धर्मशाला 2024 | धर्मशाला के 20 दर्शनीय स्थल 2024 | 20 Tourist Places to visit in Dharamshala in Hindi 2024 | Dharamshala Travel Guide 2024 in Hindi | Best Time To Visit Dharmshala in Hindi | Things to do in Dharamshala in Hindi | Dharamshala Tourism | Part-02
धर्मशाला का इतिहास – History of Dharamshala in Hindi
हिमालय की धौलाधर पर्वतश्रृंखला की ढलान में बसा हुआ धर्मशाला हिमाचल प्रदेश के सबसे खूबसूरत पर्यटकों स्थलों में से एक है। पूरे साल लाखों की संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक धर्मशाला घूमने के लिये आते रहते है। धौलाधर पर्वतश्रृंखला की ढलान में स्थित एक हिन्दू धर्मशाला की वजह से इस शहर का नाम धर्मशाला रखा गया था। 1849 में अंग्रेजी हुकूमत के समय मुख्य धर्मशाला शहर अपने अस्तित्व में आया था।
अपने भौगोलिक और सामरिक महत्व की वजह से अंग्रेज अधिकारियों ने धर्मशाला में सैनिक छावनी बनाई थी। आज भी धर्मशाला में औपनिवेशिक काल के समय बनी हुई कई इमारतें और चर्च ब्रिटिश वास्तुकला का बहुत खूबसूरत उदाहरण प्रस्तुत करती है। धर्मशाला दो भागों में बंटा हुआ शहर है जिसमे पहले भाग को लोअर धर्मशाला “कोतवाली बाजार” कहते है और इसकी समुद्रतल से ऊँचाई 1456 मीटर (4780 फ़ीट) है।
धर्मशाला के दूसरे भाग को अपर धर्मशाला “मैक्लोडगंज” कहा जाता है जिसकी समुद्रतल से ऊँचाई मात्र 2082 मीटर (6831 मीटर) है। अधिकांश लोगों को यह नहीं पता होता की मैक्लोडगंज धर्मशाला का ही हिस्सा है और स्थानीय निवासी इसे अपर धर्मशाला के नाम से जानते है। आपको मैक्लोडगंज में धर्मशाला के सबसे खूबसूरत पर्यटक स्थल देखने के लिए मिलते है।
तिब्बत की विस्थापित सरकार का केन्द्र भी मैक्लोडगंज में ही है इसलिये धर्मशाला और मैक्लोडगंज में आपको हिन्दू और तिब्बत संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। धर्मशाला और मैक्लोडगंज में बहुत सारी बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई मोनेस्ट्री भी बनी हुई है जिनमें से कुछ तो पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध है।
इन बौद्ध मोनेस्ट्री में पूरे साल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अलावा भारत और विश्व से अलग-अलग धर्म के लोग इन मोनेस्ट्री को देखने के लिए धर्मशाला आते रहते है। बौद्ध मोनेस्ट्री के अलावा धर्मशाला के आसपास के क्षेत्र में कई ट्रेकिंग स्पॉट भी बने हुए इन ट्रैक्स को पूरा करने के बाद आपको यहाँ से हिमालय के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ो की चोटियाँ भी दिखाई है।
धर्मशाला एक ऐसा शहर है जहाँ पर आपको ग्रामीण और शहरी परिवेश की झलक एक साथ दिखाई देती है। एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने की वजह से धर्मशाला में सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध है।
कांगड़ा किला – Kangra Fort in Hindi
काँगड़ा शहर के बाहरी इलाकों में में बना हुआ काँगड़ा फोर्ट धर्मशाला से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, यह फोर्ट भारत के सबसे प्राचीन किलों में से एक है। इस किले का निर्माण कटोच वंश के शासकों द्वारा करवाया गया था। काँगड़ा किले पर अधिकार करने के लिए अनेक मुग़ल आक्रमणकारियों ने बार-बार आक्रमण किये और इस क्षेत्र में बने हुए हिन्दू मंदिरों को लूट क्रर नष्ट कर दिया था।
महमूद गजनी ने काँगड़ा क्षेत्र में सबसे पहला आक्रमण 1009 ईस्वी में किया था उसके के बाद 1360 ईस्वी में फिरोज शाह तुगलक और 1540 ईस्वी में शेर शाह ने यहाँ पर आक्रमण किया था। अकबर ने भी काँगड़ा किले में अधिकार करने के लिए घेराबंदी की थी और उसेक बेटे जहांगीर ने 1620 ईस्वी में इस किले पर आक्रमण करके अधिकार कर लिया था।
काँगड़ा किले पर अधिकार करने के लिए जहांगीर को 14 महीने के एक लम्बे समय तक इस किले की घेराबंदी करनी पड़ी थी उसके बाद जब किले में रसद सामग्री की कमी हो गई थी तब कहीं जा कर जहांगीर इस किले पर अधिकार करने में सफल हुआ था। किले पर अधिकार करने के बाद जहांगीर ने इस किले में बैल की बलि दी और यहाँ पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
कटोच शासक भी समय-समय पर मुग़ल नियंतित्र इलाकों पर हमला करके उनके निंयत्रण को कमजोर करते रहते थे। 1789 ईस्वी में महाराजा संसार चंद ने इस किले पर वापस अपने अधिकार कर लिया था। 1806 ईस्वी में महाराजा संसार चंद और पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के बीच में जवालामुखी की संधि होती है।
1828 में महाराजा संसार चंद की मृत्यु के बाद यह संधि भी रद्द हो जाती है और 1846 में अंग्रेज इस किले पर अपना अधिकार कर लेते है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास को नजदीक से जानने के लिए यह किला सबसे उपयुक्त जगहों में से एक है।
काँगड़ा किले में प्रवेश का समय – Kangra Fort Timings in Hindi
सुबह 09:00 बजे से लेकर शाम को 06:00 बजे तक (पुरे सप्ताह पर्यटकों के लिए खुला रहता है)
काँगड़ा किले में प्रवेश शुल्क – Kangra Fort Entry Fee in Hindi
भारतीय पर्यटक – 150/- INR
विदेशी पर्यटक – 300/- INR
कांगड़ा कला संग्रहालय – Kangra Art Museum In Hindi
काँगड़ा कला संग्रहालय धर्मशाला के मुख्य शहर से मात्र 1.5 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। इस कला संग्रहालय तिब्बती और बौद्ध संस्कृति से जुडी हुई कलाकृतियों को बहुत आकर्षक तरीके से प्रदर्शित किया गया है। काँगड़ा कला संग्रहालय की स्थापना 1990 में की गई थी, इस संग्रहालय में काँगड़ा घाटी की सांस्कृतिक विरासत, प्राचीन कलाकृतियां, कला और लघु चित्रों से लेकर मंदिरों की नक्काशी, कपड़े, कढ़ाई, हथियार और राजपरिवार से जुडी हुई अनेक प्राचीन वस्तुओं का संग्रह किया गया है।
इस संग्रहालय में यहाँ रहने वाले विभिन्न जनजाति के लोगों के गहने, कशीदाकारी की हुई वेशभूषा और लकड़ी पर की गई नक्काशी को प्रदर्शित किया गया है। यहाँ पर आपको दुर्लभ सिक्के, प्राचीन मिटटी के बर्तन और मूर्तियों का संग्रह भी देखने के मिलता है। काँगड़ा कला संग्रहालय में 5वीं शताब्दी से जुडी हुई कुछ वस्तुओं का संग्रह भी प्रदर्शित किया गया है।
इस संग्रहालय का एक हिस्सा समकालीन कलाकारों और फोटोग्राफर्स को भी समर्पित किया गया है। काँगड़ा और धर्मशाला के प्राचीन इतिहास को नजदीक से जानने के लिए कांगड़ा कला संग्रहालय सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता है।
काँगड़ा कला संग्रहालय प्रवेश का समय – Kangra Art Museum Timings in Hindi
सुबह 10:00 बजे से लेकर दोपहर के 01:30 बजे तक
दोपहर 02:00 बजे से लेकर शाम को 05:00 बजे तक
(संग्रहालय सोमवार और सार्वजनिक अवकाश के दिन बंद रहता है)
काँगड़ा कला संग्रहालय में प्रवेश शुल्क – Kangra Art Museum Entry Fee in Hindi
भारतीय पर्यटक – 10/- INR
विदेशी पर्यटक – 50/- INR
ज्वाला देवी मंदिर काँगड़ा – Jwala Devi Temple Kangra In Hindi
हिमालय की तलहटी में स्थित ज्वाला देवी मंदिर काँगड़ा जिले का प्रमुख धार्मिक स्थल है। धर्मशाला से ज्वाला देवी मंदिर की दुरी मात्र 52 किलोमीटर है। ज्वाला देवी मंदिर 52 शक्तिपीठो में से एक मंदिर है, ऐसा माना जाता है की देवी सती की जीभ इसी स्थान पर गिरी थी, और जब देवी सती की जीभ इस स्थान पर गिरी थी उसी समय यहाँ पर एक अग्नि प्रज्जवलित हो गई जो की आज भी निरंतर जल रही है।
कुछ श्रद्धालुओं का यह मानना है की यहाँ पर देवी सती के वस्त्र गिरे थे। यह प्राचीन मंदिर कटरा में स्थित वैष्णो देवी मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों में एक माना जाता है। ज्वाला देवी मंदिर के गर्भगृह में किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है बल्कि यहाँ पर जमीन से निकलने वाली 09 अलग-अलग ज्वालाओं की पूजा की जाती है।
इस मंदिर में जलने वाली सभी ज्वालायें कई सदियों से प्राकृतिक रूप से जल रही है, इनको ज्वालाओं को जलाने के लिए किसी भी प्रकार के ईंधन का उपयोग नहीं किया जाता है। इन सभी ज्वालाओं को देवी दुर्गा के 09 रूप – महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्य वासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी मान कर ही इनकी पूजा अर्चना की जाती है। यहाँ पर देवी दुर्गा को राबड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
नवरात्रों के समय ज्वाला देवी मंदिर में बहुत बड़े वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे भाग लेने के लिए पुरे देश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु ज्वाला देवी मंदिर आते है। माँ ज्वाला देवी ठाकुरों, लखनपाल, भाटी और गुजरातियों की कुल देवी भी मानी जाती है। ज्वाला देवी मंदिर का उल्लेख महाभारत और कई अन्य पौराणिक ग्रंथो में भी किया गया है।
ज्वाला देवी मंदिर दर्शन का समय – Jwala Devi Temple Darshan Timings in Hindi
श्रद्धालु और पर्यटक सुबह 05:00 बजे से लेकर रात जो 08:00 बजे तक दर्शन कर सकते है।
ज्वाला देवी मंदिर में प्रवेश शुल्क – Jwala Devi Temple Entry Fee in Hindi
प्रवेश निशुल्क।
धर्मशाला में ट्रैकिंग – Trekking in Dharamshala in Hindi
हिमालय की धौलाधर पर्वतश्रृंखला की ढलान में स्थित धर्मशाला के आसपास रोमांच पसंद करने वाले पर्यटकों के लिए कई ट्रेकिंग स्पॉट उपलब्ध है। धर्मशाला के पास उपलब्ध कुछ ट्रेक्स एकदम से आसान है और कुछ कठिन ट्रेक्स भी है। धर्मशाला के आसपास जीतने भी ट्रेक उपलब्ध है उनमें से अधिकांश ट्रेक्स मैक्लोडगंज के पास से शुरू होते है।
अगर आपको हाईकिंग और ट्रैकिंग करना पसंद है तो धर्मशाला और मैक्लोडगंज में ऐसे कई निजी संस्थान है जिनकी सहायता से आप कुछ शुल्क देकर आप अपने लिए एक प्रोफेशनल ट्रेक्कर हायर कर सकते है, इसके अलावा यह संस्थान आप के लिए पूरा ट्रेक भी प्लान कर के देते है। इसके अलावा इन निजी संस्थान से आप एक निर्धारित शुल्क देकर अपने लिए एक व्यवस्थित और यादगार ट्रेक प्लान तैयार करवा सकते है ।
धर्मशाला में कुछ ऐसे निजी संस्थान भी है जो आपको ट्रैकिंग करने के लिए ट्रेकर्स, ट्रैकिंग उपकरण और ट्रैकिंग से सम्बंधित सुविधाएं भी उपलब्ध करवाते है। धर्मशाला के पास त्रिउंड ट्रेक सबसे छोटा और सबसे आसान ट्रेक माना जाता है, त्रिउंड के अलावा करेरी नदी ट्रेक, गुना देवी मंदिर ट्रेक, भागसू ट्रेक और इंद्रहार पास ट्रेक सबसे ज्यादा पसंद किए जाते है।
धर्मशाला में कैंपिंग – Camping in Dharamshala in Hindi
रात के समय अरबों तारों की रोशनी के तले कैम्प फायर जलाते हुए हुए रात बिताने का अपना एक अलग ही अनुभव है। ऐसा शानदार अनुभव अगर आप एक्सपीरियंस करना चाहते है तो आपको धौलाधर पर्वतश्रृंखला की ढलान में स्थित धर्मशाला जरूर जाना चाहिए। कैंपिंग धर्मशाला के आसपास स्थित पहाड़ो में की जाने वाली एक बहुत ही प्रसिद्ध और रोमांचक गतिविधि है।
कैंपिंग के लिए अधिकांश महानगरों के पर्यटक सप्ताहांत के समय धर्मशाला और इसके आसपास के क्षेत्र में कैंपिंग करने के लिए आते रहते है। दिल्ली, चंडीगढ और धर्मशाला की साहसिक गतिविधि का आयोजन करने वाले कई निजी संस्थान समय-समय पर धर्मशाला में कैंपिंग के टूर प्लान बनाती रहती है।
धर्मशाला में स्थित निजी संस्थाएं आपके लिए कैंपिंग साइट्स पर आपके लिए भोजन, आवास, कैम्प फायर, खेल और अन्य गतिविधियों उपलब्ध करवाती रहती है। अगर आप ट्रैकिंग करते समय अपना टेंट अपने साथ मे लेकर चल सकते है तो यह आपके लिए एक बहुत अच्छी बात हो सकती है।
इसके अलावा अगर आप चाहते है कि कोई कैम्प साइट वाली निजी संस्थान आप के लिए कैंपिंग प्लान करे तो यह भी एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है, बस इसमें आप को थोड़े ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ सकते है। अगर आप बेकपकर या फिर ट्रेवलर है तो आप बहुत कम कीमत पर धर्मशाला में ट्रैकिंग का आनंद लेक सकते है।
और अगर आप चाहते है कि कोई निजी संस्थान आप ले लिए कैंपिंग आयोजित करे तो उसके लिए आप को 3500/- से 5000/- रुपये प्रति व्यक्ति तक देने पड़ सकते है। धर्मशाला में आप कैंपिंग के अलावा कई तरह की साहसिक गतिविधियों का आनंद भी ले सकते है जिनमें रैपलिंग, ट्रेकिंग और रॉक क्लाइम्बिंग आदि शामिल हैं।
धर्मशाला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (डीआईएफएफ) – Dharamshala International Film Festival (DIFF)
धर्मशाला में सबसे पहले सिनेमाघर का निर्माण 1935 में अंग्रेज अधिकारियों ने अपने मनोरंजन के लिये करवाया था। इस प्रकार धर्मशाला में बना सिनेमाघर भारत मे बने सबसे पहले सिनेमाघर में से एक माना जाता है। औपनिवेशिक काल के दौरान भी धर्मशाला अंग्रेज अधिकारियों में कला और मनोरंजन की दृष्टि से एक विशेष स्थान रखता था।
भारत की स्वंतंत्रता के पश्चात धर्मशाला में स्थानीय संस्कृति से जुड़े हुए अनेक कार्यक्रम वर्षभर आयोजित किये जाने लगे इस वजह से धर्मशाला को पूरे भारत में अपनी एक अलग पहचान मिलने लगी। धर्मशाला के कला और संस्कृति से जुड़े हुए इतिहास और स्थानीय लोगो कलाकारों को एक मंच प्रदान करने के लिए वर्ष 2012 में में फ़िल्म निर्माताओं और धर्मशाला के स्थानीय निवासी रितु सरीन और तेनजिंग सोनम ने धर्मशाला इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल (DIFF) का आयोजन किया।
इस फ़िल्म फेस्टिवल का आयोजन धर्मशाला में प्रतिवर्ष किया जाता है। फ़िल्म फेस्टिवल के दौरान भारत और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों का प्रदर्शन किया जाता है। आज इतना समय बीत जाने के बाद धर्मशाला की प्राकृतिक सुंदरता और शानदार मेजबानी की वजह से इस फ़िल्म फेस्टिवल को पूरी दुनिया मे एक अलग पहचान मिलने लगी है।
वर्तमान में DIFF भारतीय और विदेशी फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए निर्माताओं, फ़िल्म प्रेमियों और फ़िल्म समीक्षकों का ध्यान अपनी और आकर्षित करता है। द एशियन एज नाम की न्यूज एजेंसी ने धर्मशाला इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल को “इंडियाज सनडांस” कहा है। धर्मशाला में इस फ़िल्म फेस्टिवल का आयोजन प्रतिवर्ष अक्टूबर और नवंबर महीने में किया जाता है।
नोरबुलिंगका संस्थान – Norbulingka Institute Dharamshala in Hindi
हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के पास स्थित सिद्धपुर में केलसांग और किम येशी ने 1995 में नोरबुलिंगका संस्थान की स्थापना की। इस संस्थान के निर्माण का मुख्य उद्देश्य तिब्बत के साहित्य और कलात्मक रूपों को सरंक्षण देना था। यह संस्थान दलाई लामा का ग्रीष्मकालीन अवकाश भी है। धर्मशाला से मात्र 07 किलोमीटर दूर स्थित नॉरबुलिंगका संस्थान एक लोकप्रिय शिक्षा केंद्र है।
तिब्बत की पारम्परिक वास्तुशैली में निर्मित यह संस्थान अपने आसपास के प्राकृतिक वातावरण की वजह से बेहद प्रसिद्ध है। संस्थान के परिसर में बगीचे बने हुए है और पास में बहने वाली नदी, छोटे झरने और धौलाधर पर्वतश्रृंखला के अविस्मरणीय दृश्य इस जगह को और भी खूबसूरत बना देते है। नॉरबुलिंगका संस्थान का मुख्य उद्देश्य बौद्ध और तिब्बत की संस्कृति से जुड़े हुए विभिन्न चित्रों, मुर्तियों और साहित्य को सरंक्षित करना है, साथ में ही तिब्बत से आये शरणार्थियों को रोजगार प्रदान करवाना भी है।
यहाँ पर पारम्परिक रूप से तिब्बती संस्कृति से जुड़ी हुई वस्तुओं का उत्पादन भी किया जाता है जैसे कपड़ें और घर का सामान इत्यादि। अगर आप तिब्बत की संस्कृति को नजदीक से समझना चाहते है तो इस संस्थान में अध्ययन करने के लिये कार्यशाला का आयोजन भी किया जाता है। आगंतुकों के ठहरने के लिए नोरबुलिंगका संस्थान में दो गेस्टहाउस भी बने हुए है जिन्हें नॉर्लिंग जलवायु और चोनर हाउस के नाम से जाना जाता है।
आगंतुकों और पर्यटकों के देखने लिए संस्थान में 1985 के समय बना हुआ दो मंजिला ‘सीट ऑफ हैप्पीनेस टेम्पल’ (डेडेन स्यूग्लाखंग) है, यह टेम्पल नॉरबुलिंगका संस्थान के उद्यान के बीच स्थित है। यहाँ पर गौतम बुद्ध के 1,173 भित्ति चित्र भी बने हुए है और सभी दलाई लामाओं के भित्तिचित्र भी देखने को मिलते है।
इसके अलावा यहाँ पर 14 वें दलाई लामा के जीवन को बहुत विस्तृत रूप से चित्रित गया है। नोरबुलिंगका संस्थान का प्राकृतिक वातावरण अनुकूल ऊर्जा से भरा हुआ है, यहाँ का शांत वातावरण आपको मन की शांति प्रदान करता है।
नोरबुलिंगका संस्थान में प्रवेश का समय – Norbulingka Institute Timings in Hindi
सुबह 09:00 बजे से लेकर शाम को 05:30 बजे तक
(रविवार अवकाश)
नोरबुलिंगका संस्थान में प्रवेश शुल्क- Norbulingka Institute Entry Fee in Hindi
संस्थान में किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है।
नाम आर्ट गैलरी धर्मशाला – Naam Art Gallery Dharamshala in Hindi
धर्मशाला के मुख्य शहर से नाम आर्ट गैलरी मात्र 02 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। धर्मशाला में नाम आर्ट गैलरी कला प्रेमियों के लिए समय बिताने के लिए सबसे अच्छी जगहों में एक है। नाम आर्ट गैलरी की स्थापना एलिजाबेथ बुशमैन ने की थी। अपने साथी चित्रकार AW Hallet की 1986 में मृत्यु हो जाने के बाद वह 1987 में धर्मशाला आती है और उसके बाद वह यहीं की हो कर रह जाती है।
एलिजाबेथ बुशमैन एक जर्मन नागरिक है और एक पेशवर चित्रकार है। इस आर्ट गैलरी में उन्होंने ने अपने चित्रों के विशाल संग्रह के साथ-साथ अपने इंग्लैंड के साथी चित्रकार AW Hallet के चित्रों का भी विशाल संग्रह प्रदर्शित किया है। नाम आर्ट गैलरी से आप एलिजाबेथ बुशमैन और AW Hallet के चित्रों को खरीद भी सकते है इसके अलावा आप ऑनलाइन इनकी वेबसाइट से भी इन दोनों के द्वारा बनाये गए चित्र खरीद सकते है।
नाम आर्ट गैलरी प्रवेश का समय – Naam Art Gallery Timings in Hindi
सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम को 07:00 बजे तक
(सोमवार अवकाश)
नाम आर्ट गैलरी प्रवेश शुल्क – Naam Art Gallery Entry Fee in Hindi
प्रवेश शुल्क – 10/- INR
चिन्मय तपोवन धर्मशाला – Chinmaya Tapovan Dharamshala in Hindi
काँगड़ा घाटी की तलहटी में स्थित चिन्मय तपोवन एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक आश्रम है। धर्मशाला से मात्र 08 किलोमीटर की दुरी पर स्थित चिन्मय तपोवन एक आध्यात्मिक आश्रम होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है। 1977 में स्वामी चिन्मयानन्द ने इस आश्रम की स्थापना धर्मशाला पास स्थित सिद्धबाड़ी नाम के स्थान पर की थी।
प्राचीन धर्मग्रंथो के अनुसार सिद्धबाड़ी नाम की जगह पर कई महान साधु-महात्माओं ने तपस्या की है इसलिए धार्मिक दृष्टि से भी यह जगह काफी पवित्र मानी जाती है। चिन्मय तपोवन के चारों तरफ बहुत सुन्दर दृशय दिखाई देते है, यहाँ से हिमालय की धौलाधार पर्वतशृंखला के बेहद अविस्मरणीय दृश्य दिखाई देते है।
1981 में स्वामी चिन्मयानन्द में आश्रम में संदीपनी हिमालय के नाम से आवासीय वेदांत पाठ्यक्रम भी शुरू किया। वर्तमान समय में पूरी दुनिया से प्रत्येक आयु वर्ग के लोग आश्रम में प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले आध्यात्मिक शिविर में भाग लेने के लिए आते रहते है। आश्रम में सुंदरता बढ़ाने के लिए विशाल पेड़, पौधे और खुशबुदार फूल भी लगाए हुए है।
आश्रम परिसर में एक बाहर शिवलिंग भी बनाया हुआ है जो को यहाँ के आकर्षण का प्रमुख केंद्र माना जाता है इसके अलावा परिसर में हनुमान जी और भगवान राम के मंदिर भी बने हुए है। चिन्मय तपोवन में आगुन्तको के ठहरने के लिए 100 कमरे बने हुए जिनमे एक समय में 300 लोग एक साथ रुक सकते है। परिसर में आध्यात्मिक किताबों की दुकान बनी हुई है। इसके अलावा यहाँ एक आयुर्वेदिक औषधालय और गौशाला भी बनी हुई है।
चिन्मय तपोवन देखने का समय – Chinmaya Tapovan Timings in Hindi
सुबह 7:00 बजे से लेकर शाम के 7:00 बजे तक इस जगह पर जा सकते हैं।
चिन्मय तपोवन प्रवेश शुल्क: – Chinmaya Tapovan Entry Fee in Hindi
प्रवेश नि: शुल्क है।
नामग्याल स्तूप धर्मशाला – Namgyalma Stupa Dharamshala in Hindi
धर्मशाला के मुख्य शहर से मात्र 02 किलोमीटर दूर स्थित नामग्याल स्तूप तिब्बत के स्वतंत्रता संग्राम के समय शहीद होने वाले लोगों के सम्मान में बनाया गया एक बौद्ध स्मारक है। एक सुन्दर और प्राकृतिक वातावरण के बीच में बने हुए इस स्मारक में प्रतिवर्ष अनेक बौद्ध तीर्थयात्री शहीदों के लिए प्रार्थना करने के लिए यहां आते रहते है।
स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी में बनाये जाने वाले स्तूपों की वास्तुकला से प्रभावित है। स्तूप के एक छोटे से कक्ष में शाक्यमुनि बुद्ध की छवि को भी चित्रित किया गया है।
नामग्याल स्तूप प्रवेश का समय – Namgyalma Stupa Timings in Hindi
सुबह 8:00 बजे से लेकर शाम को 5:00 बजे तक
(रविवार अवकाश)
नामग्याल स्तूप प्रवेश शुल्क: – Namgyal Stupa Entry Fee in Hindi
नि: शुल्क प्रवेश
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद)
1 Comment
“धर्मशाला काफी खूबसूरत जगह है और यहाँ के बारे में आपने काफी अच्छा आर्टिकल लिखा है ! .
Thanks “