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    Home»Language»Hindi»छोटा चार धाम यात्रा 2024 | Chota Char Dham Yatra Travel Guide 2024 in Hindi
    Hindi

    छोटा चार धाम यात्रा 2024 | Chota Char Dham Yatra Travel Guide 2024 in Hindi

    18 Mins Read

    छोटा चार धाम यात्रा 2024 | चारधाम यात्रा उत्तराखंड 2024 | Chota Char Dham Yatra 2024 in Hindi | Chardham Yatra Uttrakhand in Hindi | Chardham Yatra Complete Travel Guide in Hindi | Chota Char Dham Yatra Travel Guide in Hindi | Hindi | Timings

    छोटा चार धाम उत्तराखंड – Chota Char Dham Uttarakhand in Hindi

    बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम भगवान विष्णु को समर्पित यह चारों मंदिर भारत में चारधाम के नाम से जाने जाते है। और इन चारों मंदिरों की यात्रा को ही चारधाम यात्रा के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु के यह चारों मंदिर देश की चार अलग-अलग दिशाओं में स्थित है।

    चारधाम यात्रा के इन चारों मंदिरों में बद्रीनाथ उत्तर दिशा में, रामेश्वरम दक्षिण दिशा में, द्वारका पश्चिम दिशा में और पूर्व दिशा में जगन्नाथपुरी मंदिर स्थित है। भारत मे चारधाम यात्रा हिन्दू धर्म में की जाने वाली सबसे प्रमुख यात्रा मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि चारधाम यात्रा करने पर मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए पूरे विश्व मे रहने वाला प्रत्येक हिन्दू अपने जीवन मे एक बार चारधाम यात्रा जरूर करना चाहता है।

    इसी चारधाम यात्रा की तरह भारत के उत्तराखंड राज्य के चार प्रमुख तीर्थ स्थल यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ भी छोटा चारधाम यात्रा के रूप में प्रसिद्ध है। कुछ लोग उत्तराखंड में स्थित इन चारों तीर्थ स्थलों को ” हिमालय की चारधाम यात्रा” के नाम से भी जानते है। हिमालय के पहाड़ों में स्थित यह चारों तीर्थ स्थल उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी जिले में स्थित है।

    छोटा चारधाम यात्रा के चारों मंदिर हिन्दू धर्म के अलग-अलग देवी देवताओं को समर्पित है लेकिन फिर भी इन सभी मंदिरों को हिन्दू धर्म मे एक इकाई के रूप में ही देखा जाता है। उत्तराखंड में की जाने वाली छोटा चारधाम यात्रा में यमुनोत्री मंदिर देवी यमुना को समर्पित है जो कि हिन्दू धर्म की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है।

    गंगोत्री मंदिर माँ गंगा को समर्पित है यह भी भारत की सबसे पवित्र नदी है। केदारनाथ भगवान शिव को समर्पित मंदिर है, और बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर (चारधाम यात्रा के सभी मंदिर सिर्फ भगवान विष्णु को ही समर्पित है) है। हिमालय के पहाड़ो में स्थित यह चारों मन्दिर साल में सिर्फ 06 महीने ही खुले रहते है।

    लेकिन आप इन मंदिरों की प्रसिद्ध का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रति वर्ष 06 महीने के अंतराल में 02 लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु इन चारों मंदिरों की यात्रा करते है।

    यमुनोत्री – Yamunotri in Hindi


    Yamunotri_temple
    Yamunotri | Click on image for credits

    उत्तराखंड में की जाने वाली चारधाम यात्रा का सबसे पहला तीर्थ स्थल यमुनोत्री है। हिमालय की बन्दरपूँछ पर्वत श्रृंखला के समीप स्थित यमुनोत्री देवी यमुना को समर्पित तीर्थ स्थल है। यमुनोत्री को हिन्दू धर्म की सबसे पवित्र नदी यमुना का उद्गम स्थल भी माना जाता है। यमुनोत्री की समुद्रतल से ऊंचाई मात्र 3293 मीटर (10803 फ़ीट) है।

    देवी यमुना सूर्य की पुत्री है और यम और शनि की बहन है। यमुनोत्री के आसपास के क्षेत्र में कई गरम पानी के प्राकृतिक कुंड बने हुए है जिनमे से सूर्यकुंड सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देवता ने अपनी पुत्री यमुना का आशीर्वाद देने के लिये यमुनोत्री के पास गर्म जलधारा का रूप में बहते है।

    यमुनोत्री आने वाले सभी श्रद्धालु सूर्यकुंड में आलू और चावल पकाते है और देवी यमुना का प्रसाद मान कर अपने घर ले कर जाते है। यमुनोत्री में देवी यमुना को समर्पित यमुनोत्री मंदिर का निर्माण गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने 1885 में करवाया था। उस समय मंदिर निर्माण के लिये अधिकांश लकड़ी का उपयोग लिया गया था।

    उसके बाद 19वीं शताब्दी में गढ़वाल के तत्कालीन राजा प्रताप शाह ने मन्दिर को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया था। राजा प्रताप शाह द्वारा निर्मित यमुनोत्री मंदिर कुछ वर्षों के बाद भूकंप की वजह से बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त हो गया था जिसके जीर्णोद्धार का कार्य जयपुर की महारानी गुलरिया के द्वारा करवाया जाता है।

    यमुनोत्री मंदिर के गृभगृह में देवी यमुना की काले संगमरमर के पत्थर से बनी हुआ प्रतिमा स्थापित की हुई है। देवी यमुना की इस मंदिर में पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि यमुना नदी में अपने पितरों का पिंडदान करने से मृत व्यक्ति की आत्मा स्वर्ग को प्राप्त होती है। मंदिर परिसर में दिव्यशिला नाम का एक प्राचीन और विशाल स्तंभ भी है।

    जिसके लिये कहा जाता है कि श्रद्धालु दिव्यशिला के दर्शन करने के बाद ही देवी यमुना के दर्शन करने के लिये मन्दिर में प्रवेश करता है। वास्तव में यमुना नदी का उद्गम स्थल चंपासर ग्लेशियर है जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई मात्र 4421 मीटर (14505 फ़ीट) है। यह ग्लेशियर कालिंदी पर्वत के शिखर पर स्थित है। यमुनोत्री से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी है।

    ऐसी ही एक पौराणिक मान्यता के अनुसार यमुनोत्री असित मुनी का निवास स्थान भी रहा है। इसके अलावा यमुनोत्री का वर्णन अनेक पौराणिक कथाओं में भी  किया गया है। इसके अलावा केदारखंड, ब्रम्हांडपुराण, ऋग्वेद और कूर्मपुराण जैसे प्राचीन ग्रंथो में भी यमुनोत्री का उल्लेख देखें को मिलता है। हिन्दू धर्म के कई प्राचीन ग्रंथो में यमुनोत्री को सूर्य पुत्री और यम सहोदरा के नाम से सम्बोधित किया गया है।

    महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद जब पांडव हिमालय में तीर्थ यात्रा करने के लिए निकले थे तब उन्होंने सबसे पहले यमुनोत्री के दर्शन किये थे। कई इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में भी यमुनोत्री के महत्व का वर्णन किया है, ऐसे ही एक महामयुरी ग्रन्थ के अनुसार महाभारत काल के समय यमुनोत्री और इसके आसपास के क्षेत्र पर दुर्योधन का अधिकार था।

    इसलिए आज भी यमुनोत्री के आसपास के क्षेत्र में आज भी कई जगहों पर दुर्योधन की पूजा की जाती है। ऐसे भी प्रमाण मिले है की इस स्थान के आसपास की जगहों पर यवन और शकों की बस्तियां हुआ करती थी। कई इतिहासकारों का यह मानना है की यमुनोत्री हिन्दू धर्म में विश्वास करने वालो के लिए ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों तरह से बराबर महत्व रखता है।

    यमुनोत्री से 07 किलोमीटर की दुरी पर स्थित सप्तऋषि कुंड का भी बड़ा पौराणिक महत्व है , ऐसा माना जाता है की इस जगह पर सप्तऋषिओं ने कठोर तपस्या की थी इसीलिए इस कुंड को सप्तऋषि कुंड कहा जाता है।  यमुनोत्री की पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

    गंगोत्री – Gangotri in Hindi


    gangotri
    Gangotri | Click on image for credits

    भारत में बहने वाली हिन्दू धर्म की सबसे पवित्र नदी गंगा जिसे “माँ गंगा” और “गंगा मैया” के नाम से भी पुकारा जाता है।  हिन्दू धर्म में गंगा नदी सबसे पवित्र नदी मानी जाती है इसलिए सब लोग इसे माँ के समान मानते है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री एक छोटा सा क़स्बा है, यहाँ बहने वाली गंगा नदी के कारण इस कस्बे को गंगोत्री के नाम से जाना जाता है।

    गंगोत्री को गंगा नदी का उद्गम स्थल भी माना जाता है। लेकिन गंगोत्री में बहने वाली नदी गंगा नदी को भागीरथी के नाम से सम्बोधित किया जाता है। मूलरूप से गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री से 19 किलोमीटर की दुरी पर स्थित गौमुख है जो की हिमालय के सबसे बड़े गंगोत्री ग्लेशियर में स्थित है।

    समुद्रतल से 3415 मीटर (11204 फ़ीट)  की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री मंदिर माँ गंगा का समुद्रतल से सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। गंगोत्री से जुडी हुई पौराणिक कथा के अनुसार राजा भगीरथ की कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद इस स्थान पर गंगा नदी स्वर्ग से प्रकट हुई थी।  ऐसा माना जाता है की पौराणिक युग में राजा भगीरथ के परदादा राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था।

    अश्वमेध यज्ञ को पूरा करने के लिए राजा सगर ने एक घोड़े को स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया था। अब वह घोडा जहाँ-जहाँ से गुजर जाता उस स्थान और राज्य पर  राजा सगर का अधिकार हो जाता है।  राजा सगर के इस अश्वमेध यज्ञ से स्वर्ग में बैठे देवराज इंद्र बहुत परेशान हो जाते है। इसलिए राजा सागर के यज्ञ को रोकने के लिए इन्द्र चुपके से अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में छुपा देते  है।

    इधर यज्ञ का घोडा नहीं मिलने की वजह से राजा सगर अपनी सेना को घोड़े को ढूढ़ने के लिए भेजती है।  लेकिन कई प्रयासों के बाद भी राजा की सेना यज्ञ का घोडा नहीं ढूंढ पाती है। तब हार कर राजा अपने 60000 पुत्रों को यज्ञ को घोडा ढूढ़ने के लिए भेजते है। राजा सगर के सभी पुत्र घोड़े को ढूंढ़ते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुँचते है और आश्रम में यज्ञ का घोडा बंधा हुआ देखते है।

    आश्रम में यज्ञ का घोड़ा बंधा हुआ देखकर राजा के पुत्र कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगते है।  चोरी का आरोप सुन कर कपिल मुनि बहुत नाराज होते है और वह राजा सगर के सभी 60000 पुत्रों को श्राप देखकर राख में बदल देते है। इस पुरे घटना क्रम के बारे में सुन कर राजा सगर दौड़ते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचते है और इन क्षमा याचना करते है।

    राजा सगर के द्वारा बहुत याचना करने के बाद कपिल मुनि राजा से कहते है की श्राप तो वापस नहीं हो सकता लेकिन अगर स्वर्ग में बहने वाली गंगा नदी का स्पर्श आपके पुत्रों की राख  को हो जाये तो आपके सभी पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। राजा सगर अपने जीवन काल में स्वर्ग से गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने का प्रयास करते है लेकिन वो सफल नहीं हो पाते है।

    इसके कई वर्षो के बाद राजा सगर के प्रपौत्र भगीरथ अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए 1000 वर्षों तक तपस्या करते है। राजा भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न हो कर माँ गंगा पृथ्वी पर प्रकट होने के लिए मान जाती है।  लेकिन तब एक और समस्या खड़ी हो जाती है  उस समय गँगा का प्रवाह इतना तेज था की अगर गँगा की जल धारा उस समय सीधा पृथ्वी को स्पर्श करती तो पृथ्वी गँगा के तेज प्रवाह को सहन नहीं कर पाती।

    इसलिए माँ गँगा भगीरथ से कहती है की  भगवान शिव अपनी जटाओं में उनके जल प्रवाह नियंत्रित कर सकते है। ऐसा सुन कर भगीरथ भगवान शिव से प्रार्थना करते है की वो अपनी जटाओ में गंगा को समाहित कर ले। राजा भगीरथ के निवेदन को भगवान शिव स्वीकार कर लेते है।  इस प्रकार गंगा नदी पृथ्वी पर आने से पहले भगवान शिव की जटाओं में उतरती है और उसके बाद वह पृथ्वी पर प्रकट होती है।

    इस प्रकार राजा भगीरथ की कठोर तपस्या की वजह से गंगा नदी पृथ्वी पर प्रकट होती है और उनके वंशजो को मोक्ष प्रदान करती है।  इसी वजह से गंगा नदी को मोक्षदायनी भी कहा जाता है। गंगोत्री में मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गोरखा कप्तान अमर सिंह थापा के द्वारा करवाया जाता है।

    मंदिर निर्माण के कुछ वर्षों के बाद जयपुर के राजपरिवार द्वारा मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य करवाया जाता है। गंगोत्री वर्ष में सिर्फ 06 महीने के लिए ही श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। गंगोत्री की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पर क्लिक करें। 

    केदारनाथ – Kedarnath in Hindi


    Kedarnath_Temple
    Kedarnath | Click on image for credits

    उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ भारत में भगवान शिव के सबसे बड़े धार्मिक स्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है की केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडवो के द्वारा महाभारत काल के समय ही कर दिया गया था। केदारनाथ मंदिर छोटा चारधाम का प्रमुख मंदिर होने के साथ-साथ उत्तराखडं में स्थित पंच केदार मंदिरों में से एक है और इसके अलावा यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से 11वां ज्योतिर्लिंग भी है।

    समुद्रतल से 3553 मीटर (11657 फ़ीट ) की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ मंदिर हिमालय के चौराबारी ग्लेशियर से निकलने वाली मन्दाकिनी नदी के किनारे पर बना हुआ है। ऐसा विश्वास है की यमुनोत्री में बहने वाली यमुना नदी के जल से केदारनाथ में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक करने पर भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त होता है।

    हिन्दू धर्म से जुड़े हुए अनेक पौराणिक ग्रंथो में केदारनाथ का वर्णन बड़े विस्तार से किया गया है।  वायुपुराण में लिखा हुआ है की जब भगवान विष्णु मानव कल्याण के लिए पृथ्वी पर आये थे तो उन्होंने सबसे पहले बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा था। लेकिन बद्रीनाथ में भगवान शिव पहले से ही निवास कर रहे थे, लेकिन भगवान विष्णु के लिए उन्होंने बद्रीनाथ को त्याग दिया और केदारनाथ में निवास करने के लिए चले गए।

    ऐसा माना जाता है की आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में केदारनाथ के जीर्णोद्वार का कार्य करवाया था और मंदिर के पास में ही एक छोटा से मंदिर का निर्माण और करवाया था। ऐसा भी माना जाता है की इसी स्थान पर आदि गुरु शंकराचार्य ने 32 वर्ष के अल्प आयु में समाधि ले ली थी। आदि गुरु शंकराचार्य ने समाधि में लीन होने पहले अपने शिष्य वीर शैव को केदारनाथ मंदिर का रावल घोषित कर दिया था।

    केदारनाथ से जुडी हुई सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों पर युद्ध में अपने ही भाइयों की हत्या करने के पाप चढ़ जाता है।  युद्ध के दौरान की गई भ्रातृहत्या की वजह से भगवान शिव भी पांडवों से नाराज हो जाते है।  भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने का उपाय पाने के लिए पांडव ऋषि व्यास के पास जाते है।

    तब पांडवों के गुरु ऋषि व्यास उन्हें  यह सुझाव देते है की  अगर भगवान शिव सभी भाइयों को आशीर्वाद देते है तो उन सभी को भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति मिल सकती है। अपने गुरु के द्वारा दिए गए सुझाव को मान कर पांडव भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए निकल पड़ते है। लेकिन भगवान शिव पांडवों से इतने ज्यादा नाराज थे की उन्हें जैसे ही यह पता चला की पांडव उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आ रहे है तो वह भेष बदल कर काशी  चले गए।

    पांडव भी भगवान शिव को ढूंढते-ढूंढते काशी पहुँच जाते है।  लेकिन भगवान शिव काशी से अंतर्ध्यान होकर हिमालय के केदारखंड में छुप जाते है। पांडव भगवान शिव को ढूंढते-ढूंढते हिमालय के पहाड़ों में भी पहुंच जाते है। जब पांडव भगवान शिव को ढूंढते हुएहिमालय के केदारखंड पहुँचते है तो भगवान शिव एक बैल का रूप धर कर वहाँ से निकलने का प्रयास करते है।

    लेकिन बैल का रूप धरे हुए भगवान शिव को भीम पहचान लेता है और वो बैल बने हुए भगवान शिव की कूबड़ पकड़ लेता है। भीम के ऐसा करने पर भगवान शिव उस समय पृथ्वी में अंतर्ध्यान हो जाते है लेकिन उनकी कूबड़ वहीँ पर रह जाती है और शरीर के बाकी अंग चार अलग-अलग स्थानों पर प्रकट होते है।

    केदारनाथ के अलावा जिन चार जगहों पर भगवान शिव दोबारा अवतरित हुए वह सभी स्थान आज पंच केदार के रूप में पूजे जाते है। केदारनाथ मंदिर वर्ष में सिर्फ 06 महीने ही श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है और गौरीकुंड से 18 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद आप केदारनाथ पहुँच सकते है। केदारनाथ की पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें 

    बद्रीनाथ – Badrinath in Hindi

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    Badrinath Temple

    उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ भगवान विष्णु समर्पित हिन्दू धार्मिक आस्था के सबसे बड़े केन्द्रो में से एक है। छोटा चार धाम यात्रा का हिस्सा होने के साथ-साथ बद्रीनाथ मंदिर भारत की सबसे बड़ी धार्मिक परिक्रमा मानी जाने वाली चारधाम यात्रा का भी  हिस्सा है। इसके अलावा बद्रीनाथ मंदिर के अलावा उत्तराखंड में भगवान विष्णु को समर्पित 06 अन्य मंदिर और है।

    उत्तराखंड में भगवान विष्णु को समर्पित यह सातों मंदिर सप्त बद्री के नाम से प्रसिद्ध है। बद्रीनाथ मंदिर हिमालय के नर और नारायण नाम के दो पर्वतों के मध्य भाग में बना हुआ एक बेहद प्राचीन मंदिर है। ऐसा माना जाता है की अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु सैदेव ध्यान  मग्न रहते है। इस स्थान का नाम कालातंर में यहाँ पाए जाने वाले बद्री नाम के वृक्ष की वजह से पड़ा है।

    हालाँकि वर्तमान में इस स्थान से बद्री के सभी वृक्ष विलुप्त हो चुके है। इस स्थान से जुडी हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के दर्शन करने के लिए क्षीरसागर आते है तो वह माता लक्ष्मी को पैर दबाते हुए देख लेते है।  ऐसा देखने पर नारद मुनि बड़े चकित होते है। अपने मन की जिज्ञासा मिटाने के लिए नारद मुनि भगवान विष्णु से इसका कारण पूछते है।

    नारद मुनि के द्वारा अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए पूछे गए प्रश्न से भगवान विष्णु अपराध बोध महसूस करते है। अपनी इसी अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु हिमालय में तपस्या करने के लिए चले जाते है। लेकिन जब भगवान विष्णु हिमालय में गहन तपस्या में लीन होते है उसी समय बहुत तेज बर्फ़बारी होने लग जाती है जिससे उनका ध्यान मग्न पूरा शरीर बर्फ में ढक जाता है।

    तपस्या में लीन भगवान विष्णु की ऐसी स्थित देख कर माता लक्ष्मी बड़ी परेशान होती है। भगवान विष्णु की तपस्या में किसी भी प्रकार की बढ़ा उत्पन्न ना हो इसलिए माता लक्ष्मी बद्री नाम के एक विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेती है। अनेक वर्षो के बाद जब भगवान विष्णु अपनी पूरी करते है तो उन्हें पता चलता है की माता लक्ष्मी बर्फ से ढकी हुई है।

    माता लक्ष्मी के इस रूप को देख कर भगवान विष्णु बड़े प्रसन्न होते है और माता लक्ष्मी को बोलते है की आज से इस स्थान पर मेरे साथ आपको भी पूजा जाएगा।  और आपने बद्री नाम के वृक्ष का रूप धर कर मेरी रक्षा की है इसलिए आज से इस स्थान जो बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा। समुद्रतल से 3133 मीटर (10279 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है।

    अलकनंदा नदी हिमालय में बहती हुई आगे चल कर कई नदियों से संगम करके भारत में हिन्दू धर्म की सबसे पवित्र गंगा नदी का रूप धारण कर लेती है। बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण समय वैदिक काल का माना जाता है, बाद में 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर के जीर्णोद्वार का कार्य करवाया था। प्रतिमा बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित मूर्ति भगवान विष्णु के स्वयं प्रकट हुई 08 मूर्तियों में से एक है।

    मंदिर में भगवान विष्णु की अलावा नर और नारायण, माता लक्ष्मी, शिव-पार्वती और गणेश भगवान की मूर्तियां भी स्थापित की गई है। छोटा चार धाम यात्रा के अन्य मंदिरों की तरह बद्रीनाथ मंदिर भी वर्ष में सिर्फ 06 महीने ही श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। बद्रीनाथ मंदिर की पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें 

    छोटा चार धाम यात्रा के दौरान आने वाले पर्यटक स्थल – Places to visit During Chota Char Dham Yatra in Hindi

    देवप्रयाग, पंचप्रयाग, कर्णप्रयाग, चोपता, औली, रुद्रप्रयाग, विष्णुप्रयाग और नन्द प्रयाग।

    छोटा चार धाम यात्रा ट्रेवल गाइड – Chota Char Dham Yatra Travel Tips in Hindi

    01 श्रद्धालु छोटा चार धाम यात्रा के सभी मंदिरों की यात्रा सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही कर सकते है (छोटा चार धाम यात्रा के सभी मंदिरों के कपाट प्रतिवर्ष अप्रैल महीने के अंतिम सप्ताह या मई महीने के पहले सप्ताह में श्रद्धालुओं के लिए खुलते है, और अक्टूबर महीने के अंतिम सप्ताह या नवंबर महीने के पहले सप्ताह में श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद हो जाते है )।

    समुद्रतल से अधिकतम ऊंचाई पर स्थित होने की वजह सर्दीयों के मौसम में छोटा चार धाम यात्रा के सभी मंदिरों के कपाट 06 महीने के लिए बंद रहते है।

    02 मानसून के मौसम के दौरान छोटा चार धाम यात्रा के मंदिरों की यात्रा करने बचना चाहिए। बरसात के मौसम में पहाड़ो में भूस्खलन बहुत ज्यादा होते है।

    03 यात्रा के समय उचित गर्म कपड़े अपने साथ जरूर रखे।

    04 छोटा चार धाम यात्रा के समय अपने सभी तरह के पहचान पत्र जरूर साथ में रखे।

    05 रात के समय गाड़ी चलाने  से बचे।

    06 यात्रा के समय प्राथमिक चिकित्सा किट जरूर साथ में और इसके अलावा जरुरी दवाइयाँ लेना ना भूले।

    07 यात्रा शुरू करने से पहले एक बार अपने  होटल की बुकिंग जरूर चेक करें।  यदि आपने होटल बुक नहीं करवाया है तो बुक करवा ले।

    08 अगर आप अपने साथ किसी भी प्रकार का प्लास्टिक का सामान ले कर जा रहे तो यह सुनिश्चित करें की आप उस प्लास्टिक के सामान को अपने साथ वापस लेकर आये।

    09 छोटा चार धाम यात्रा के सभी मंदिर 3000 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है इसलिए आपका यह यात्रा शुरू करने से पहले शारीरिक रूप से स्वस्थ होना बहुत जरुरी है।

    (अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )

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