बद्रीनाथ मंदिर 2024 | बद्रीनाथ धाम 2024 | बद्रीनाथ का इतिहास | Badrinath Temple 2024 in Hindi | Badrinath Dham Yatra 2024 In Hindi | Badrinath Yatra 2024 in Hindi | History of Badrinath in Hindi | Badrinath Yatra Travel Guide In Hindi | History | Timings
बद्रीनाथ मंदिर – Badrinath Temple in Hindi
भारत में उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ मंदिर हिमालय में बहने वाली अलकनंदा नदी के तट के समीप स्थित भगवान विष्णु को समर्पित सबसे प्रमुख हिन्दू धार्मिक तीर्थ स्थलों में से एक है। आप बद्रीनाथ के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था का अनुमान इस बात से लगा सकते है की वर्ष 2012 में 06 महीने के दौरान 10.6 लाख भक्तो ने बद्रीनाथ भगवान के दर्शन किये थे।
भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ मंदिर हिन्दू धर्म में की जाने वाली सबसे पवित्र चारधाम यात्रा का भी हिस्सा है । इसके अलावा बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड में की जाने वाली छोटा चारधाम यात्रा (केदारनाथ , बद्रीनाथ , गंगोत्री और यमुनोत्री ) का भी हिस्सा है। बद्रीनाथ मंदिर के अलावा द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम भी चारधाम के रूप में पूजनीय है।
इन चारधाम मंदिरो के लिए कहा जाता है की भारत में और विश्व में रहने वाले प्रत्येक हिन्दू को अपने जीवन में एक बार चारधाम यात्रा जरूर करनी चाहिए है। बद्रीनाथ के लिए पुराणों में कहा गया है प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम 02 बार बद्रीनाथ की यात्रा करनी चाहिए। बद्रीनाथ मंदिर के निर्माण का समय 07वीं और 09वीं शताब्दी के आसपास का माना गया है।
बद्रीनाथ मंदिर की समुद्रतल से ऊंचाई मात्र 3133 मीटर (10279 फ़ीट) है। मदिर के आसपास बसे हुए छोटे से शहर को भी बद्रीनाथ के नाम से ही जाना जाता है। पंच केदार मंदिरों की तरह ही बद्रीनाथ मंदिर भी वर्ष में सिर्फ 06 महीनों के लिए ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुला रहता है।
अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से बद्रीनाथ मंदिर और आसपास के क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में बहुत तेज बर्फ़बारी होती है और पारा कई डिग्री माइनस में चला जाता है इस वजह से नवंबर महीने से लेकर मई महीने तक बद्रीनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद रहते है।
उसके बाद जैसे ही गर्मियां शुरू होती है उस समय अप्रैल या मई महीने से लेकर नवंबर महीने तक बद्रीनाथ मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुला रहता है। सर्दियों के मौसम के दौरान बद्रीनाथ मंदिर से भगवान विष्णु की “उत्सव मूर्ति” को जोशीमठ में स्थित नरसिम्हा मंदिर में स्थापित किया जाता है और अगले 06 महीने तक इस मंदिर में विष्णु भगवान की “उत्सव मूर्ति “ की पूजा की जाती है।
बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की “बद्रीनारायण” के रूप में पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के भक्ति बद्रीनाथ को “बद्रीविशाल” के नाम से बुलाना भी बेहद पसंद करते है। मंदिर के गर्भगृह में बद्रीनाथ भगवान की लगभग 01 मीटर ( 3.29 फ़ीट ) ऊँची शालिग्राम पत्थर से बनी हुई प्रतिमा को आदि शंकराचार्य ने 08वीं शताब्दी में मंदिर के पास स्थित नारदकुंड से निकालकर कर स्थापित किया था।
हिन्दू धर्म अनुयायियों का यह मानना है बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित मूर्ति भगवान विष्णु के स्वयं प्रकट हुई 08 मूर्तियों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य के नम्बूदरी संप्रदाय के ब्राम्हण होते है और इनको यहाँ पर को “रावल” कह के पुकारा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर का उल्लेख हिन्दू धर्म के कई प्राचीन ग्रंथो में भी किया गया है ( महाभारत, स्कन्द पुराण और विष्णु पुराण ) ।
बद्रीनाथ की महिमा का वर्णन 08वीं शताब्दी से पहले आलवार संतो द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध में भी किया गया है। पंचकेदार मंदिरो की ही तरह बद्रीनाथ के भी 06 अन्य मंदिर और भी है जिन्हें योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, आदि बद्री, वृद्ध बद्री, श्री ध्यान बद्री और श्री नृसिंह बद्री के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु के इन सातों मंदिरों को सप्त बद्री के नाम से जाना जाता है।
बद्रीनाथ का नामकरण – Name of Badrinath in Hindi
बद्रीनाथ मंदिर हिमालय पर्वत के नर और नारायण नाम के दो पहाड़ो के मध्य भाग में बना हुआ है। बद्रीनाथ मंदिर के आसपास के क्षेत्र को अलग-अलग कालों में अलग-अलग नाम से बुलाया जाता था। स्कन्दपुराण में इस क्षेत्र को “मुक्तिप्रदा” कह कर बुलाया गया है। सतयुग में भी इस स्थान को “मुक्तिप्रदा” ही कहा गया है।
इसके बाद त्रेतायुग में इस क्षेत्र का नाम “योग सिद्ध” और द्वापरयुग में इस क्षेत्र को “विशाला तीर्थ” ओर “मणिभद्र आश्रम” के नाम से पुकारा जाता था। कलयुग आते-आते इस क्षेत्र को “बद्रिकाश्रम” और “बद्रीनाथ” के नाम से जाना जाने लगा। ऐसा भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में एक समय बद्री नाम के विशाल पेड़ होते थे जिस वजह से भी इस क्षेत्र को बद्रीनाथ के रूप में जाना जाता है। हालाँकि वर्तमान में बद्रीनाथ में बद्री नाम का कोई भी पेड़ नहीं पाया जाता है।
बद्रीनाथ की पौराणिक कथा – Legend of Badrinath in Hindi
कथा – 01
बद्रीनाथ मंदिर और इसके आसपास के क्षेत्र के नामकरण के पीछे सबसे ज्यादा प्रचलित कथा के अनुसार – एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के दर्शन करने के लिए क्षीरसागर पधारते है, तो वो वहाँ पर माता लक्ष्मी को भगवान के पैर दबाते हुए देखते है। माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु के पैर दबाते हुए देख नारद मुनि बेहद चकित होते है।
अपनी जिज्ञासा मिटाने के लिये नारद मुनि भगवान विष्णु से इसके बारे में पूछते है तो भगवान विष्णु अपराधबोध से ग्रसित होकर हिमालय में तपस्या करने के लिये चले जाते है। भगवान विष्णु जब हिमालय में गहन तपस्या कर रहे होते है उस समय बहुत ज्यादा मात्रा में हिमपात होने लग जाता है। इस वजह से भगवान विष्णु पूरी तरह से बर्फ में डूब जाते है।
भगवान विष्णु को ऐसी स्थित में देख कर माता लक्ष्मी परेशान हो जाती है। भगवान विष्णु को हिमपात से बचाने के लिए माता लक्ष्मी स्वयं बद्री के वृक्ष का रूप लेकर उनके पास खड़ी हो जाती है और सारी हिम वर्षा आप अपने ऊपर सहन करने लग जाती है। इस प्रकार माता लक्ष्मी बद्री नाम के वृक्ष का रूप धर कर भगवान विष्णु को सर्दी, गर्मी और बारिश के मौसम से बचाने की कठोर तपस्या शुरू कर देती है।
बहुत वर्ष बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु अपनी तपस्या पूरी करके के अपनी आँखों को खोलते है यह देखते है कि माता लक्ष्मी बर्फ से ढकी हुई है। माता लक्ष्मी की इस कठोर तपस्या को देखकर भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को कहते है कि “है देवी लक्ष्मी, आपने मेरे ही समान तपस्या की है, इस वजह से आज से इस स्थान पर मेरे साथ आपको भी पूजा जाएगा।
क्योंकि आपने बद्री नाम के वृक्ष का रूपधर मेरी रक्षा की इस वजह से अब से इस स्थान को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।
कथा – 02
बद्रीनाथ से जुडी हुई एक अन्य पौराणिक लोककथा के अनुसार बद्रीनाथ और इसके आसपास का क्षेत्र एक समय पर भगवान शिव की भूमि केदारखंड के रूप में जाना जाता था। कहा जाता है जब गंगा नदी इस धरती पर अवतरित हुई थी वो अपने वेग को कम करने के लिए 12 धाराओं में बँट गई। उन 12 धाराओं में से जो धारा इस स्थान पर बहने लगी उसे अलकनंदा के नाम से जाना गया।
उसी समय पर भगवान विष्णु ध्यानयोग करने के लिए धरती पर एक उचित स्थान ढूंढ रहे थे। तब भगवान विष्णु की नजर अलकनंदा नदी के तट के पास स्थित इस स्थान पर पड़ी। और उसी समय यह स्थान भगवान विष्णु के मन को भा गया। उस समय भगवान शिव और माता पार्वती इस स्थान निवास किया करते थे।
इस वजह से भगवान विष्णु बाल रूप में अवतरित हुए और जोर-जोर से रोने लगे। एक बालक को रोना सुनकर माता पार्वती इस बालक को चुप करवाने के लिए आती है। उसी समय अवसर पाकर भगवान विष्णु बाल रूप में माता पार्वती से ध्यान योग करने के लिए यह स्थान मांग लेते है। माता पार्वती छोटे बालक जो चुप करने के लिए यह स्थान ध्यानयोग करने के लिए उस नन्हें बालक को दे देती है।
कहते है उस समय के बाद से इस स्थान को बद्री विशाल के नाम से जाना जाता है।
कथा – 03
हिन्दू धर्म के एक प्रमुख ग्रन्थ विष्णु पुराण में बद्रीनाथ से जुडी हुई और एक पौराणिक कथा सुनने को मिलती है। विष्णु पुराण में उल्लेखित पौराणिक कथा के अनुसार नर और नारायण, धर्म के पुत्र थे। नर और नारायण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। नर और नारायण, इन दोनों ने धर्म का विस्तार करने के लिए इस स्थान पर कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी।
नर और नारायण दोनों ने ही स्वयं के आश्रम की स्थापना हेतु वृद्ध बद्री, योग बद्री ध्यान बद्री ओर भविष्य बद्री नामक स्थानों पर तलाश की। कुछ समय के बाद उपयुक्त स्थान की तलाश करते हुए नर और नारायण को अलकनंदा नदी के पास में गर्म और ठंडे पानी की धारा बहती हुई मिलती है। दोनों भाइयों ने इसी स्थान पर अपने आश्रम की स्थापना की। कहते है कि कुछ समय के बाद यह स्थान बद्रीनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
कुछ अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार वेदव्यास जी इस स्थान पर महाभारत लिखी थी। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के समय नर और नारायण ने ही कृष्ण और अर्जुन के रूप में जन्म लिया था। महाभारत के समय से जुड़ी हुई एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों ने इस स्थान पर आकर अपने पितरों का पिंडदान किया था।
आज भी बद्रीनाथ के पास स्थित ब्रम्हाकपाल नाम की जगह पर तीर्थयात्री और स्थानीय निवासी अपनी पितरों का पिंडदान किया करते है।
बद्रीनाथ का ग्रंथों में वर्णन – Description of Badrinath in Texts in Hindi
हिन्दू धर्म के कई धार्मिक और वैदिक ग्रंथों में बद्रीनाथ का वर्णन किया गया है। महाभारत, विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भागवत पुराण और वराह पुराण में विस्तार से बद्रीनाथ का उल्लेख देखने को मिलता है। इसके अलावा 1750 से लेकर 500 ईसा पूर्व के समय लिखे गए कई वैदिक ग्रंथों में भी बद्रीनाथ का वर्णन मिलता है।
07वीं ओर 09वीं शताब्दी के मध्य में आलवार संतो द्वारा रचित “नालयिर दिव्य प्रबंध ग्रंथ” में भी बद्रीनाथ मंदिर की महिमा का वर्णन किया है। संत पेरियालवार बद्रीनाथ पर 07 स्त्रोत समर्पित किये है और वहीं पर तिरुमंगई आलवार ने इस मंदिर पर 13 स्त्रोत समर्पित किये है। बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्यदेशम मंदिरों में से भी एक है।
बद्रीनाथ का इतिहास – History of Badrinath in Hindi
इतिहासकारों में बद्रीनाथ मंदिर के निर्माण के संबंध में अलग-अलग मत है। कुछ इतिहासकारों और उपलब्ध स्त्रोतों के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर 08वीं शताब्दी से पहले एक बौद्ध मठ था। जिसे बाद में हिन्दू धर्म गुरु शंकराचार्य ने एक हिन्दू मंदिर के रूप में स्थापित किया। बद्रीनाथ मंदिर के एक बौद्ध मठ होने की संभावना के पीछे सबसे बड़ा कारण इस मंदिर की वास्तुकला मानी जाती है।
इतिहासकारों के अनुसार मंदिर की वास्तु कला किसी बौद्ध विहार से हूबहू मिलती है जिस वजह से यह मंदिर किसी प्राचीन बौद्ध मंदिर के सामान प्रतीत होता है। कई अन्य स्रोतों के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने 09वीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों में इस मंदिर की स्थापना की थी। यह भी माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इस स्थान पर 06 वर्षों के लिये प्रवास किया था।
इन 06 वर्षों की अवधि के दौरान वह 06 महीनों के लिए बद्रीनाथ और बाकी के 06 महीनों के लिए केदारनाथ में रहा करते थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा का निर्माण स्वयं देवताओं ने किया था। कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने इस मूर्ति को अलकनंदा में फेंक दिया था।
उसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की प्रतिमा को दोबारा ढूंढ कर तप्त कुंड नामक गर्म पानी की धारा के पास स्थित गुफा में स्थापित किया। कुछ समय के बाद भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा को वापस इस स्थान से हटा दिया जाता है जिसे तीसरी बार तप्त कुंड से ढूंढ रामानुजाचार्य द्वारा तीसरी बार इसकी स्थापना की जाती है।
बद्रीनाथ मंदिर कर निर्माण से जुड़ी हुई सबसे पारंपरिक कथा के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने परमार वंश के शासक राजा कनक पाल के सहयोग से इस क्षेत्र से बौद्धों को बाहर निकाल दिया था। बौद्धों को इस क्षेत्र से बाहर निकालने के बाद राजा कनक पाल और उनको उत्तराधिकारियों ने मंदिर के प्रबंध की पूरी व्यवस्था संभाली।
मंदिर के खर्च सही तरीके से चलते रहे इसलिए गढ़वाल के राजाओं ने गाँवो के एक समूह का गठन बनाया। इस समूह के अंदर मंदिर के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं के रास्ते मे कई गाँव बसाये गए। इन गाँवो से होने वाली आय का उपयोग श्रद्धालुओं के ठहरने और खाने जैसी सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए किया जाने लगा।
जैसे-जैसे समय बीतता गया उसके साथ-साथ परमार शासकों “बोलांद बद्रीनाथ” का नाम ग्रहण कर लिया। इसके अलावा उस समय पर गढ़वाल राज्य के राज सिंहासन को “बद्रीनाथ की गद्दी” के नाम से जाना जाने लगा था। इस समय तक जब भी श्रद्धालु भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए जाते थे तब यात्रा शुरू करने से पहले गढ़वाल को राजा को श्रद्धा अर्पित किया करते थे। यात्रा से पहले राजा को श्रद्धा अर्पित करने की प्रथा 19वीं शताब्दी तक जारी थी।
भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा को गुफा से वर्तमान मंदिर में स्थापित करने का कार्य 16वीं शताब्दी में गढ़वाल के तत्कालीन राजा के द्वारा किया गया था। मंदिर निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने मन्दिर में स्वर्ण से बनी हुई छत्र चढ़ाई थी। अंग्रेजों के शासन के समय गढ़वाल राज्य को दो भागों में बांट दिया गया।
इसके बद्रीनाथ मंदिर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया था। लेकिन मंदिर अब भी मंदिर के प्रबंध समिति का अध्यक्ष गढ़वाल का राजा ही बनता था। बद्रीनाथ मंदिर एक बेहद प्राचीन मंदिर है इसके अलावा इस क्षेत्र में हिमस्खलन और तूफान भी आते रहते है इन सभी तरह की प्राकृतिक आपदाओं की वजह से मुख्य मंदिर का अनेको बार नवीनीकरण किया जा चुका है।
17वीं शताब्दी में गढ़वाल राजाओं ने मंदिर का विस्तार किया था। 1803 में बद्रीनाथ मंदिर और इसके आसपास के क्षेत्र में बहुत तेज भूकंप आया था जिसकी वजह से मुख्य मंदिर को बहुत नुकसान हुआ था इसके बाद जयपुर के तत्कालीन राजा ने मंदिर का पुननिर्माण कार्य करवाया था। मंदिर के पुनर्निर्माण का 1870 तक चल रहे थे।
इतने सारे पुनर्निर्माण कार्यों के बाद अंततः प्रथम विश्वयुद्ध के समय बद्रीनाथ मंदिर पूरी तरह से निर्मित हो गया था। मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इस स्थान पर एक छोटा सा नगर भी बन गया था साथ में मंदिर के कर्मचारियों के रहने के लिये 20 आवास भी बनाये गए थे। उसके बाद मंदिर के आसपास के क्षेत्र में निर्माण कार्य ने गति पकड़ ली थी।
अत्यधिक निर्माण कार्य होने की वजह से 2006 में तत्कालीन राज्य सरकार ने बद्रीनाथ मंदिर और इसके आसपास के क्षेत्र को नो-कंस्ट्रक्शन जोन घोषित कर दिया।
बद्रीनाथ मंदिर की भौगोलिक स्थिति – Geography of Badrinath Temple in Hindi
हिमालय ऊँची और गहन पर्वतश्रृंखलाओं के मध्य में स्थित बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। मंदिर के आसपास बसे हुए छोटे से शहर को भी बद्रीनाथ के नाम से ही जाना जाता है। मुख्य रूप से यह मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय के क्षेत्र में आता है। हिमालय पर्वत की घाटी में स्थित बद्रीनाथ मंदिर की समुद्रतल से ऊंचाई 3133 मीटर (10279 फ़ीट) है।
बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर बना हुआ है जो कि आगे जा कर अलग-अलग नदियों से संगम करके भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा का रूप ले लेती है। अलकनंदा नदी के पास में ऋषिगंगा नदी भी बहती है। इन दोनों नदियों का संगम मंदिर के सामने स्थित नर और नारायण पर्वत के पास में होता है। मंदिर के ठीक नीचे तप्त कुंड नाम की जगह है जो कि इस स्थान पट गर्म पानी का स्त्रोत भी है।
वास्तव में यह एक सल्फर युक्त पानी जो कि एक औषधि के रूप में भी कार्य करता है। श्रद्धालुओं में यह विश्वास है कि तप्त कुंड में स्नान करने के बाद ही बद्रीनाथ के दर्शन करने चाहिए। मंदिर के पास में पानी के दो छोटे-छोटे तालाब भी बने हुए है जिन्हें सूर्य कुंड और नारद कुंड के नाम से जाना जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर की वास्तुशैली – Architure of Badrinath Temple in Hindi
बद्रीनाथ मंदिर नदी के किनारे पर बना हुआ है और नदी से मंदिर की ऊँचाई लगभग 50 मीटर है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार नदी की और खुलता है। मुख्य मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है गृभगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप। मंदिर के बाहरी ढाँचा पत्थरों से बनाया गया है और इसमें बनी हुई खिडकियां धनुषाकार की है। मंदिर में प्रवेश के लिए मुख्य द्वार जिसे सिंह द्वार कहा जाता है।
मंदिर का प्रवेश द्वार धनुषाकार बना हुआ जिसके सबसे ऊपरी भाग पर तीन स्वर्ण कलश स्थापित किये गए है। द्वार से मंदिर में प्रवेश करने पर मंडप आता है जो कि स्तम्भों से भरा हुआ एक हॉल है। मंडप से होते हुए आप गृभगृह की तरफ बढ़ते है। मंडप में बने हुए स्तम्भों पर बेहद महीन और जटिल नक्काशी की गई है।
अगर आप को मंदिर में किसी भी प्रकार की विशेष पूजा और आरती करवानी हो तो आप इस मंडप में करवा सकते है। सभा मंडप में मंदिर के धर्माधिकारी, रावल और वेदपाठी विद्वानों के बैठने की व्यवस्था की गई है। मन्दिर के गृभगृह की छत शंकुधारी आकर में बनी हुई है जो कि 15 मीटर लंबी है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा 01 मीटर ऊंची है जो कि शालीग्राम पत्थर से बनी हुई है।
बद्रीनाथ की प्रतिमा को बद्री वृक्ष के नीचे सोने की चंदवा में रखा गया है। भगवान बद्रीनाथ के श्रद्धालुओं का विश्वास है कि मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की उन 08 स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक है। भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा के कुल चार हाथ है – जिनमे से दो हाथ ऊपर उठे हुए है पहले हाथ मे शंख पकड़ा हुआ है और दूसरे हाथ चक्र है।
इसके अलावा बाकी के दोनों हाथों को भगवान बद्रीनाथ ने योगमुद्रा की स्थित में अपने गोद मे रखा हुआ है। भगवान बद्रीनाथ के ललाट पर एक हीरा भी जड़ा हुआ है। बद्रीनाथ मंदिर के गृभगृह में भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा के अलावा नर, नारायण, कुबेर, उद्धव, नारद और कुबेर की प्रतिमाओं की भी पूजा की जाती है।
इन सब के अलावा माता लक्ष्मी, गरुड़ और माता दुर्गा की नवदुर्गा स्वरूप की प्रतिमाएं भी स्थापित की हुई है। मंदिर परिसर में गृभगृह के अलावा आदि गुरु शंकराचार्य, वेदांत देशिक, लक्ष्मी-नृसिंह, रामानुजाचार्य, नर – नारायण और पांडुकेश्वर क्षेत्र के लोकदेवता घण्टाकर्ण की मूर्तियाँ भी स्थापित की गई है। बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित सभी मूर्तियाँ शालीग्राम पत्थर से निर्मित की गई है।
बद्रीनाथ मंदिर में त्योहार – Festival in Badrinath Temple in Hindi
वैसे तो बद्रीनाथ मंदिर में हिन्दू धर्म से जुड़े हुए सभी त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते है लेकिन माता मूर्ति का मेला नाम का पर्व बद्रीनाथ का सबसे प्रमुख त्यौहार माना जाता है।
इस पर्व के समय भगवान बद्रीनाथ की माता की पूजा की जाती है जिसमे स्थानीय निवासी और श्रद्धालु बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते है। इसके अलावा जून महीने में आयोजित जाना जाने वाले 08 दिवसीय बद्री केदार त्यौहार भी बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। 08 दिन तक चलने वाला बद्री केदार उत्सव बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों मंदिरों में सयुंक्त रूप से मनाया जाता है।
इस समय इन दोनों मंदिरों में देशभर से आये हुए कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते है जिसे श्रद्धालुओं और स्थानीय निवासियों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर में आरती का समय – Badrinath Temple Aarti Timings in Hindi
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट सुबह 04:30 बजे ही खुल जाते है। इस समय की जाने वाली आरती में भगवान बद्रीनाथ महाअभिषेक और अभिषेक किया जाता है साथ मे गीतापाठ और भागवत पूजा का उच्चारण भी किया जाता है। श्रद्धालुओं के लिए बद्रीनाथ भगवान के दर्शन सुबह 7-8 बजे के आसपास खुलते है जो कि दोपहर के 01:00 बजे तक ही खुले रहते है।
इसके बाद दोपहर के 01:00 बजे से लेकर शाम को 04:00 बजे तक मंदिर के कपाट बंद रहते है। शाम को 04:00 बजे से लेकर रात को 09:00 बजे तक मन्दिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुला रहता है। संध्या काल के समय बद्रीनाथ मंदिर में गीत गोविंद और आरती को उच्चारण किया जाता है।
2022 में बद्रीनाथ मंदिर खुलने का समय – Badrinath Temple Opening Date 2022 in Hindi
सर्दियों के मौसम में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए 06 महीने तक बंद रहते है। सर्दियों के मौसम भगवान बद्रीनाथ की उत्सव मूर्ति को बद्रीनाथ से 40 किलोमीटर दूर जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में ले जाया जाता है। इसके बाद अगले 06 महीने तक भगवान बद्रीनाथ की उत्सव मूर्ति की सेवा नरसिंह मंदिर में की जाती है।
उसके बाद गर्मियों के मौसम में अक्षय तृतीया के समय शुभ महूर्त देखकर मंदिर के कपाट खोलने की घोषणा की जाती है। वर्ष 2022 में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 08 मई 2022 को सुबह 06:15 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये जायेंगे।
2022 में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने का समय – Badrinath Temple Closing Date 2022 in Hindi
सर्दियों के मौसम में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बन्द करने की घोषणा दीवाली के बाद आने वाली भाई दूज से पहले या फिर बाद में की जाती (संभवत अक्टूबर और नवंबर माह) है। जिस दिन बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद किये जाते है उस समय एक दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी भरकर मंदिर के गृभगृह में 06 महिने के लिये अखंड ज्योत प्रज्वलित की जाती है।
अखंड ज्योत प्रज्वलित करने के उपलक्ष्य में उस समय मंदिर के पुजारियों के द्वारा मंदिर के प्रबंध समिति के सदस्यों और तीर्थयात्रियों के सामने एक विशेष आरती भी आयोजित की जाती है। गर्मियों के मौसम में जब बद्रीनाथ मंदिर के कपाट दोबारा श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले जाते है उस समय अखंड ज्योत के दर्शन करने के लिए मंदिर परिसर में भारी संख्या में श्रद्धालु इकट्ठा होते है।
बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी – Badrinath Temple Priest in Hindi
बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी केरल के नंबूदरी समुदाय के ब्राम्हण है। बद्रीनाथ मंदिर के अभिलेखों में दर्ज है कि मंदिर के परंपरागत पुजारी भगवान शिव के तपस्या करने वाले ही होते थे, उस समय इन सभी पुजारियों को दण्डी सन्यासी कह कर संबोधित किया जाता था।
1776 ईस्वी में मंदिर के मुख्य पुजारी की बीना किसी उत्तराधिकारी के ही मृत्यु हो गई थी, तो उस समय गढ़वाल के तत्कालीन राजा ने केरल में रहने वाले नंबूदरी समुदाय के गैर-सन्यासी ब्राह्मण को ही मंदिर का मुख्य पुजारी बनाया था।
बद्रीनाथ में कहाँ रुके – Hotels in Badrinath in Hindi
भारत के प्रमुख धार्मिक पर्यटक स्थल में से एक बद्रीनाथ के आसपास के क्षेत्र और बद्रीनाथ नगर में बहुत सार होटल और धर्मशालाएं भी हुई है। अगर आप किसी ट्रेवल एजेंसी की साथ बद्रीनाथ की यात्रा कर रहे है तो वो आपके लिए पहले से बद्रीनाथ में होटल बुक करके रखते है। इसके अलावा अगर आप चाहे तो ऑनलाइन होटल बुकिंग वेबसाइट और ऍप्स की सहायता से भी अपने लिए होटल बुक करवा सकते है।
बद्रीनाथ में बहुत सारी धर्मशालाएं भी बनी हुई उनके फ़ोन नंबर आपको इंटरनेट पर उपलब्ध मिल जाएंगे। आप बद्रीनाथ पहुँचने से पहले धर्मशाला में फ़ोन करके भी अपने लिए रूम बुक करवा सकते है। अगर आप ऑफ सीजन में बद्रीनाथ की यात्रा कर रहे है तो आप बद्रीनाथ पहुँच कर भी अपने लिए होटल या धर्मशाला में रूम बुक करवा सकते है।
बद्रीनाथ में भोजन – Local Food in Badrinath in Hindi
एक विश्व प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल होने की वजह से बद्रीनाथ मंदिर के आसपास बहुत सारे भोजनालय और रेस्टोरेंट बने हुए है। इन सभी भोजनालय में आपको उत्तराखंड का प्रसिद्ध पहाड़ी फ़ूड, उत्तर भारतीय भोजन और दक्षिण भारतीय व्यंजन का आनंद ले सकते है।
बद्रीनाथ के पास धार्मिक पर्यटक स्थल – Religious Tourist Places Near Badrinath in Hindi
तप्त कुंड, चरणपादुका , माता मूर्ति मंदिर, ब्रह्म-कपाल और शेषनेत्रमाता मूर्ति मंदिर, ब्रह्म-कपाल, नीलकंठ शिखर, वेद व्यास गुफा, साँपों का जोड़ा, वसुधारा झरना, सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी), सप्त बद्री और शेषनेत्र।
बद्रीनाथ कैसे पहुँचे – How To Reach Badrinath in Hindi
हवाई मार्ग से बद्रीनाथ कैसे पहुँचे – How To Reach Badrinath By Air in Hindi
बद्रीनाथ के सबसे नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। देहरादून एयरपोर्ट से बद्रीनाथ की दूरी मात्र 314 किलोमीटर है। देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट भारत के सभी प्रमुख हवाई अड्डों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ से आपको बद्रीनाथ के लिए टैक्सी और कैब सेवा बड़ी आसानी से मिल जाएगी।
रेल मार्ग से बद्रीनाथ कैसे पहुँचे – How To Reach Badrinath By Train in Hindi
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन बद्रीनाथ के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से बद्रीनाथ की दूरी मात्र 295 किलोमीटर है। ऋषिकेश भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशन से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश से आपको बद्रीनाथ के लिए बस, टैक्सी और कैब सेवा उपलब्ध मिल जाएगी।
सड़क मार्ग से बद्रीनाथ कैसे पहुँचे – How To Reach Badrinath By Road in Hindi
बद्रीनाथ सड़क मार्ग के द्वारा उत्तराखंड के सभी प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। दिल्ली (आईएसबीटी कश्मीरी गेट बस स्टेशन), हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून जैसे शहरों से आपको नियमित रूप से बस, टैक्सी और कैब सेवा उपलब्ध रहती है। आप चाहे तो अपने निजी वाहन के द्वारा भी बद्रीनाथ बड़ी आसानी पहुँच सकते है।
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