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    रणथंभौर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल 2024 | Ranthambore Fort Travel Guide in Hindi 2024

    14 Mins Read

    रणथंभौर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल 2024 | Places to visit in Ranthambore Fort 2024 in Hindi | Ranthambore Fort Travel Guide 2024 in Hindi | Things to do in Ranthambore Fort 2024 in Hindi | Ranthambore Fort 2024 in Hindi | History | Rajasthan Tourism | Entry Fees | Best Time To Visit

    Entrance Gate in Ranthambore Fort

    राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले से 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित रणथम्भौर वन्यजीव अभ्यारण Ranthambore Wildlife Sanctuary के बारे में पूरी दुनिया में हर कोई जानता होगा। यह रणथम्भौर वन्यजीव अभ्यारण  Ranthambore National Park  यहाँ रहने वाले बाघों के कारण बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है , और यहाँ आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र भी यह वन्यजीव अभ्यारण्य रहता है।

    लेकिन क्या आपको इस वन्यजीव क्षेत्र में स्थित विशाल ऐतिहासिक दुर्ग के बारे में पता है। यहाँ आने वाले बहुत कम सैलानियों को यह पता है की इस जगह राजस्थान का एक सबसे बड़ा दुर्ग  (forts of Rajasthan) भी है जो कभी जयपुर के महाराजों का पसंदीदा शिकारगाह हुआ करता था ।

    और उससे भी पहले यह दुर्ग राजस्थान की राजनीतिक और ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि का केन्द्र हुआ करता था। तो चलिए वन्यजीव अभ्यारण्य घूमने से पहले रणथम्भौर के इस ऐतिहासिक दुर्ग का इतिहास पता कर लेते है।

    रणथंभौर किले का इतिहास – Ranthambore Fort History in Hindi

    Ruins of Ranthambore Fort

    2013 में विश्व धरोहर समिति की 37 वीं बैठक के अंदर सवाई माधोपुर के साथ पांच और किलों को (कुंभलगढ़, जयपुर, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, जैसलमेर) यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के रूप में  मान्यता प्रदान की गई।

    किले के शोधकर्ताओं और पुरातत्व वेत्ताओं के अनुसार 944 ईस्वी मैं सपलदक्ष के शासन के दौरान इस किले का निर्माण शुरू किया गया। कुछ अन्य इतिहासकारों का मानना है कि जयंत के शासनकाल में 1110 ईसवी में इस किले का निर्माण शुरू हुआ था। और राजस्थान सरकार के अंबर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण ने यह संभावना जताई है कि रणथम्भौर दुर्ग का निर्माण सल्पालक्ष  के समय 10 वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुआ और कुछ सदियों तक इसका निर्माण कार्य चलता रहा।

    शुरुआत  में इस किले का नाम  रणथम्भौर नहीं था। इस किले को रणस्तंभ या रणस्तंभपूरा कहा जाता था,12वीं शताब्दी में चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज प्रथम का झुकाव जैन धर्म की तरफ बढ़ा, उसी समय जैन संत सिद्धसेनसूरी ने इस जगह को जैनियों का पवित्र तीर्थ स्थल भी घोषित कर दिया|

    1192 में भारत के हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और विदेशी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी के बीच में तराइन का युद्ध हुआ, उस युद्ध के दौरान मोहम्मद गोरी ने धोखे से पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया, इस हार के बाद पृथ्वीराज चौहान के पुत्र गोविंद राज ने रणथम्भौर को अपनी राजधानी बनाया।

    पृथ्वीराज चौहान के पुत्र गोविंद राज के अलावा इस जगह पर कई और हिंदू राजाओं और मुस्लिम शासकों ने भी इस किले पर शासन किया, इनमे से राणा सांगा, महाराणा कुम्भा, हम्मीर देव चौहान,राव सुरजन हाडा और मुगल शासकों में शेरशाह सुरी,अलाउद्दीन खिलजी ने भी समय-समय इस दुर्ग पर शासन किया । लेकिन राणा हम्मीर देव चौहान का शासनकाल रणथम्भौर दुर्ग का सबसे प्रसिद्ध शासन काल माना जाता है।

    हम्मीर देव का शासन काल 1282 ईस्वी से लेकर 1301 ईस्वी तक रहा, हम्मीर देव के 19 वर्ष के शासनकाल के समय रणथम्भौर की ख्याति चारों और फेल गई, अपने शासनकाल में हम्मीर देव ने कुल 17 युद्ध किये जिनमे से उन्हें 13 युद्ध में विजय प्राप्त हुई। मेवाड़ के राणा सांगा जब खानवा के युद्ध में घायल हो गए थे, उस समय इलाज के लिए राणा ने कुछ समय इस दुर्ग में बिताया था।

    हम्मीर देव के शासन से पहले रणथम्भौर दुर्ग पर बहुत सारे बाहरी आक्रमण हुए। और आने वाले समय में यह दुर्ग लगातार युद्ध के दंश झेलता रहा, इस दुर्ग पर आधिपत्य जमाने के लिए राजपूत और मुगल शासकों ने लगातार आक्रमण किये। कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर मुगल शासक अकबर के समय तक इस दुर्ग पर अनेको बार हमले हुए। इन आक्रमणों की शरुआत 1192 में पृथ्वीराज चौहान की मुहम्मद गौरी से युद्ध में हार मिलने के बाद यह क्रम शुरू हुआ जो 18वीं शताब्दी तक लगातार चलता रहा।

    पृथ्वीराज की मृत्यु के पश्चात 1209 चौहानो ने महुम्मद गौरी पर इस दुर्ग अधिकार करने के लिए वापस आक्रमण कर दिया और दुबारा इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया | इस युद्ध के बाद क्रमश इस पर अनेक आक्रमण हुए , दिल्ली के शासक  इल्तुतमीश ने 1226 में आक्रमण किया ,उसके बाद इल्तुतमीश की मौत के बाद  1236 में रजिया सुल्तान ने  यहाँ  पर कब्ज़ा कर लिया , 1248-58 में बलबन ने भी इस जगह पर कई बार आक्रमण किये , 1290-1292 में जलालुद्दीन खिल्जी ने भी दुर्ग  आक्रमण किये , 1301 में अलाऊद्दीन खिलजी ने इस के अलावा उस ने  दो बार और आक्रमण किये , इस सब के  बाद 1325 में फ़िरोजशाह तुगलक , 1489 में मालवा के मुहम्म्द खिलजी , 1529 में मेवाड़ के  महाराणा कुम्भा , 1530 में गुजरात के बहादुर शाह  और 1543 में शेरशाह सुरी ने आक्रमण किये।

    1569  अकबर ने  उस समय  की आमेर रियासत के राजाओ  के साथ मिल कर  आक्रमण   दिया  और उस समय के रणथम्भौर  दुर्ग के  तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली। 17 वीं शताब्दी में यह किला जयपुर के कछवाहा महाराजाओं के आधीन हो गया और उसके पश्चात यह किला भारत की  स्वतंत्रता तक जयपुर रियासत रियासत  का  हिस्सा बना रहा।

    समय के साथ यह किला और किले के आसपास का क्षेत्र जयपुर के महाराजाओं की पसंदीदा शिकारस्थली  बन गया। 18 वीं शताब्दी में  सवाई माधोसिंह ने मुग़ल शासको विनती करके रणथम्भौर के आस पास के गांव का विकाश करना शुरू कर दिया जिससे इस किले को भी काफी मजबूती मिली और समय के साथ इन गांव  का नाम बदल कर सवाई माधोपुर कर दिया गया |  1964 के बाद से ही ये किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में है।

    रणथंभौर किले में घूमने की जगह – Places to visit in Rantambore Fort in Hindi

    View from Ranthambore Fort

    रणथंभौर किला – Rantambore Fort in Hindi

    वैसे यहाँ वाला पर्यटक अपने मन में यही विचार लेकर आता है,  की यहाँ पहुँच कर  उन्हें  रणथंभौर वन्यजीव अभ्यारण Ranthambore Wildlife Sanctuary की जंगल सफारी करनी  है  , और यही सोचता है की सिर्फ एक  बार बाघ दिख जाये | लेकिन अगर आप यहाँ आते हो और रणथंभौर दुर्ग नहीं देखते तो आप बहुत कुछ छोड़ देते हो , वैसे तो मैंने अच्छे से इस दुर्ग का इतिहास आप को बताने की कोसिस की है , लेकिन अगर आप यहाँ आते है और इस दुर्ग को देखते है तो आप को ज्यादा अच्छा लगेगा  और आप  इस  दुर्ग के इतिहास को महसूस कर पाएंगे |

    घने जंगल के बीच में बना हुआ यह किला आप को तब तक है दिखाई नहीं देता जब तक इसके नजदीक नहीं पहुँच जाते |  समुद्रतल से इस दुर्ग की ऊंचाई मात्र 1578 फ़ीट है, दुर्ग की चढाई करना ज्यादा मुश्किल नहीं है |  एक बार किले के  ऊपर पहुंच जाने के बाद आप को  रणथंभौर वन्यजीव अभ्यारण Ranthambore Wildlife Sanctuary के बहुत ही सुन्दर दृश्य दिखाई देते जिन्हे आप अपने कैमरे  में जरूर  क़ैद करना चाहेंगे |

    रणथंभौर दुर्ग की  ऐतिहसिक धरोहर – Heritage of Ranthambore Fort in Hindi

    2013 में विश्व धरोहर समिति World Heritage Committee की 37 वीं बैठक के अंदर सवाई माधोपुर जिले में स्थित  रणथंभौर दुर्ग को यूनेस्को विश्व विरासत स्थल UNESCO World Heritage Site के रूप में  मान्यता प्रदान की गई। यहाँ स्थित वन्यजीव अभ्यारण्य की वजह से आज यह जगह पुरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखती है |

    लगभग 1000 साल से भी ज्यादा पुराना यह किला अपने अंदर बहुत साड़ी ऐतिहासिक धरोहर को संजोये हुए है | किले का आप जब प्रवेश करते है तो सबसे पहले आप नौलखा गेट  से इस किले में प्रवेश करते है, उस के बाद आप क्रमश बत्तीस खंबा, अन्नपूर्णा मंदिर, जैन मंदिर, रानी हवेली और राजस्थान के सबसे पुराने गणेश मंदिर जैसी ऐतिहासिक विरासत देखने को मिलती है |

    बादल महल रणथंभौर किला  – Badal Mahal Ranthambore Fort in Hindi


    Badal Mahal Ranthambore Fort | Click on Image For Credits

    राणा हम्मीर देव द्वारा निर्मित बादल महल समय के साथ खँडहर में बदल गया है, लेकिन इस दुर्ग के भव्यता को आज भी प्रदर्शित करता है , हम्मीर देव द्वारा निर्मित 84 स्थंभ छत्तरी आज भी यहाँ पर बनी हुई है| राणा हम्मीर देव इसी जगह से अपनी सभा को सम्बोधित किया करते थे | “बादलों के महल” “Palace of Clouds” नाम से प्रसिद्ध ये महल किले के उत्तरी भाग में  स्थित है |

    रणथंभौर दुर्ग में मंदिर – Temple in Ranthambore Fort In Hindi


    Jain temple In Ranthambore Fort | Click on Image For Credits

    रणथंभौर दुर्ग के अंदर आप को हिन्दू और जैन धर्म से जुड़े हुए मंदिर देखने को मिलते है| इस किले में भगवन शिव, गणेश जी और रामलाल जी के तीन हिन्दू मंदिर देखे को मिलते है | इन मंदिर का  निर्माण 12 वीं और 13 वीं शताब्दी में यहाँ पास के करौली जिले में मिलने वाले लाल पत्थर से करवाया गया है | इस किले के अंदर आप को जैन धर्म  से जुड़े हुए कुछ मंदिर देखने को मिलते है,  किले के अंदर  भगवान सम्भवनाथ और 5 वें जैन तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ के जैन मंदिर का निर्माण हो रखा है |

    त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथंभौर – Trinetra Ganesh Temple Ranthambore in Hindi


    Ganesh Temple in Ranthambore Fort | Click on Image For Credits

    रणथंभौर किले के पिछले भाग में स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर इस मंदिर के श्रद्धालुओं में यह मंदिर “रणतभँवर” के नाम से भी प्रसिद्ध है, मान्यता के अनुसार यह प्राचीन गणेश मंदिर भारत का सबसे पुराने मंदिर में से एक है|  इस मंदिर में भगवान गणेश   तीन नेत्र वाले रूप में विराजमान  है|  जिसके कारण इन्हे त्रिनेत्र गणेश जी कहा जाता है , गणेश जी की इस मूर्ति को मिलाकर कुल चार  और गणेश प्रतिमाएं इस देश में अलग अलग जगह पर मौजूद है|

    राणा हम्मीर देव द्वारा निर्मित इस मंदिर से जुडी हुई कहानी  अनुसार  जब विदेशी आक्रांता  अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले पर कब्ज़ा करने के लिए कई महीनो तक इस किले को घेरे रखा तब राणा हम्मीर देव को सपने में भगवान गणेश ने दर्शन दिए| और राजा हम्मीर देव को  उनकी पूजा करने के लिए कहा, तब सपने में बताये गए  स्थान के अनुसार जब  राणा हम्मीर देव  उस जगह पहुँचते तो उन्हें वहां पर गणेश  भगवान प्रतिमा मिलती है| तब राणा हम्मीर देव उस स्थान पर भगवान गणेश के  मंदिर का निर्माण करवाते है |

    इस मंदिर को लेकर भक्तो की आस्था ऐसी है की अगर हिन्दू परिवार के अंदर कोई भी शुभ कार्य होता है , चाहे  शादी  हो या बच्चे जन्म सभी शुभ कार्य के लिए भगवन गणेश के इस मंदिर पुरे वर्षभर निमंत्रण  पत्र आते रहते  है , भक्तो  मान्यता है की  करने से भगवान स्वयमं उन्हें आश्रीवाद देने आएंगे और उनकी सभी मनोकामनएं पूरी होगी |  आज भी इस मंदिर में हमेशा ढेर सारे पत्र डाक और कूरियर से आते रहते है |

    त्रिनेत्र गणेश के  रूप  में विराजमान भगवान गणेश की तीसरे नेत्र को ज्ञान का प्रतिक माना गया गया है , इस मंदिर में भगवान अपने पुरे परिवार के साथ विराजमान है उनकी दोनों पत्निया रिद्धि और सिद्धि साथ में ही भगवान के दोनों पुत्र  शुभ और लाभ के दर्शन इस मंदिर में होते है| पुरे भारत के यह एकलौता मंदिर है जहाँ पर भगवान गणेश अपने पुरे परिवार के साथ  विराजमान है |

    पुरे देश में ऐसे चार गणेश  मंदिर है| जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी का स्थान सबसे प्रथम है। इस गणेश मंदिर के अलावा बाकि गणेश मंदिर देश के अन्य राज्यों में स्थित है जिनमे सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को हर साल मंदिर में बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है  जिसमें लाखों गणेश भक्त भगवान के दर्शन करने के लिए आते है|

    त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथंभौर में दर्शन का समय – Trinetra Ganesh Temple Ranthambore Timings in Hindi

    त्रिनेत्र गणेश मंदिर में दर्शन और आरती समय का प्रतिदिन सुबह 6 बजे, सुबह 9 बजे, दोपहर 6:30 बजे और रात 8 बजे रहता है|

    त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथंभौर में प्रवेश शुल्क – Trinetra Ganesh Temple Ranthambore Entry Fee in Hindi

    प्रवेश निःशुल्क।

    पदम तालाब रणथंभौर – Padam Talab Ranthambore in Hindi

    Ranthambore Wildlife Sanctuary
    Ranthambore Wildlife Sanctuary view from Ranthambore Fort

    पदम तालाब रणथंभौर वन्यजीव अभ्यारण की सबसे बडी झील है, यह  झील चारों तरफ घने जंगल और पहाड़ो घिरी हुई है, इस झील के आसपास अनेक सुन्दर वनस्पति देखने को मिलती है | जंगल के बीच में स्थित होने के कारण शाम के समय आप को यहाँ जंगली जानवर देखने को मिलते है|

    अगर आप की किस्मत अच्छी है तो शाम के समय आप को यहाँ चिंकारा भी देखने को मिल सकता है| यह तालाब रणथंभौर टाइगर रिज़र्व Ranthambore Tiger Reserve में बना हुआ है, और सुबह और शाम दिन में दो बार खुलता है|

    जोगी महल रणथंभौर | Jogi Mahal Ranthambore Fort in Hindi

    17वी शताब्दी में रणथंभौर जयपुर राजघराने के अधिपत्य में आगया उसके बाद जयपुर के राजाओ ने इस जगह को अपने शिकार और मनोरंजन के लिए विकसित करना शुरू कर दिया | पदम तालाब के पास बने और लाल रंग में रंगे जोगी महल का निर्माण भी  जयपुर  के महाराजा ने अपने शिकारगाह के तौर पर करवाया था |

    जयपुर के शाही घराने ने वर्षो तक इस जगह का उपयोग अपने मनोरंजन और शिकार के लिए किया, वर्तमान में इस जगह को  वन विभाग ने पर्यटकों के रेस्ट हाउस के रूप में बदल दिया है | जोगी महल के पास एक पुराना बरगद का पेड़ है जिसके के बारे कहा जाता है की ये पेड़ भारत का दूसरा सबसे बड़ा बरगद का पेड़ है |

    राजबाग खंडहर रणथंभौर – Rajbag Ruins Ranthambore in Hindi


    Rajbagh-Ruins-Ranthambore-Fort
    Rajbagh Ruins in Ranthambore Fort | Click on Image For Credits

    बड़े-बड़े गुम्बंद, और टूटी हुई मीनारे, पुरानी सीढियाँ और महल की प्राकर्तिक संरंचना कुछ ऐसा दृश्य बनाते है जो आप के जेहन में ताउम्र छप जाते है | जब आप राजबाग के खँडहर देखने जाते है तो कुछ ऐसे दृश्य देखने को मिलते है जो की सामन्यतया आप फिल्मो में देखते है | राज बाग के खंडहर पदम् तालाब और राजबाग तालाब के बीच में बना हुआ है और आज पूरी तरह से खंडहरों में बदल गया है|

    राजबाग रणथंभौर नेशनल पार्क Ranthambore National Park के बीचोंबीच बना हुआ इसके कारण इन खड़हरों के आसपास का प्राकर्तिक माहौल ऐसा होता है की ऐसी जगह आप दूसरी जगह होने की कल्पना भी नहीं कर सकते है |

    रणथंभौर में होटल – Hotels in Ranthambore in Hindi

    सवाई माधोपुर से रणथंभौर की दुरी मात्र 11 किलोमीटर है, एक बड़ा शहर होने के कारण यहाँ पर आप के रुकने और ठहरने के लिए बहुत सारे विकल्प उपलब्ध रहते है | बहुत सारी होटल बुकिंग वेबसाइट hotel booking websites इंटरनेट पर मिल जाएगी जिन पर आप यहाँ के लिए आसानी से होटल बुक करवा सकते है | अगर आप के समय रहता है तो आप सवाई माधोपुर पहुँच कर खुद भी होटल या धर्मशाला में रुकने की व्यस्था कर सकते है |

    अगर आप सप्ताहन्त पर आना पसंद करते है तो रणथंभौर के आसपास के गांव में काफी अच्छे रिसोर्ट बने हुए है, हालाँकि ये थोड़े महंगे हो सकते है लेकिन अपने परिवार, प्रियजन या फिर दोस्तों के साथ अच्छा समय बिताने के लिए आप के लिए एक बहुत अच्छा विक्लप हो सकता है |

    रणथंभौर का किला घूमने का सबसे अच्छा समय | Best time to visit Ranthambore Fort in Hindi

    walking in Ranthambore Fort

    रणथंभौर दुर्ग वैसे तो पुरे साल खुला  रहता है लेकिन अगर आप सिर्फ किला देखने के लिए आ रहे है तो गर्मियों के मौसम के अलावा आप कभी भी यहाँ पर आ सकते है | लेकिन  अगर आप रणथंभौर टाइगर रिज़र्व Ranthambore Tiger Reserve भी देखें आ रहे है तो आप को यह ध्यान रखना पड़ेगा की मानसून के मौसम रणथंभौर वन्यजीव Ranthambore Wildlife Sanctuary अभ्यारण बंद रहता है उसके बाद अक्टूबर से लेकर जून तक खुला रहता ही |

    सर्दियों के मौसम में जंगली जानवर या बाघ देखने की संभावना काम हो जाती है | इसलिए अगर आप मार्च के बाद रणथंभौर टाइगर रिज़र्व Ranthambore Tiger Reserve आते है तो यहाँ बाघ दिखने की संभावना काफी बढ़ जाती है|

    रणथंभौर किला देखने का समय – Ranthambore Fort Timings in Hindi

    सुबह के 06:00 बजे से लेकर शाम को 06:00 बजे तक

    रणथंभौर किले में प्रवेश शुल्क – Ranthambore Fort Entry Fee in Hindi

    पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क – 15/- INR

    बच्चों  के लिए प्रवेश शुल्क – 10/-  INR

    रणथंभौर किला कैसे पहुंचे – How to Reach Ranthambore For in Hindi

    Wildlife in Ranthambore Fort

    हवाईजहाज से रणथंभौर किला कैसे पहुंचे – How to Reach Ranthambore For By Flight in Hindi

    रणथंभौर दुर्ग के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर हवाई अड्डा है , जयपुर से रणथंभौर की दुरी मात्र 180 किलोमीटर है , जयपुर से आप को रणथंभौर के टैक्सी या बस आराम से मिल जाएगी |

    रेल से रणथंभौर किला कैसे पहुंचे – How to Reach Ranthambore For By Train in Hindi

    रणथंभौर दुर्ग के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन सवाईमाधोपुर है जिसकी दुरी रणथंभौर से मात्र 11 किलोमीटर है | सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन पुरे भारत से बहुत अच्छी तरह जुड़ा हुआ है | सवाई माधोपुर से रणथंभौर के लिए आप को टैक्सी सर्विस भी मिल जाएगी |

    सड़क मार्ग से रणथंभौर किला कैसे पहुंचे – How to Reach Ranthambore For By Road in Hindi

    रणथंभौर दुर्ग आने के लिए आपको पहले सवाई माधोपुर आना पड़ेगा  , और सवाई माधोपुर के  एक जिला मुख्यालय  होने की वजह से यह शहर देश के प्रमुख राजमार्गों से जुड़ा हुआ है | जयपुर और कोटा से आप को सवाईमाधोपुर के लिए हर समय बस और टैक्सी के विकल्प मिल जायेंगे | सवाई माधोपुर पहुंचने के बाद आप टैक्सी या स्थानीय बस सर्विस से रणथंभौर दुर्ग पहुँच सकते है |

    रणथम्भौर किले  के आसपास प्रसिद्ध पर्यटक स्थल – Nearby Places to Visit Ranthambore fort

    रणथम्भौर नेशनल पार्क , रणथम्भौर नेशनल पार्क टाइगर सफारी, पुष्कर, जयपुर भाग-01, जयपुर भाग-02, जयपुर भाग-03, हाथी गांव, गोविंददेवजी मंदिर, आमेर किला, कोटा, केवलादेव घना पक्षी विहार, सरिस्का टाइगर रिज़र्व, झालाना लेपर्ड रिज़र्व इसके अलावा उत्तर प्रदेश भी एक नजदीकी राज्य है यहां पर मथुरा, वृन्दावन और आगरा भी घूमने जा सकते है |

    (अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए।  में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )

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