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मणिमहेश झील – Manimahesh Lake in Hindi
भारत में स्थित हिमालय पर्वत का धार्मिक और पौराणिक रूप से बहुत ही विशेष स्थान माना गया है। हिमालय पर्वत के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है की ” में पर्वतों में हिमालय हूँ”। हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी का उद्गम स्थल भी यही हिमालय पर्वत स्थल है। भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत भी इसी हिमालय में स्थित है।
मानसरोवर झील के पास में स्थित कैलाश पर्वत के अलावा हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के पास स्थित मणिमहेश झील भी भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। हिन्दू धर्म में मणिमहेश झील को मानसरोवर झील के बराबर धार्मिक महत्व दिया जाता है। कैलाश पर्वत की भांति ही मणिमहेश झील के पास भी एक पर्वत है जिसे मणिमहेश कैलाश पीक कहा जाता है।
जिस तरह से आज तक किसी भी इन्सान ने मानसरोवर झील वाले कैलाश पर्वत की चढ़ाई नहीं की है, उसी तरह आज तक किसी भी व्यक्ति ने मणिमहेश झील के पास स्थित कैलाश पीक पर चढ़ाई नही की है। मणिमहेश से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार एक स्थानीय चरवाहे ने अपनी भेड़ो के झुंड के साथ कैलाश पीक पर चढ़ने का प्रयास किया था लेकिन वह इस पर्वत पर चढ़ाई करते समय अपनी भेड़ो के साथ पत्थर में बदल गया।
स्थानीय निवासियों का मानना है की कैलाश पर्वत के पास में स्थित छोटी-छोटी पहाड़िया उस चरवाहे और उसकी भेड़ो के झुंड का अवशेष है। चरवाहे के अलावा एक साँप ने भी कैलाश पीक पर चढ़ाई का प्रयास किया था लेकिन वह पत्थर में बदल गया था। मणिमहेश झील (समुद्रतल से ऊँचाई 4080 मीटर / 13390 फ़ीट) हिमाचल प्रदेश के कैलाश पीक (समुद्रतल से ऊंचाई 5653 मीटर / 18547 फ़ीट) की तलहटी में स्थित एक प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थल है।
मणिमहेश की पौराणिक कथा – Legend of Manimahesh in Hindi
हिमालय की पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला में स्थित मणिमहेश झील के निर्माण से जुड़ी हुई अनेक किवंदतियां और पौराणिक कथाएँ यहाँ के स्थानीय निवासियों द्वारा सुनी जाती है, इनमें से कुछ पौराणिक कथाओं का उल्लेख हिन्दू धर्म के कई धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। यहाँ पर सबसे ज्यादा सुनाई जाने वाली पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह के बाद मणिमहेश का निर्माण किया था।
ऐसा माना जाता है की भगवान शिव के नाराज होने की वजह से यहाँ पर हिमस्खलन और भारी बर्फबारी होती है। पौराणिक कथाओं और कई धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान पर भगवान शिव के द्वारा कई वर्षों तक तपस्या करने का भी उल्लेख किया गया है। यहाँ रहने वाले गद्दी जनजाति के लोग भगवान शिव को अपने ईष्ट देवता के रूप में पूजते है। गद्दी घाटी में निवास करने वाले लोगों को गद्दी कहा जाता है।
कहा जाता है की मणिमहेश कैलाश पर्वत के पास रहने वाले गद्दी जनजाति के लोगों को भगवान शिव ने चुहली टोपी (नुकीली टोपी) आशीर्वाद स्वरूप उपहार में दी थी। इस टोपी को यह लोग अपनी पारम्परिक रूप से पहने जाने वाली वेशभूषा चोल (कोट) के साथ पहनते है, साथ में ये लोग अपनी कमर में एक डोरा( काले रंग की एक लंबी रस्सी जिसकी लंबाई 10-15 मीटर होती है) भी बांधते है। गद्दी जनजाति के लोग इस पवित्र भूमि को “शिव भूमि” कहते है और खुद को भगवान शिव का भक्त बताते है।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने मानसरोवर झील पर माता पार्वती के साथ विवाह करने के बाद उन्होंने कैलाश पर्वत का निर्माण किया और पूरे ब्रम्हांड के माता-पिता बन गए थे। ऐसा माना जाता है की भगवान शिव ने हिमाचल प्रदेश में भी कैलाश पर्वत का निर्माण करवाया था और उसे अपने निवास स्थान के रूप में उपयोग करने लग गए थे।
मणिमहेश को ब्रम्हांड के तीनों स्वामी अर्थात ब्रम्हा, विष्णु और महेश (शिव) का निवास स्थान भी माना जाता है। मान्यता के अनुसार मणिमहेश भगवान शिव का स्वर्ग (कालिसा) है, और धन्चो के पास स्थित झरने को भगवान विष्णु का स्वर्ग (वैकुंठ) माना जाता है। भरमौर के पास स्थित एक टीले को ब्रम्हा जी का स्वर्ग कह कर बुलाया जाता है।
मणिमहेश यात्रा – Manimahesh Yatra In Hindi
प्रतिवर्ष हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद के महीने (अगस्त से सितंबर महीना) में अमावस्या के आठवें दिन मणिमहेश झील पर एक बहुत ही विशाल मेले का आयोजन किया जाता है और मेले के अंतिम दिन जन्माष्ठमी वाले दिन इस मेले का समापन किया जाता है। लगातार सात दिनों तक चलने वाले इस मेले को मणिमहेश यात्रा भी कहा जाता है।
भगवान शिव को समर्पित इस मेले में पूरे भारत से हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस पवित्र झील में स्नान करने के लिए आते है। स्थानीय निवासी कैलाश पीक को भगवान शिव का निवास स्थान मानते है, इस पर्वत के पास स्थित एक चट्टान को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। कैलाश पीक के ठीक नीचे स्थित मैदान को “शिव का चौगान” कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है की भगवान शिव और माता पार्वती इस मैदान में क्रीड़ा किया करते है इस लिए इस मैदान को “शिव का चौगान” कहा जाता है। मणिमहेश यात्रा के दौरान यहाँ आने वाले श्रद्धालु पवित्र झील में स्नान करने के बाद झील के पास में संगमरमर के पत्थर से बनी हुई भगवान शिव की चौमुखी मूर्ति की पूजा अर्चना करने के बाद पवित्र झील की तीन बार परिक्रमा करते है।
स्थानीय निवासियों के अनुसार मणिमहेश कैलाश पर्वत उन पर आने वाली किसी भी तरह की आपदा से रक्षा करता है, इसी धार्मिक आस्था की वजह से स्थानीय लोग इस विशाल पर्वत की पूजा अर्चना किया करते है। मणिमहेश यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा ना हो इसलिए मणिमहेश यात्रा शुरू होने से पहले यहाँ के स्थानीय निवासी ( मणिमहेश झील के आसपास रहने वाले लोगों को गद्दी कहा जाता है) अपनी-अपनी भेड़ो को लेकर पहाड़ो की चढ़ाई करते है और मणिमहेश झील तक जाने वाले रास्ते की सफाई करते है।
मणिमहेश झील से पहले दो कुंड भी आते है जिन्हें कमल कुंड और गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। भरमौर से 04 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ब्राम्हणी देवी मंदिर के दर्शन किये बिना मणिमहेश झील की यात्रा को अधूरा माना जाता है। ऐसा माना जाता है की ब्राम्हणी देवी कुंड में स्नान किये बिना मणिमहेश यात्रा पूरी नहीं होती है।
मणिमहेश झील कैसे पहुँचे – How to reach Manimahesh Lake In Hindi
मणिमहेश झील तक पहुँचने के लिए तीर्थयात्रियों और ट्रेकर्स के लिए कई विभिन्न मार्ग बने हुए है। लाहौल और स्पीति की और से आने वाले तीर्थयात्री कुगति पास होते हुए मणिमहेश पहुँचते है। कुछ यात्री जो कांगड़ा और मंडी की तरफ से आते है वो लोग कवारसी या फिर जलसू पास के मार्ग से मणिमहेश पहुँचते है। चंबा और भरमौर के रास्ते से आप बड़ी आसानी से मणिमहेश तक पहुँचते सकते है।
भरमौर के रास्ते से जाने वाले सभी यात्री हडसर तक बस के द्वारा जा सकते है। हडसर के बाद श्रद्धालुओं और ट्रेकर्स को मणिमहेश की यात्रा पैदल ही पूरी करनी पड़ती है। हडसर से मणिमहेश के रास्ते में धन्चो नाम की जगह आती है इस जगह पर लगभग सभी यात्री रात के समय विश्राम करते है। अगर आप मणिमहेश यात्रा के समय अतिरिक्त समय लेकर आये है तो आप धन्चो के पास स्थित एक खूबसूरत झरना भी देखने के लिए जा सकते है।
मणिमहेश झील से एक किलोमीटर पहले गौरी कुंड और शिव क्रोत्री नाम के दो धार्मिक जलाशय भी है। इन दोनों जलाशयों से जुड़ी हुई पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती जी ने बारी-बारी इन दोनों जलाशयों में स्नान किया था। मणिमहेश की यात्रा करने वाली महिला यात्री सबसे पहले गौरी कुंड में स्नान करती है और पुरुष यात्री शिव क्रोत्री जलाशय में स्नान करके अपनी यात्रा प्रारंभ करते है।
मणिमहेश झील आप ट्रेकिंग करके भी पहुँच सकते है, पहला रास्ता हडसर और धन्चो होकर जाता है और दूसरा रास्ता होली गाँव से होते हुए जाता है। पहले रास्ते से अधिकांश यात्री और श्रद्धालु जाना पसन्द करते है क्योंकि पहला रास्ता मणिमहेश पहुँचने का सबसे आसान रास्ता माना जाता है, इस रास्ते पर यात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध रहती है।
दूसरे रास्ते से अधिकांश ट्रेकर्स और रोमांच पसंद करने वाले लोग जाना ज्यादा पसंद करते है। दूसरे रास्ते से मणिमहेश तक पहुँचने तक किसी भी तरह की कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है। आप जब दूसरे रास्ते से मणिमहेश पहुँचते तो आप को ऊँचाई से मणिमहेश झील के बहुत सुंदर दृश्य दिखाई देते है।
मणिमहेश कैलाश के लिये ट्रेक – Trek to Manimahesh Kailash in Hindi
मणिमहेश कैलाश तक की यात्रा पूरी करने के लिए आप को कम-से-कम 07 दिन का समय हाथ में लेकर चलना होगा। अगर आप अपनी यात्रा दिल्ली से शुरू करते है तो आप रूट इस प्रकार रहेगा – आप सबसे पहले दिल्ली से अपने निजी वाहन या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट से धर्मशाला से भरमौर होते हुए हडसर तक पहुँचते है – उसके बाद आप हडसर से धन्चो के रास्ते 13 किलोमीटर पैदल ट्रेक करते हुए मणिमहेश तक पहुँचते है।
मणिमहेश से वापस आते समय भी आप इसी रूट से वापस दिल्ली पहुँच सकते है। आप अगर भारत के किसी अन्य शहर से मणिमहेश आ रहे है तो फिर आपको मणिमहेश यात्रा पूरी करने के लिए कुछ अतिरिक्त दिन जोड़ने पड़ सकते है।
01. मणिमहेश यात्रा का पहला दिन – Day one For Manimahesh Yatra in Hindi
आप अपनी यात्रा के पहले दिन दिल्ली से धर्मशाला पहुँचते है। दिल्ली से धर्मशाला की दूरी 471 किलोमीटर है।
02. मणिमहेश यात्रा का दूसरा दिन – Day Two For Manimahesh Yatra in Hindi
यात्रा के दूसरे दिन आप धर्मशाला से वाहन के द्वारा हडसर तक पहुँचते है, और फिर यहाँ से 04 किलोमीटर पैदल चल कर धन्चो पहुँचते है। ( हडसर से धन्चो पहुँचने में आप को 03-04 घंटे लग सकते है, लगभग सभी यात्री और ट्रेकर्स बॉडी को हाई एल्टीट्यूड पर अक्लाइमटाइज़् करने के लिए एक रात धन्चो में रुकते है। समुद्रतल से धन्चो की ऊँचाई 2280 मीटर (7480 फ़ीट) है।
03. मणिमहेश यात्रा का तीसरा दिन – Day Three For Manimahesh Yatra in Hindi
धन्चो से सुबह जल्दी आप अपनी पैदल यात्रा मणिमहेश के लिए शुरू कर सकते है। आप को इस बात का ध्यान रखना है की मणिमहेश की चढ़ाई लंबी होने के साथ-साथ कठिन और थकाने वाली हो सकती है। मणिमहेश पहुंच कर आप रात वहाँ पर बने हुए कैम्प में बिता सकते है। (मणिमहेश की समुद्रतल से ऊंचाई 4080 मीटर (13390 फ़ीट) है।)
04. मणिमहेश यात्रा का चौथा दिन – Day Four For Manimahesh Yatra in Hindi
चौथे दिन आप मणिमहेश से वापस धन्चो की तरफ अपनी यात्रा शुर कर सकते है। धन्चो पहुंचने के बाद आपको वापस एक रात धन्चो में बॉडी को लो एल्टीट्यूड के लिए अभ्यस्त करने के लिए गुजारनी होती है।
05. मणिमहेश यात्रा का पाँचवां दिन – Day Five For Manimahesh Yatra in Hindi
अब आप धन्चो से ट्रेक करके हडसर पहुंचते है और फिर यहाँ से वाहन के द्वारा भरमौर होते हुए धर्मशाला पहुँचते है।
06. मणिमहेश यात्रा का छठा दिन – Day Six For Manimahesh Yatra in Hindi
धर्मशाला पहुँचने के बाद आप अगर चाहे तो यहाँ आसपास के पर्यटक स्थल घूम सकते है नहीं तो आप यहाँ से सीधा अपने घर भी लौट सकते है। धर्मशाला से आपको पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की सीधी बस सेवा उपलब्ध मिल जाएगी।
07. मणिमहेश यात्रा का सातवां दिन – Day Seven For Manimahesh Yatra in Hindi
वैसे तो आप की मणिमहेश यात्रा 06 दिन में पूरी हो जाती है लेकिन 01 अतिरिक्त दिन साथ में लेकर चलने से आप अपनी यात्रा बड़े आराम से पूरी कर सकते है।
मणिमहेश झील तक पहुँचने के लिए टिप्स – Tips for visiting Manimahesh Lake in Hindi
- मणिमहेश आयोजित किये जाने वाले मेले के समय यात्रा करना बहुत सुखद अनुभव प्रदान करता है लेकिन इस समय यहाँ पर श्रद्धालुओं की भीड़ भी बहुत ज्यादा होती है उससे सावधानी रखने की जरूरत है।
- आप अगर मेले के अलावा मणिमहेश की यात्रा कर रहें है तो आप अपने साथ गर्म कपड़े, पानी और खाने का सामान जरूर साथ में लेकर जाए। यहाँ पर सिर्फ मेले के समय ही खाने-पीने की सुविधा उपलब्ध रहती है।
- मणिमहेश की ट्रैकिंग शुरू करने से पहले अपना ट्रैकिंग गियर जरूर चेक करें। बिना सीजन के या फिर भारी बर्फ़बारी के समय यहाँ पर ट्रैकिंग करना बहुत कठिन हो सकता है।
- अकेले ट्रेक करने ना जाएं, अपने साथ ट्रेकर्स या फिर ट्रैकिंग गाइड जरूर लेकर जाएं।
- ट्रेकिंग के नियमों का पूरी तरह से पालन करते हुए ट्रेक करें।
- अपने साथ लाये हुए इलेक्ट्रॉनिक सामान (मोबाइल/ गिम्बल/ कैमरा/ ड्रोन आदि) को पूरा चार्ज करके ही ले जाए, ऊपर आपके गैजेट चार्ज करने की सुविधा उपलब्ध नहीं होगी।
- मणिमहेश से रात के समय मिल्की वे दिखने की बहुत ज्यादा संभावना रहती है, इसलिए रात के समय कैंपिंग करना एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है।
- मणिमहेश पर मोबाइल नेटवर्क के इशू रहते है इसलिये हो सके तो अपने साथ सैटेलाइट फ़ोन लेकर जाये।
हेलिकॉप्टर से मणिमहेश की यात्रा – Helicopter Ride to Manimahesh Lake in Hindi
आप अगर बहुत कम समय में मणिमहेश की यात्रा पूरी करना चाहते है तो हेलिकॉप्टर से मणिमहेश की यात्रा करना आप के लिए सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है और साथ में ही सबसे महँगा भी। हेलिकॉप्टर से मणिमहेश की यात्रा बुक करने के लिये आप भरमौर या फिर चंबा में बने हुए बुकिंग काउंटर से अपने लिए हेलिकॉप्टर यात्रा की बुकिंग करवा सकते है।
हेलिकॉप्टर आप को गौरी कुंड तक छोड़ता है उसके बाद आप 01 किलोमीटर की ट्रैकिंग करके मणिमहेश तक पहुँच सकते है। अगर आप मणिमहेश के लिए अप-डाउन यात्रा की टिकट बुक करवाते है तो आपको भरमौर से 8,600/- रुपये का भुगतान करना होगा और चंबा से 14,500/- रुपये तक खर्च करने पड़ सकते है।
मणिमहेश घूमने का सबसे अच्छा समय – Best time to visit Mani mahesh in Hindi
पर्यटक और तीर्थयात्री अप्रैल से लेकर नवंबर महीने तक किसी भी समय मणिमहेश दर्शन करने के लिए जा सकते है। दिसंबर से लेकर मार्च महीने तक इस जगह पर बहुत भारी बर्फबारी होती इस वजह झील पर भी बर्फ की मोटी चद्दर बिछ जाती है। जून से लेकर अक्टूबर महीने के समय मणिमहेश झील के दर्शन करने के लिए बहुत भारी संख्या में श्रद्धालु यहाँ पर आते है।
मणिमहेश कैसे पहुँचे – How to reach Manimahesh in Hindi
हवाई जहाज से मणिमहेश कैसे पहुँचे – How to reach Manimahesh By Flight in Hindi
गग्गल के कांगड़ा एयरपोर्ट से आप बड़ी आसानी से धर्मशाला, डलहौजी और चंबा पहुँच सकते है। गग्गल से नियमित रूप से इन तीनों शहरों के लिए बस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा उपलब्ध रहती है। आप टैक्सी और कैब की सहायता से भी बड़ी आसानी से धर्मशाला, डलहौजी और चंबा पहुँच सकते है। कांगड़ा एयरपोर्ट भारत के प्रमुख एयरपोर्ट्स से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग से मणिमहेश कैसे पहुँचे – How to reach Manimahesh By Train in Hindi
मणिमहेश के सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन पठान कोट रेलवे स्टेशन है। पठानकोट से नियमित रूप से धर्मशाला, डलहौजी और चंबा के लिए बसें चलती रहती है। आप चाहे तो यहाँ से आप कैब और टैक्सी करके भी इन तीनों शहरों तक बड़े आराम से पहुँच सकते है।
सड़क मार्ग से मणिमहेश कैसे पहुँचे – How to reach Manimahesh By Road in Hindi
पठानकोट बस स्टैंड से हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट की बसें धर्मशाला, डलहौजी और चंबा के लिये नियमित रूप से चलती रहती है। इन तीनों ही जगहों से आपको भरमौर के लिए बस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सेवा उपलब्ध हो जाएगी। सीजन के समय भरमौर से हडसर तक नियमित गाड़ियां (विशेष बस सेवा, टैक्सी और जीप) चलती है, लेकिन अगर आप बिना सीजन के मणिमहेश आ रहे है तो आप को भरमौर से हडसर तक गाड़ी मिलने में परेशानी हो सकती है।
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )