैसे तो मूलरूप से गंगा नदी उद्गम स्थल गौमुख है जो कि गंगोत्री से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिमालय के सबसे बड़े गंगोत्री ग्लेशियर में स्थित है। श्रद्धालु गंगोत्री से 19 किलोमीटर का ट्रैक करके के गौमुख तक पहुँच सकते है।
गंगोत्री मंदिर – Gangotri Temple in Hindi
हिन्दू धर्म ग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी से पहली बार स्वर्ग से धरती पर उतरी थी तब इसी स्थान भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में धारण किया था। गंगोत्री में वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गौरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। जिसका बाद में पुनर्निर्माण कार्य जयपुर राज परिवार के द्वारा करवाया गया था।
केदारनाथ मंदिर और बद्रीनाथ मंदिर की तरह यह गंगोत्री मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिये वर्ष में सिर्फ 06 महीने के लिये ही खुला रहता है। प्रति वर्ष अप्रैल या मई महीने से लेकर अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच मे श्रद्धालु गंगोत्री मंदिर के दर्शन कर सकते है। हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार गंगोत्री मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए अक्षय तृतीया के समय खुलते है और दीपावली के बाद आने वाली भैया दूज के बाद गंगोत्री मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते है।
गंगोत्री का इतिहास – History of Gngotri in Hindi
गंगोत्री कस्बे के अस्तित्व 1200 वर्ष पूर्व का माना जाता है जो कि प्राचीन गंगोत्री मंदिर के आसपास के क्षेत्र में धीरे-धीरे विकसित हुआ। इस कस्बे के अस्तित्व में आने से पहले भी यह माना जाता है कि यह पवित्र स्थान कई सदियों से हिन्दू आस्था का बहुत बड़ा केंद्र रहा है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में इस स्थान पर कोई भी मंदिर नही था।
यहाँ पर माँ गंगा के साकार रूप (गंगा की धारा) की पूजा सेमवाल समुदाय के पुजारियों के द्वारा की जाती थी। उस समय यहाँ पर स्थित भागीरथी शिला ( माना जाता है कि भागीरथी शिला पर बैठ कर ही भागीरथ ने कठोर तपस्या की थी) के निकट एक मंच जैसे स्थान पर तीर्थ यात्रा के अनुकूल मौसम के समय देवी-देवताओं की मूर्तियों को नजदीक के मुखबा और अन्य गांवों से लाकर विधिवत तरीके से स्थापित किया जाता था।
और जैसे ही तीर्थ यात्रा के अनुकूल मौसम समाप्त होता उस समय देवी-देवताओं की मूर्तियों को वापस उन्हीं गांवों में लौटा दिया जाता जहाँ से उन्हें लाया जाता था। 18वीं शताब्दी में मंदिर के पुजारियों ने गढ़वाल क्षेत्र के गुरखा सेनापति अमर सिंह थापा से निवेदन किया कि जिस स्थान पर भागीरथ ने तपस्या की थी उस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया जाए।
मन्दिर निर्माण के कई वर्षों बाद 20वीं शताब्दी में जयपुर के महाराजा माधो सिंह ने मंदिर पुनर्निर्माण का कार्य करवाया था। एक समय था जब गंगोत्री की पैदल यात्रा बेहद दुर्गम हुआ करती थी लेकिन 1980 में श्रद्धालुओं की तीर्थ यात्रा का सुगम बनाने के लिए तत्कालीन सरकार ने गंगोत्री तक सड़क निर्माण कार्य करवाया।
गंगोत्री की पौराणिक कथा – Legend of Gangotri in Hindi
गंगोत्री के धार्मिक महत्व को बताने वाली दो पौराणिक कथाएं बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। जिसमे पहले कथा के अनुसार भगीरथ के परदादा राजा सगर ने साम्राज्य विस्तार के लिए “अश्वमेध यज्ञ” का आयोजन किया था । अश्वमेध यज्ञ के दौरान एक घोड़े को स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया गया। लेकिन कुछ समय के बाद वह घोड़ा गायब हो गया।
राजा सगर ने घोड़े का पता लगाने के लिये अपनी सेना का भेजा लेकिन राजा की सेना के हाथ मे भी किसी प्रकार की सफलता नही लगी।अंत मे राजा सगर ने अपने 60,000 पुत्रों को घोड़े को ढूढ़ने का आदेश दिया। घोड़े की खोज करते – करते राजा सगर के सभी पुत्र एक स्थान पर पहुँचते है।
उस स्थान पर पहुंच कर वह सभी देखते है कि ऋषि कपिला ध्यान मुद्रा में बैठे हुए है और उनके पास में ही अश्वमेध यज्ञ वाला घोड़ा बंधा हुआ। यह देख कर राजा सगर के पुत्र ऋषि कपिला पर घोड़े को चोरी करने का आरोप लगाते है। चोरी का आरोप सुन कर ऋषि बहुत नाराज हो जाते है और गुस्से में राजा सगर के सभी 60,000 पुत्रों का राख में बदल देते है।
अपने पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुन कर राजा सगर ऋषि कपिला के पास जाते है और उनसे क्षमा प्रार्थना करते है ताकि उनके पुत्रों को स्वर्ग प्राप्ति हो। राजा सगर के क्षमा प्रार्थना करने पर ऋषि कपिला कहते है उनके पुत्रों की राख जब कि स्वर्ग में बहने वाली गंगा नदी के संपर्क आएगी तभी सभी को स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
इसी वजह से राजा सगर के प्रपौत्र भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष प्राप्ति के लिए लगभग 1000 वर्षों तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर पतित पावनी माँ गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। जिस स्थान पर राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की थी उस जगह को आज गंगोत्री के नाम से जाना जाता है।
और जिस जगह पर बैठ कर राजा भगीरथ ने तपस्या की थी उसे भगीरथ शिला के नाम से जाना जाता है। एक और अन्य कथा के अनुसार जब माँ गंगा भगीरथ की कठोर तपस्या से पृथ्वी पर आने के लिये राजी हो गई थी तब एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी। कहते है उस समय गंगा का प्रवाह इतना ज्यादा तेज था कि अगर वह सीधे पृथ्वी पर आ जाती तो उस समय गंगा के तेज प्रवाह से पूरी पृथ्वी नष्ट हो सकती थी।
इसलिए देवताओं ने भगीरथ को सुझाव दिया को अगर भगवान शिव अपनी जटाओं में गंगा को धारण कर ले तो पृथ्वी को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। इसके बाद राजा भगीरथ के प्रार्थना करने पर भगवान शिव गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने के लिए राजी होगये। इस प्रकार माँ गंगा पृथ्वी पर आने से पहले भगवान शिव की जटाओं में उतरी ओर उसके बाद उन्होंने पृथ्वी को स्पर्श किया।
कहते है कि गंगोत्री में जिस स्थान पर जलमग्न शिवलिंग है उसी स्थान पर भगवान शिव ने माँ गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था। महाभारत से जुड़े हुए पौराणिक घटनाक्रम के अनुसार महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों ने युद्ध के समय मारे गए अपने परिजनों की मोक्ष प्राप्ति के लिय इस पवित्र स्थान पर आकर महान देव यज्ञ किया था
गंगोत्री की वास्तुशैली – Architecture of Gangotri in Hindi
गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी के शुरुआती समय के दौरान किया गया है। मुख्य मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फ़ीट ऊंचे पत्थरो से बना हुआ है। गंगोत्री मंदिर की बनावट दूर से ही श्रद्धालुओं आकर्षित करने में सक्षम है। मंदिर के पास बहती हुई भागीरथी नदी में एक शिवलिंग भी है जो कि अधिकांश समय जलमग्न रहता है।
सर्दियों के मौसम में जब नदी का जलस्तर थोड़ा कम होता है उस समय शिवलिंग के दर्शन किये जा सकते है।
गंगोत्री की भौगोलिक स्थित – Geographical location of Gangotri in Hindi
गंगोत्री की समुद्रतल से ऊंचाई 3415 मीटर (11204 फ़ीट) है। यह मंदिर हिमालय के संतोपंथ पर्वत की तलहटी में बना हुआ है। मंदिर चारों तरफ से भोज वृक्षों और देवदार के घने जंगलों से घिरा हुआ है।
2022 में गंगोत्री मंदिर के खुलने का समय – Gangotri Temple Opening Date 2022 In Hindi
गंगोत्री मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए वर्ष में सिर्फ 06 महीने के लिए ही खुला रहता है। अप्रैल महीने के अंतिम सप्ताह या मई महीने के पहले सप्ताह में गंगोत्री मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिये खोल दिये जाते है।
हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिये खोल दिये जाते है। इस वर्ष 03 मई 2022 अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिये खोल दिए जाएंगे।
2022 में गंगोत्री मंदिर के कपाट बंद होने का समय – Gangotri Temple Closing Date 2022 In Hindi
सर्दियों के मौसम में गंगोत्री में बहुत अधिक बर्फ़बारी की वजह से 06 महीनों के लिए मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिये बंद कर दिए जाते है। मंदिर के कपाट अक्टूबर महीने के अंतिम सप्ताह या फिर नवंबर महीने के पहले सप्ताह के आसपास बन्द कर दिए जाते है।हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार दीपावली के बाद आने वाली भैयादूज के समय मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिये बन्द कर दिए जाते है।
मंदिर के कपाट बंद होने के बाद माता गंगा की डोली को हरसिल के पास स्थित मुखबा गाँव लेकर जाया जाता है। जहाँ पर अगले 06 महीनों के लिये गंगा मैया की पूजा की जाती है। वर्ष 2022 में अभी तक मंदिर के कपाट बंद होने की तिथि का निर्धारण नहीं किया गया है।
गंगोत्री मंदिर में आरती का समय – Gangotri Temple Aarti Timings in Hindi
गंगोत्री मंदिर में माँ गंगा की प्रभात आरती का समय सुबह के 06:00 बजे का और संध्या आरती रात को 07:45 मिनट पर की जाती है। श्रद्धालुओं के लिए गंगोत्री मंदिर सुबह 06:15 से लेकर दोपहर के 02:00 बजे तक खुला रहता है, और शाम को 03:00 बजे से लेकर रात को 09:30 बजे तक खुला रहता है।
गंगोत्री में स्थानीय भोजन- Local Food In Gangotri in Hindi
भारत का एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल होने के साथ-साथ गंगोत्री छोटा चारधाम यात्रा का भी हिस्सा है। इसी वजह से गंगोत्री में आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के खाने-पीने के लिये मंदिर क्षेत्र के आसपास बहुत सारे भोजनालय और रेस्टोरेंट बने हुए है जहाँ पर आप उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय भोजन का आनंद ले सकते है। इसके अलावा आप यहाँ पर उत्तराखंड के स्थानीय भोजन का भी आनंद ले सकते है।
गंगोत्री में कहाँ रुके – Hotels in Gngotri in Hindi
तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के ठहरने के लिये गंगोत्री में आपको धर्मशाला, होटल्स और गेस्ट हाउस की सुविधा बड़ी आसानी से उपलब्ध मिल जाएगी। मंदिर के आसपास के क्षेत्र में बहुत सारे होटल और धर्मशालाएं बनी हुई है। आप चाहे तो गंगोत्री आने से पहले ऑनलाइन होटल बुकिंग वेबसाइट की सहायता से अपने लिये होटल में रूम बूक कर सकते है।
इसके अलावा आप यहाँ पहुँच कर भी अपने लिये होटल और धर्मशाला में रूम बुक करवा सकते है जिसके लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है। अच्छा तो यही रहेगा आप यहाँ पहुँचने से पहले अपने लिये होटल बुक करवा लें। अगर आप किसी ट्रेवल एजेंसी के साथ गंगोत्री की यात्रा कर रहे है तो वो आप लोगों के लिये गंगोत्री में पहले से होटल में रूम बुक रखते है।
इन सब के अलावा स्थानीय प्रशासन ने गंगोत्री आने वाले श्रद्धालुओं के लिये GMVN गेस्ट हाउस भी बनाये हुए है जहाँ पर आप निर्धारित शुल्क देकर आराम से रुक सकते है।
गंगोत्री के नजदीक ट्रैक – Treks near Gangotri in Hindi
हिमालय के पहाड़ो में स्थित होने की वजह से गंगोत्री और इसके आसपास के क्षेत्र में बहुत सारे पर्यटक स्थल भी है जिन्हें देखने के लिए पूरी दुनिया से पर्यटक गंगोत्री आते है। पर्यटक स्थल के अलावा गंगोत्री के आसपास कई प्रसिद्ध ट्रैक्स भी है। गंगोत्री के पास स्थित ट्रेक को पूरा करने के लिये पूरी दुनिया से ट्रेकर्स गंगोत्री आते है।
गौमुख, भैरों घाटी, मुखबा गाँव, हर्षिल, नंदनवन तपोवन, गंगोत्री चिरबासा और केदारताल यह कुछ ऐसे गाँव और ट्रैक्स जिन्हें आप गंगोत्री यात्रा करते समय कुछ अतिरिक्त समय देकर देख सकते है।
गंगोत्री कैसे पहुँचे – How to reach Gangotri in Hindi
हवाई मार्ग से गंगोत्री कैसे पहुँचे – How to reach Gangotri By Air in Hindi
देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से गंगोत्री की दूरी मात्र 265 किलोमीटर है। यह एयरपोर्ट देश के प्रमुख हवाई अड्डों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। देहरादून से आप टैक्सी और कैब सर्विस के द्वारा बड़ी आसानी गंगोत्री पहुँच सकते है। इसके अलावा देहरादून से गंगोत्री के लिए हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।
रेल मार्ग से गंगोत्री कैसे पहुँचे – How to reach Gangotri By Train in Hindi
हरिद्वार और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन गंगोत्री के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश से गंगोत्री की दूरी मात्र 267 किलोमीटर है। हरिद्वार रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश और हरिद्वार इन दोनों शहरों से आपको गंगोत्री के लिए नियमित रूप बस, टैक्सी और कैब सेवा उपलब्ध मिल जाएगी।
सड़क मार्ग से गंगोत्री कैसे पहुँचे – How to reach Gangotri By Road in Hindi
गंगोत्री सड़क मार्ग द्वारा उत्तराखंड के प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून टिहरी गढ़वाल और उत्तरकाशी से आप बस, टैक्सी और कैब सेवा के द्वारा गंगोत्री बड़ी आसानी से पहुंच सकते है। आप चाहे तो अपने निजी वाहन की सहायता से भी गंगोत्री सड़क मार्ग द्वारा बहुत आसानी से पहुचं सकते है।
Haridwar to Gangotri Distance – 289 KM
Rishikesh to Gangotri Distance – 267 KM
Dehradun to Gngotri Distance – 242 KM
Delhi to Gangtori Distance – 528 KM
Uttarakashi to Gangotri Distance – 100 KM
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )