28 अप्रैल 1959 को तिब्बत की निर्वासित सरकार की स्थापना हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर के उपनगर मैक्लोडगंज में की गई। वर्तमान में तिब्बत से विस्थापित हो कर आये लोगो की एक बहुत बड़ी आबादी यहाँ रहती है। यहाँ के स्थानीय निवासी और तिब्बती लोग मैक्लॉडगंज को “लिटिल ल्हासा” के नाम से भी जानते है। डलहौज़ी और धर्मशाला के जैसे मैक्लॉडगंज भी औपनिवेशिक काल के समय अस्तित्व में आया था।
एक ब्रिटिश अधिकारी और पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर डोनाल्ड फ्रिल मैक्लॉड के नाम पर इस शहर का नामकरण किया गया है। हिमालय की धौलाधार पर्वतशृंखला में स्थित मैक्लॉडगंज की समुद्रतल से ऊंचाई 2082 मीटर ( 6831 फ़ीट ) है। 1850 में जब दूसरा एंग्लो-सिख युद्ध हुआ तो उसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने धौलाधार पर्वतश्रंखला की ढलान पर स्थित काँगड़ा के आसपास के पहाड़ों में सैनिक छावनी बनाने का निर्णय लिया।
काँगड़ा के पास स्थित पहाड़ों में जिस स्थान पर ब्रिटिश अधिकारीयों ने सैनिक छावनी बनाने का निर्णय लिया था उस जगह पर एक हिन्दू धर्मशाला बनी हुई थी, इसलिए उस जगह का नाम धर्मशाला रख दिया गया। औपनिवेशिक काल के समय धर्मशाला एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बन गया था और गर्मियों के मौसम के समय ब्रिटिश अधिकारी यहाँ पर समय बिताना बहुत पसंद करते थे।
1840 के बाद से काँगड़ा जिला मुख्यालय बहुत ज्यादा व्यस्त हो गया था इस वजह से अंग्रेजो ने अपने दो रेजिमेंट को धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया। धर्मशाला में पहली सैनिक छावनी 1849 में बनाई गई थी और 1852 में धर्मशाला को काँगड़ा जिले की प्रशासनिक राजधानी बना दिया गया। 1855 में इस जगह पर दो नागरिक बस्ती और स्थापित की गई मैक्लोडगंज और फोर्सिथ गंज इन दोनों बस्तियों का नाम ब्रिटिश अधिकारीयों के नाम पर रखा गया।
1862-63 में भारत के ब्रिटिश वायसराय लार्ड एल्गिन को यह क्षेत्र इतना पसंद आया की उन्होंने इस जगह जो भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का सुझाव दिया था। 1905 में आये विनाशकारी भूकंप ने इस जगह पर बहुत ज्यादा नुकसान किया था, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भूकंप में 19800 लोग मारे गए थे और हजारों की संख्या में घायल हुए थे।
इस भूकंप में धर्मशाला और मैक्लोडगंज में औपनिवेशिक काल के समय बनी हुई इमारतों और कई प्राचीन धार्मिक स्थल को भी बहुत नुकसान पहुँचा था। 1959 के समय एक और ऐतिहासिक घटनाक्रम यहाँ पर घटित हुआ। तिब्बत के 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ आंदोलन किया जिसमे वह असफल हो गए उसके बाद उन्होंने ने तिब्बत से भाग कर भारत में शरण ली।
1960 में मैक्लोडगंज को तिब्बत की निर्वासित सरकार की राजधानी बनाया गया। उसके बाद से ही मैक्लोडगंज दलाई लामा को आधिकारिक निवास स्थान बन गया और इसके अलावा तिब्बत से आये हुए अनेक बौद्ध और तिब्बती शरणार्थियों का घर भी बन गया। वर्तमान में मैक्लोडगंज में अनेक बौद्ध मठ बने हुए है और इस वजह से यह छोटा सा पहाड़ी शहर बौद्ध और तिब्बत समुदाय से जुड़े हुए लोगो के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल बन गया।
आज मैक्लोडगंज, धर्मशाला का उपनगर होने के बावजूद भी अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हुआ है और साथ में हिमाचल प्रदेश के एक प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में भी जाना जाता है।