चंबा के 12 पर्यटक स्थल 2024 | चंबा हिमाचल प्रदेश | 12 Tourist Places to Visit in Chamba in Hindi 2024 | Chamba Tourism in Hindi 2024 | Chamba in Hindi | Best Time To visit Chamba in Hindi | Things to do in Chamba in Hindi | Chamba Travel Guide in Hindi
चंबा का इतिहास – History of Chamba in Hindi
चंबा हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख शहर होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है। हिमाचल के कई प्रमुख पर्यटक स्थल जैसे डलहौजी, खज्जियार और धर्मशाला यह सारे शहर चंबा से मात्र कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रावी नदी के किनारे पर बसा हुआ चंबा शहर अपने प्राकृतिक दृश्यों के अलावा यहाँ पर बने हुए प्राचीन मंदिरों की वजह से भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है।
समुद्रतल से 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चंबा हिमाचल के सबसे प्राचीन शहरों में से एक माना जाता है। मूलरूप से चंबा की स्थापना 10वीं शताब्दी (920 ईस्वी) में राजा साहिल वर्मन ने की थी उन्होंने इस नगर का नाम अपनी एकलौती पुत्री चंपावती के नाम रखा था। अगर हम थोड़ा चंबा के इतिहास के बारे में थोड़ा और जानने का प्रयास करते है तो हमें यह पता चलता है की कई ऐतिहासिक अभिलेखों में इस जगह पर दूसरी शताब्दी के आसपास कोलियन जनजातियों के निवास स्थान होने का उल्लेख भी किया गया है।
लगभग 500 ईसा पूर्व इस क्षेत्र पर राजू मारू के द्वारा शासन किया जाता था। उस समय राजू मारू चंबा से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भरमौर का राजा था जिसने आगे चलकर चंबा को अपनी राजधानी बनाया। ऐसा माना जाता है की राजू मारू के बाद उसके वंश के लगभग 67 राजाओं ने चंबा पर शासन किया था। हालाँकि कई मुगल और विदेशी आक्रांताओं जैसे अकबर और औरंगजेब ने समय समय पर चंबा पर अधिकार करने के लिए आक्रमण किये थे, लेकिन वो लोग कभी भी चंबा पर अधिकार करने में सफल नहीं हो पाये।
औपनिवेशिक काल में 1846 से लेकर 1947 तक अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर शासन किया था। उसके बाद भारत की स्वंतंत्रता के बाद 15 अप्रैल 1948 को चंबा का विलय भारत में हो गया। चंबा में कई प्राचीन महल और मंदिर बने हुए है जिन्हें देखने के लिए पूरे साल पर्यटक चंबा आते रहते है। महलों और मंदिरों के अलावा चंबा में “सुहि माता मेला” और “मिंजर मेला” भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है।
कई दिनों तक चलने वाले इन मेलों में प्रतिदिन कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन सांस्कृतिक में स्थानीय और बाहर के कलाकारों द्वारा संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियां दी जाती है। हिमाचल का यह प्राचीन शहर अपनी लोककला और शिल्प के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। 17वीं और 19वीं के समय चंबा के कलाकारों द्वारा बनाई गई पहाड़ी पेंटिंग्स पूरे विश्व में आज भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है।
मणिमहेश झील – Manimahesh Lake in Hindi
चंबा से 52 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मणिमहेश झील हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मणिमहेश झील का निर्माण भगवान शिव ने पार्वती माता से विवाह के बाद करवाया था। इसी वजह से मणिमहेश झील का धार्मिक महत्व मानसरोवर झील के बराबर माना गया है।
हिमालय की पीर पंजाल रेंज में स्थित मणिमहेश झील की समुद्रतल से ऊंचाई 4080 मीटर (13386 फ़ीट) है। मणिमहेश झील में प्रतिवर्ष अगस्त और सितंबर महीने में आने वाली अमावस्या के आठवें दिन बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। साल के इस समय की जाने वाली यात्रा को “मणिमहेश यात्रा” कह जाता हैI
मणिमहेश झील की यात्रा के लिये वैसे तो कई पारम्परिक ट्रेक बने हुए है लेकिन मणिमहेश झील तक पहुँचने का सबसे आसान रास्ता चंबा से आप सबसे पहले भरमौर जाये और वहां से आप मणिमहेश आसानी पहुँच सकते है।
भूरी सिंह संग्रहालय चंबा – Bhuri singh Museum Chamba in Hindi
लगभग 100 साल से भी ज्यादा पुराने भूरी सिंह संग्रहालय का निर्माण 14 सितंबर 1908 को पूरा किया गया था। ब्रिटिश शासनकाल में बना हुआ भूरी संग्रहालय पूरे हिमाचल प्रदेश में आकर्षण का प्रमुख केंद्र माना जाता है। संग्रहालय के निर्माण में तत्कालीन राजा भूरी सिंह और डॉ. जे. वोगेल ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
राजा भूरी सिंह के नाम पर ही इस संग्रहालय का नाम भूरी सिंह संग्रहालय रखा गया था। इस संग्रहालय में 8500 से अधिक प्राचीन और मध्यकालीन शासकों द्वारा उपयोग में ली जाने वस्तुओं का संग्रह किया गया है। संग्रहालय में नक्काशीदार दरवाजे, वेशभूषा, ताम्रपत्र, हथियार,बसोहली पेंटिंग्स, वाद्ययंत्र, दुर्लभ शारदा लिपि, भित्ति चित्र, स्मारक पत्थर, शाही आभूषण और गुलेर कांगड़ा चित्र आदि का विस्तृत संग्रह देखने को मिल जाता है।
हिमाचल और चंबा की प्राचीन संस्कृति और इतिहास को नजदीक से जानने के लिए सबसे अच्छी जगह है। संग्रहालय में पर्यटकों के लिये प्रवेश शुल्क मात्र 20/- है। संग्रहालय सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम को 05:00 बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है।
भूरी सिंह संग्रहालय चंबा देखने का समय – Bhuri singh Museum Chamba Timings in Hindi
संग्रहालय सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम को 05:00 बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है।
भूरी सिंह संग्रहालय चंबा में प्रवेश शुल्क – Bhuri singh Museum Chamba Entry Fee in Hindi
संग्रहालय में पर्यटकों के लिये प्रवेश शुल्क मात्र 20/- है।
अखंड चंडी महल चंबा – Akhand Chandi Mahal Chamba in Hindi
अखंड चंडी महल मध्यकालीन समय में बना हुआ चंबा का सबसे पुराना महल है। इस महल का निर्माण चंबा के तत्कालीन शासक राजा उम्मेद सिंह ने 1747-1765 के समय करवाया था। उसके कुछ समय बाद औपनिवेशिक काल में राजा शाम सिंह ने ब्रिटिश इंजीनियरों की सहायता से अखंड चंडी महल का पुनर्निर्माण कार्य करवाया था।
19वीं शताब्दी (1879 ईस्वी) में एक ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन मार्शल के द्वारा इस महल में दरबार हॉल (मार्शल हॉल) का निर्माण भी करवाया। राजा भूरी सिंह के शासनकाल के दौरान इस महल में जानना महल का निर्माण भी करवाया था। भारत की स्वंतंत्रता के बाद 1958 में तत्कालीन अखंड चंडी महल के राजा ने इस महल को हिमाचल प्रदेश की सरकार को बेच दिया था।
उसके कुछ समय बाद राज्य सरकार ने इस महल को जिला पुस्तकालय और सरकारी कॉलेज में बदल दिया था। अखंड चंडी महल से चामुंडा देवी मंदिर, रंग महल, बंसी गोपाल मंदिर, सुई माता मंदिर और लक्ष्मी नारायण मंदिर के दृश्य बहुत ही सुंदर दिखाई देते है। अखंड चंडी महल के निर्माण में मुगल और ब्रिटिश वास्तुकला का प्रभाव झलकता है।
महल की छत को हरे रंग में रंगा गया है, शंकु आकार में बनी हुई महल की छत का प्रभाव चंबा के स्थानीय घरों में भी दिखाई देता है।
अखंड चंडी महल चंबा देखने का समय – Akhand Chandi Mahal Chamba Timings in Hindi
दिन के किसी भी समय।
अखंड चंडी महल चंबा में प्रवेश शुल्क – Akhand Chandi Mahal Chamba Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
चंपावती मंदिर चंबा – Champavati Temple Chamba in Hindi
चंबा के संस्थापक राजा साहिल वर्मन ने 10वीं शताब्दी (920 ईस्वी) में अपनी पुत्री की याद में चंपावती मंदिर का निर्माण करवाया था। चंपावती मंदिर चंबा के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। मंदिर के निर्माण में नेपाली वास्तुकला का उपयोग किया गया है। मंदिर के शिखर भाग पर एक बड़ा पहिया बना हुआ है जो की इस मंदिर को चंबा के अन्य मंदिरों से अलग बनाता है।
और इस बड़े और गोल पहिये की वजह से मंदिर का शिखर भाग पर्यटकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है। वास्तु और प्रसिद्धि के मामले में यह मंदिर चंबा के लक्ष्मी नारायण मंदिर के समान माना जाता है। चंपावती मंदिर के गृभगृह में देवी दुर्गा के नौ अवतारों में से एक महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। मंदिर परिसर में वासुकी नाग और वज़ीर के मंदिर भी निर्मित किये गए है।
वैसे तो पूरे वर्ष श्रद्धालु चंपावती मंदिर में दर्शन करने के लिए आते रहते है लेकिन नवरात्र के समय मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देवी दुर्गा के दर्शनों के लिये इकट्ठी होती है। पुरातात्विक महत्व का मंदिर होने की वजह से मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा की जाती है।
चंपावती मंदिर चंबा में दर्शन का समय – Champavati Temple Chamba Timings in Hindi
श्रद्धालु और पर्यटक दिन के किसी भी समय मंदिर में दर्शन करने के लिए जा सकते है।
चंपावती मंदिर चंबा में प्रवेश शुल्क – Champavati Temple Chamba Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
चौगान चंबा – Chaugan Chamba in Hindi
चंबा शहर के केंद्र में बना हुआ चौगान ग्राउंड एक समतल मैदान है। यह मैदान अखंड चंडी महल के ठीक सामने की तरफ बना हुआ है, औपनिवेशिक काल में इस मैदान का निर्माण ब्रिटिश अधिकारियों के खेलने और मनोरंजन करने के लिए करवाया गया था। चौगान मैदान एक चौकोर ग्राउंड है जो की 800 मीटर लंबा है और 80 मीटर चौड़ा है।
वर्तमान में चौगान मैदान का उपयोग राज्य स्तरीय खेल कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन करने के लिए किया जाता है। चंबा के प्रसिद्ध मिंजर मेले का आयोजन भी चौगान मैदान में ही किया जाता है। चंबा की प्रसिद्ध चप्पलों के अलावा स्थानीय हस्तशिल्प से निर्मित वस्तुयें, पत्थर और धातु से बनी हुई कलाकृतियां खरीदने के लिए चौगान एक उपयुक्त जगह माना जाता है।
चौगान के पास से आप चंबा की पहाड़ी पेंटिंग्स और कांगड़ा पेंटिंग्स भी खरीद सकते है। स्थानीय निवासी गर्मियों के मौसम में चौगान मैदान में पिकनिक मनाने की लिए उपयोग करते है। चौगान मैदान के चारों तरफ प्रशासनिक कार्यालय और शॉपिंग सेंटर बने हुए है। शांत और सुकून भरा दिन निकालने के लिए चौगान मैदान चंबा में सबसे अच्छी जगह माना जाता है।
चौगान चंबा देखने का समय – Chaugan Chamba Timings in Hindi
दिन के किसी भी समय।
चौगान चंबा में प्रवेश शुल्क – Chaugan Chamba Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
हरिराय मंदिर चंबा – Hariraya Temple Chamba in Hindi
चंबा में सेंट्रल पार्क के पास स्थित हरिराय मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी के समय करवाया गया था। प्राचीन हरिराय मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर के गृभगृह में स्थापित भगवान विष्णु की प्रतिमा अष्ठ धातु से बनी हुई है। गृभगृह में विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति के चार भुजाएँ है और तीन मुहँ बने हुए है।
मूर्ति के बाईं और बना हुआ मुहँ भगवान विष्णु के वराह अवतार को प्रदर्शित करता है और दाहिनी तरफ बना हुआ मुहँ नरसिम्हा अवतार को प्रदर्शित करता है। मंदिर परिसर में भगवान विष्णु के अलावा भगवान शिव, सूर्य देव और अरुणा की मूर्तियाँ भी स्थापित की गई है। मुख्य मूर्ति को विभिन्न प्रकार के सुंदर आभूषणों से सजाया गया है जैसे अंगूठी, मोतियों की माला, हार, कंगन, कुंडल और आर्मलेट।
एक प्रसिद्ध प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल होने की वजह से हरिराय मंदिर में श्रद्धालुओं एयर तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। श्रद्धालु और तीर्थयात्री सुबह 06:30 बजे से लेकर दोपहर के 12:30 बजे तक मंदिर में दर्शन कर सकते है और दोपहर के 02:30 बजे से लेकर रात को 08:00 बजे तक दर्शन कर सकते है।
हरिराय मंदिर चंबा में दर्शन का समय – Hariraya Temple Chamba Timings in Hindi
श्रद्धालु और तीर्थयात्री सुबह 06:30 बजे से लेकर दोपहर के 12:30 बजे तक मंदिर में दर्शन कर सकते है और दोपहर के 02:30 बजे से लेकर रात को 08:00 बजे तक दर्शन कर सकते है।
हरिराय मंदिर चंबा में प्रवेश शुल्क – Hariraya Temple Chamba Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
वज्रेश्वरी मंदिर चंबा – Vajreshvari Temple Chamba in Hindi
चंबा के जनसाली बाजार के पास में स्थित वज्रेश्वरी मंदिर लगभग 1000 वर्ष से अधिक पुराना चंबा का एक प्राचीन मंदिर है। स्थानीय निवासी वज्रेश्वरी देवी को बिजली की देवी के रूप में पूजते है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वज्रेश्वरी देवी माता पार्वती का ही अवतार है। मंदिर में देवी वज्रेश्वरी की पूजा माता पार्वती के उग्र रूप में की जाती है।
मंदिर निर्माण में हिमाचल की पारम्परिक वास्तुकला का उपयोग किया गया है। मंदिर के शिखर का निर्माण पारम्परिक वास्तु शैली में करवाया गया है, मंदिर निर्माण में बहुत ही महीन और जटिल कारीगरी का प्रदर्शन किया गया है। पत्थर के अलावा मंदिर निर्माण में लकड़ी का भी उपयोग किया गया है। मंदिर के भीतरी भाग में लकड़ी पर की गई महीन नक्काशी आपका ध्यान आकर्षित कर सकती है।
मंदिर की भीतरी दीवारों पर हिन्दू धर्म के अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उक्केरी हुई है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर अठारह शिलालेख उक्केरे हुए है। इन सब के अलावा वज्रेश्वरी देवी मंदिर की सुरक्षा के लिए मंदिर के प्रवेश द्वार पर पत्थर से बनी हुई शेरों की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की गई है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास में नागरखाना या फिर एक ड्रम हाउस भी बना हुआ है।
मंदिर के गृभगृह में देवी दुर्गा की विशाल मूर्ति को स्थापित किया गया है इसके अलावा मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की शेर पर बैठे हुए है प्रतिमा भी स्थापित की गई है। मंदिर के भीतरी भाग में स्थापित भगवान विष्णु की प्रतिमा तीन मुहँ वाली है जिन्हें- वराह, मानव और नरसिम्हा अवतार के रूप में जाना जाता है। मार्च के महीने में आने वाली अमावस्या और नवरात्र के समय मंदिर में बहुत बड़े मेले का आयोजन भी किया जाता है।
वज्रेश्वरी मंदिर चंबा में दर्शन का समय – Vajreshvari Temple Chamba Timings in Hindi
दिन के किसी भी समय।
वज्रेश्वरी मंदिर चंबा में प्रवेश शुल्क – Vajreshvari Temple Chamba Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
सुई माता मंदिर चंबा – Sui Mata Temple Chamba in Hindi
चंबा के मुख्य शहर से मात्र 1.2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राचीन सुई माता मंदिर स्थानीय लोगों के लिए श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। चंबा शहर के पास में स्थित शाह मदार नाम की छोटी सी पहाड़ी पर सुई माता मंदिर का निर्माण चंबा के संस्थापक राजा साहिल वर्मन के द्वारा करवाया गया था।
शाह मदार पहाड़ी की चोटी से चंबा शहर के बहुत ही सुंदर 360° डिग्री दृश्य दिखाई देते है। मुख्य मंदिर तीन भागों में बंटा हुआ है जिसमे पहला भाग मुख्य मंदिर है जिसका निर्माण चंबा के राजा सरत जीत सिंह की पत्नी रानी सारदा ने करवाया था। दूसरा भाग मंदिर की और जाने का रास्ता है और तीसरा और अंतिम भाग चंबा की रानी सुई देवी को समर्पित स्मारक है। चंबा के साहो गांव में बना हुआ प्राचीन मंदिर राजा साहिल वर्मन की पत्नी रानी सुई देवी के बलिदान के सम्मान में समर्पित है।
मंदिर का वास्तु बहुत ही आकर्षक है, मंदिर परिसर में रानी सुई देवी के जीवन को दर्शाती हुई बहुत ही सुंदर पेंटिंग्स बनी हुई है। प्रतिवर्ष 15 मार्च से लेकर अप्रैल माह के पहले सप्ताह तक एक बहुत ही विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जो की चंबा की रानी सुई देवी को समर्पित होता है। वार्षिक मेले के समय स्थानीय विवाहित महिलायें और बालिकाएं नए कपड़े पहन कर रानी सुई देवी को प्रसाद चढ़ाने के लिये मंदिर आया करती है।
मंदिर निर्माण से जुड़ी हुई पौराणिक कथा के अनुसार चंबा के राजा साहिल वर्मन के शासनकाल के समय इस स्थान पर कई वर्षों तक बारिश नहीं हुई थी तो राजा साहिल वर्मन ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिये कई तरह के प्रयास किये लेकिन उन्हें किसी भी तरह की सफलता प्राप्त नहीं हुई। बारिश नहीं होने की वजह से राजा ने अपना सिहांसन छोड़ दिया लेकिन उसके बाद भी कई वर्षों तक इस क्षेत्र में बारिश नहीं हुई।
अंत में थकहार कर राजा ने पंडितों से सलाह लेनी की सोची। पंडितों ने बहुत विचार विमर्श करने के बाद एक निर्णय लिया की राजा अगर अपनी पत्नी या पुत्र में से किसी की बलि देते है तो इस क्षेत्र में पानी की कोई कमी नहीं रहेगी। राजा साहिल वर्मन के लिए अपनी पत्नी या पुत्र दोनों में से किसी एक की भी बलि देना बहुत ज्यादा मुश्किल था लेकिन फिर भी अपनी प्रजा की भलाई के लिए उन्होंने ने अपने पुत्र की बलि देने का निर्णय लिया।
लेकिन राजा साहिल वर्मन की पत्नी सुई देवी अपने पुत्र का बलिदान नहीं कर सकती थी इसलिए उन्होंने अपने पुत्र के बदल स्वयं अपना बलिदान प्रजा की भलाई के लिए कर दिया। रानी सुई देवी के बलिदान के बाद उनकी पार्थिव देह को वर्तमान मंदिर वाले स्थान पर दफनाया दिया गया। रानी के बलिदान के कुछ समय के बाद ही इस क्षेत्र में बहुत जोरों से बारिश होने लगी। कहा जाता है की रानी सुई देवी के बलिदान के बाद इस जगह पर कभी भी पानी की कमी नहीं हुई।
सुई माता मंदिर चंबा में दर्शन का समय – Sui Mata Temple Chamba Timings in Hindi
श्रद्धालु और पर्यटक दिन के किसी भी समय सुई देवी मंदिर में दर्शन करने के लिए जा सकते है।
सुई माता मंदिर चंबा में प्रवेश शुल्क – Sui Mata Temple Chamba Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
भरमौर, चंबा – Bharmour, Chamba in Hindi
चंबा से 64 किलोमीटर की दुरी पर स्थित भरमौर एक छोटा सा शहर है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार भरमौर चंबा की प्राचीन राजधानी माना जाता है। समुद्रतल से भरमौर की ऊंचाई लगभग 2133 मीटर (7000 feet) है। वैसे तो भरमौर में हिमालय के पहाड़ो में बसा हुआ छोटा मगर बहुत ही सुन्दर शहर है लेकिन उसका बाद भी यह शहर अपने ऐतिहासिक, पौराणिक महत्व और प्राचीन मंदिरो के कारण पर्यटकों के बीच में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है।
शहर के मध्य भाग में स्थित लगभग 1400 वर्ष पुराना चौरासी मंदिर इस जगह के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है, चौरासी मंदिर के अलावा यहाँ पर बने हुए कई मंदिर 10वीं शताब्दी के आसपास के माने जाते है। पौराणिक कथाओ के अनुसार भरमौर को भगवान शिव के निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है की भगवान शिव कैलाश पर्वत से उतरकर इस जगह पर स्थित घास के मैदानों में घूमने के लिए आया करते थे।
भरमौर हिमालय की धौलाधर और पीरपंजाल पर्वत श्रृंखला और रावी नदी और चिनाब घाटी के बीच में बसा हुआ है। इस छोटेसे शहर के मैदानी इलाके अल्पाइन चरगाहों और चरवाहों के लिए स्वर्ग के समान है। यहाँ पर बने हुए सीढ़ीदार खेत और तलहटी में स्थित बागान बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते है। अपनी सांस्कृतिक धरोहर, पौराणिक मान्यता, परम्परागत जीवन शैली और प्राचीन इतिहास की वजह से भरमौर एक अध्भुत प्राकृतिक और सांस्कृतिक पर्यटक स्थल का समृद्ध मिश्रण बन जाता है।
थाला झरना चंबा – Thala Waterfall Chamba In Hindi
भरमौर से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थाला झरना एक बहुत ही खूबसूरत बारह महीने बहने वाला झरना है। नदी के पास स्थित यह झरना थाला पुल से मात्र 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। इस झरने की सबसे खास बात यह है की यह मॉनसूनी झरना नहीं है बल्कि यह झरना पूरे साल बहता रहता है।
इसलिए अगर आप को साल के किसी भी वक़्त बहता हुआ झरना देखना चाहते है तो आप भरमौर के पास स्थित थाला झरना देखने आ सकते है। थाला झरने से मात्रा 1 किलोमीटर की दूरी पर दो और खूबसूरत झरने और बहते है जिन्हें छो छन्दू झरना (Chho Chhandu water fall) और घरेड़ झरना (Ghraed waterfall) कहा जाता है। थाला झरने के पास बने हुए एक छोटे से पुल से आप झरने को बेहद नजदीक देख सकते है।
आप को थाला झरने में नहाने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। थाला झरने का पानी बहुत ऊंचाई से गिरता है जिसकी वजह से झरने में नहाने वाले व्यक्ति को चोट लग सकती है। दूसरा कारण यह है की थाला झरने का पानी ऊपर से इतनी तेजी से गिरता है जिससे की झरने में उच्च दबाव बन जाता है इस वजह से झरने में नहाने वाला व्यक्ति झरने के तल तक खिंचा जा सकता है।
हाँ अगर आप को बहुत अच्छे से तैरना आता है तभी आप झरने में तैरने का मन बना सकते है। अपने परिवार या मित्रों के साथ भरमौर से थाला झरने की यात्रा आप के लिए सुखद अनुभव प्रदान करने वाली यात्रा होगी।
थाला झरना चंबा देखने का समय – Thala Waterfall Chamba Timings In Hindi
दिन के किसी भी समय।
थाला झरना चंबा में प्रवेश शुल्क – Thala Waterfall Chamba Entry Fee In Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
हदसर झरना चंबा – Hadsar Waterfall Chamba In Hindi
चंबा से लगभग 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हदसर एक छोटासा शहर है। अधिकांश पर्यटक यहाँ पर अपनी मणिमहेश झील की यात्रा के समय रुकना पसंद करते है। कुछ लोग हदसर को मणिमहेश यात्रा का बेस कैम्प भी कहते है और कुछ इस छोटे से शहर को झरनों का घर भी कहते है।
हदसर का सबसे प्रसिद्ध झरना हदसर झरना कहलाता है। हिमालय के पहाड़ो से घिरा हुआ यह झरना प्राकृतिक रूप से बेहद सुंदर है। अपनी मणिमहेश यात्रा के समय अगर आप हदसर झरना देखना चाहते है तो आप छोटा ट्रेक करके इस झरने तक बड़ी आसानी से पहुँच सकते है।
हदसर झरना चंबा देखने का समय – Hadsar Waterfall Timings Chamba In Hindi
दिन के किसी भी समय।
हदसर झरना चंबा में प्रवेश शुल्क – Hadsar Waterfall Entry Fee Chamba In Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
मिंजर मेला चंबा – Minjair Festival Chamba in Hindi
मिंजर एक प्रकार की रेशम की लटकन होती है जिसे चंबा के पुरूष और महिलाओं द्वारा पहना जाता है। चंबा के स्थानीय निवासी मिंजर मेले को एक बहुत बड़े त्याहौर के रूप में मानते है। मिंजर मेला स्थानीय लोगों की खेती से जुड़ा हुआ त्याहौर है, इस मेले को स्थानीय निवासी खुशहाली और समृद्धि के त्याहौर के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मानते है।
स्थानीय निवासी हिन्दू कैलेंडर के श्रावण मास (जुलाई और अगस्त महीना) के दूसरे रविवार के दिन को इस मेले के लिए शुभ दिन मानते है। चंबा के चौगान मैदान में इस मेले का आयोजन एक हफ़्ते तक किया जाता है। मेले के समय चौगान मैदान में अनेक प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन पूरे सप्ताह किया जाता है जिनमें स्थानीय लोक कलाकार बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते है।
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार 935 ईस्वी में चंबा के तत्कालीन राजा जब त्रिगर्त (वर्तमान कांगड़ा) के राजा को युद्ध में हरा कर वापस आये थे तब स्थानीय लोगों ने राजा का स्वागत धान और मक्के के बंडलों से किया था। वर्तमान में चंबा के खेतों से मक्के और धान की फसल तैयार हो जाती है तो उसके बाद स्थानीय लोग इस मेले का आयोजन करते है। चंबा का मिंजर मेला पूरे हिमाचल प्रदेश में बहुत प्रसिद्ध है यही कारण है की मिंजर मेले को हिमाचल के राज्य मेले की मान्यता भी प्रदान की गई है।
चंबा घूमने का सबसे अच्छा समय – Best time to visit Chamba in Hindi
वैसे तो आप चंबा घूमने के लिए साले के किसी भी समय आ सकते है। अगर आप को बहुत तेज ठंड पसंद नहीं है तो आप अप्रैल से लेकर जून महीने में किसी भी समय चंबा घूमने के लिए आ सकते है। इसके अलावा आप को अगर चंबा के खूबसूरत नजारे देखने है तो आप मानसून के समय भी चंबा घूमने आ सकते है।
मानसून के समय चंबा में हरी भरी वादियों के दृश्य बहुत खूबसूरत दिखाई देते है। चंबा में सर्दियों के मौसम में बहुत तेज ठंड पड़ती है इसलिये यहाँ पर आने से पहले आप अपने साथ बहुत सारे गर्म कपड़े जरूर लेकर आये। आप की किस्मत अच्छी हुई तो सर्दियों के मौसम में आप को बर्फबारी भी देखने के लिए मिल सकती है।
चंबा में होटल – Hotel in Chamba in Chamba
चंबा हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख जिला है साथ में ही एक प्रमुख पर्यटक स्थल भी है। चंबा जिले के आसपास हिमाचल के कई प्रमुख पर्यटक स्थल है जैसे डलहौजी, खज्जियार, मैक्लोडगंज और धर्मशाला। एक प्रमुख पर्यटक स्थल और हिमाचल के अनेक पर्यटक स्थलों का केंद्र होने की वजह से चंबा में ठहरने के लिये कई होटल बने हुए है।
आप चाहे तो आप सीधा चंबा पहुँच कर भी अपने लिए होटल बुक करवा सकते है और आप चाहे तो किसी ट्रेवल एजेंसी के द्वारा भी अपने लिए होटल में रूम बूक करवा सकते है। चंबा में होटल बुकिंग करने के लिए ढ़ेर से वेबसाइटस और मोबाइल एप्पलीकेशन उपलब्ध है आप उनके द्वारा भी अपने लिए चंबा में होटल बूक करवा सकते है।
चंबा में भोजन – Foods in Chamba in Hindi
चंबा में वैसे तो फ़ास्ट फ़ूड और चाइनीज़ फ़ूड के बहुत सारे विकल्प उपलब्ध है लेकिन चंबा यात्रा के समय आप को यहाँ का स्थानीय भोजन भी ट्राय करना चाहिए। हिमाचली खाने के अलावा आप यहाँ स्थानीय तरीके से बनने वाले राजमा, चावल, चन्ना, दही और कढ़ी का आनंद ले सकते है।
चंबा कैसे पहुँचे – How to reach Chamba in Hindi
हवाई जहाज से चंबा कैसे पहुँचे – How to reach Chamba by Flight in Hindi
अगर आप हवाईजहाज से चंबा आना चाहते है तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पठानकोट एयरपोर्ट है। चंबा से पठानकोट एयरपोर्ट की दूरी 118 किलोमीटर है। पठानकोट के अलावा आप अमृतसर एयरपोर्ट और चंडीगढ़ एयरपोर्ट से भी बड़ी आसानी से चंबा पहुँच सकते है। चंबा से अमृतसर की दूरी 217 किलोमीटर है और चंबा से चंडीगढ़ की दूरी 333 किलोमीटर है।
सड़क मार्ग से चंबा कैसे पहुँचे – How to reach Chamba By Road in Hindi
चंबा के नजदीकी राज्य जैसे दिल्ली, हरियाणा और पंजाब से हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की बसें नियमित रूप से चलती है। इसके अलावा कई निजी बस संचालक भी दिल्ली, चंडीगढ़, पठानकोट, शिमला, कांगड़ा, सोलन, धर्मशाला और अमृतसर से चंबा के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध करवाते है। आप अपने निजी वाहन से चंबा बहुत आसानी से पहुंच सकते है इसके अलावा टैक्सी के द्वारा भी बड़ी आसानी से चंबा पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग से चंबा कैसे पहुँचे – How to reach Chamba By Train
चंबा के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पंजाब का पठानकोट रेलवे स्टेशन है। भारत के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशन से पठानकोट के लिए नियमित रूप से ट्रैन चलती है। पठानकोट से आप बड़ी आसानी से चंबा पहुँच सकते है।
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )