धर्मशाला के 20 पर्यटन स्थल 2024 | धर्मशाला 2024 | 20 Tourist Places to visit in Dharamshala in Hindi 2024 | Dharamshala Travel Guide in Hindi | Best Time To Visit Dharmshala in Hindi | Things to do in Dharamshala in Hindi | Dharamshala Tourism | Part-01
धर्मशाला का इतिहास – History of Dharamshala in Hindi
हिमाचल प्रदेश की शीतकालीन राजधानी धर्मशाला विश्व के सबसे ज्यादा ऊंचाई वाले क्रिकेट स्टेडियम की वजह से पूरे विश्व में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। धर्मशाला दो भागों में बंटा हुआ एक बहुत ही सुंदर शहर है। धर्मशाला के पहले भाग को कोतवाली बाज़ार “लोअर धर्मशाला” और दूसरे भाग को मैक्लॉडगंज “अपर धर्मशाला” भी कहा जाता है।
कांगड़ा वैली में स्थित धर्मशाला की समुद्रतल से ऊँचाई मात्रा 1457 मीटर (4780 फ़ीट) है। हिमाचल प्रदेश का एक शहर है कांगड़ा जो की औपनिवेशिक काल में पंजाब का हिस्सा हुआ करता था और उस समय जिला मुख्यालय भी हुआ करता था। लेकिन 1855 में ब्रिटिश हुकूमत ने सभी प्रशासनिक कार्यालय धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिए। आज भी कांगड़ा जिला का जिला मुख्यालय धर्मशाला ही है।
धर्मशाला की कांगड़ा से दूरी मात्र 30 किलोमीटर है। वैसे तो धर्मशाला 1849 के समय अस्तित्व में आया था लेकिन उसके पहले भी धर्मशाला के आसपास के क्षेत्र में दो सहस्त्राब्दियों तक कटोच राजवंश के शासक राज किया करते थे। कटोच राजवंश के राजा संसार चंद कटोच और पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के बीच 1810 में ज्वालामुखी की संधि होती है, इस संधि के अनुसार कटोच राजवंश के राजा अब से कांगड़ा क्षेत्र के जागीरदार के रूप में ही जाने जाएंगे।
आज भी कटोच राजपरिवार के सदस्य धर्मशाला में ही रहते है, राजपरिवार के सदस्य जिस महल में रहते है उस महल को “क्लाउड एंड विला” के नाम स पुकारा जाता है। अंग्रेजों के आने से पहले तक धर्मशाला के आसपास के क्षेत्र में गद्दी जनजाति ( एक हिन्दू समुदाय जो की खानाबदोश और घुमंतू जीवन शैली का ज्यादा पालन करते थे) के लोग रहा करते थे। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर अधिकार करने के बाद गद्दी जनजाति के लोगों की बस्तियों को उजाड़ दिया और उनके खेतों और मौसमी चरागाहों पर कब्जा कर लिया था।
1848 में धर्मशाला और इसके आसपास के क्षेत्र में अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया था। 1849 में पंजाब के कांगड़ा जिले के लिए सैनिक छावनी बनाने के लिए अंग्रेजों ने हिमालय की धौलाधर पर्वत श्रृंखला की ढलान पर स्थित इस जगह को चुना था। उस समय इस क्षेत्र में एक हिन्दू धर्मशाला हुआ करती थी उसी धर्मशाला की वजह से इस जगह का नाम धर्मशाला रखा गया था। एक सैनिक छावनी बन जाने के बाद धर्मशाला में सिविलियन और सैनिक चहल-पहल बहुत ज्यादा बढ़ गई थी इस वजह से 05 मई 1867 में धर्मशाला में नगर परिषद बनाई गई थी।
धर्मशाला की सबसे पहली नगर परिषद की बैठक 06 मई 1867 को ब्रिटिश जिलाधिकारी सीएफ एल्फिनस्टोन की अध्यक्षता में हुई। नगर परिषद बन जाने के बाद धर्मशाला में मिलने वाली सुविधाओं में बहुत तेजी से बढ़ोतरी होने लगी थी। 1896 में यहाँ रहने वाले लोगों को बिजली जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हो गई थी।
धर्मशाला में सरकारी कार्यालयों के साथ- साथ व्यापारिक संस्थान, सार्वजनिक संस्थान, परिवहन और पर्यटन से जुड़ी हुई सेवाएं भी शुरू हो रही थी। धीरे-धीरे धर्मशाला में शिक्षा और मनोरंजन से जुड़ी हुई सुविधाएं भी उपलब्ध हो रही थी। वर्ष 1926 और 1947 के बीच में यहां पर महाविद्यालय और इंटर कॉलेज खुलने शुरू हो गए थे।
धर्मशाला का सबसे पहला सिनेमाहॉल भी 1935 में शुरू हो गया था। भारत की स्वंतंत्रता के बाद 1960 में तिब्बत के महामहिम दलाई लामा ने धर्मशाला को अपना मुख्यालय बना लिया था। समय के साथ होते गए विकास कार्यों की वजह से आज धर्मशाला व्यवसायिक, साहित्य, खेल, मनोरंजन, पर्यटन और कला जैसे सभी क्षेत्रों में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रहा है।
धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम – Dharamshala Cricket Stadium in Hindi
धर्मशाला के विश्व प्रसिद्ध क्रिकेट स्टेडियम का पूरा नाम हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम (HPCA) है। लेकिन ज्यादातर लोग इस स्टेडियम को धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के नाम से बुलाना ज्यादा पसंद करते है। विश्व के सबसे ज्यादा ऊँचाई पर स्थित क्रिकेट स्टेडियम होने की वजह से यह स्टेडियम पूरी दुनिया में अपनी एक अलग ही पहचान रखता है।
हिमालय की धौलाधर पर्वत श्रृंखला के पास स्थित इस स्टेडियम से बर्फ से ढके हुए पहाड़ो के बहुत सुंदर दृश्य दिखाई देते है और यही खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य इसे दुनिया का सबसे सुंदर क्रिकेट स्टेडियम भी बनाते है। समुद्रतल से 1457 मीटर (4780 feet) की ऊंचाई पर स्थित इस स्टेडियम का शुरुआती समय में उपयोग रणजी ट्रॉफी मैच और कुछ घरेलू क्रिकेट मैचों के लिए किया जाता था।
सबसे पहले भारत के राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी के पूर्व निदेशक डेव व्हाटमोर ने धर्मशाला के इस क्रिकेट ग्राउंड को अंतराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों की मेजबानी के लिये उपयुक्त मैदान बताया था। इस मैदान पर सबसे पहले खेलने वाली अंतराष्ट्रीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान की क्रिकेट टीम थी। वर्ष 2005 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम ने भारत-ए के विरुद्ध अपना पहला अभ्यास मैच इस मैदान पर खेला था।
धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम में सबसे पहला अंतराष्ट्रीय एकदिवसीय क्रिकेट मैच (ODI) भारत और इंग्लैंड के बीच 27 जनवरी 2013 को खेला गया था। इस पहले मैच में इंग्लैंड ने भारत को 07 विकेट से हराया था। एकदिवसीय क्रिकेट मैच के अलावा इस ग्राउंड का पहला टेस्ट मैच भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच में 25 मार्च से 29 मार्च 2017 तक खेला गया था।
धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम ने आईपीएल के कई मैचों की मेजबानी भी की है और इसके अलावा यह मैदान किंग्स इलेवन पंजाब टीम का घरेलू मैदान भी रहा है। यह क्रिकेट मैदान आम पर्यटकों के देखने के लिए पूरा साल खुला रहता है, आप जब चाहे इस खूबसूरत क्रिकेट के मैदान को देखने के लिए आ सकते है।
धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम देखने का समय – Dharamshala Cricket Stadium Timings in Hindi
पर्यटकों के लिये स्टेडियम में प्रवेश शुल्क 20/- रुपये निर्धारित किया गया है।
धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम में प्रवेश शुल्क – Dharamshala Cricket Stadium Tickets in Hindi
पर्यटकों के लिये स्टेडियम में प्रवेश शुल्क 20/- रुपये निर्धारित किया गया है।
द लाइब्रेरी ऑफ तिब्बती वर्क्स एंड आर्काइव्स (LTWA) – The Library of Tibetan Works and Archives in Hindi
अगर आप को तिब्बत के इतिहास और संस्कृति के बारे में जानने में थोड़ी बहुत रुचि भी है तो आप को धर्मशाला में स्थित द लाइब्रेरी ऑफ तिब्बती वर्क्स एंड आर्काइव्स में एक बार जरूर जाना चाहिए। 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने 11 जून 1970 में इस तिब्बती पुस्तकालय की स्थापना की थी। तिब्बती संस्कृति और इतिहास से जुड़ी हुई जानकारी प्राप्त करने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकालय माना जाता है।
1959 में जब दलाई लामा तिब्बत छोड़ कर भारत आये थे उस समय जो पुस्तकें अपने साथ लेकर आये थे उन्हीं पुस्तकों को इस पुस्तकालय में रखा गया है। पुस्तकालय में आपकी तिब्बती इतिहास, संस्कृति, कला और राजनीति से जुड़ी हुई कई महत्वपूर्ण पुस्तकें पढ़ने के लिए मिल सकती है इसके अलावा इस पुस्कालय में बहुत महत्वपूर्ण तिब्बती बौद्ध पांडुलिपियां और अभिलेखागार भी शामिल किये गए है।
यहाँ पर आप को 80,000 से अधिक पुस्तकें, पांडुलिपियां और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज रखे हुएँ है। बौद्ध धर्म से जुड़े हुए 600 से अधिक थानकों, मूर्तियाँ और कलाकृतियों का संग्रह भी इस पुस्कालय में शामिल किया गया है। पुस्तकालय में 10,000 तस्वीरों के समूह का संग्रह भी किया है। 1974 में पुस्तकालय की दूसरी मंजिल पर एक संग्रहालय भी बना हुआ है, इस संग्रहालय में 12वीं शताब्दी की कलाकृतियों और आइटम्स का संग्रह किया गया है।
द लाइब्रेरी ऑफ तिब्बती वर्क्स एंड आर्काइव्स में प्रवेश का समय (LTWA) – The Library of Tibetan Works and Archives Timings in Hindi
यह पुस्तकालय सोमवार से शनिवार तक सुबह 09:00 बजे से लेकर शाम को 05:00 बजे तक खुला रहता है।
द लाइब्रेरी ऑफ तिब्बती वर्क्स एंड आर्काइव्स में शुल्क (LTWA) – The Library of Tibetan Works and Archives Entry Fee in Hindi
पुस्तकालय का सदस्यता शुल्क 100/- रुपये निर्धारित किया गया है।
सेंट जॉन इन द वाइल्डरनेस चर्च धर्मशाला- St John in the Wilderness Church Dharamshala in Hindi
देवदार के घने वृक्षों के बीच में स्थित सेंट जॉन इन द वाइल्डरनेस चर्च धर्मशाला में स्थित एक एंग्लिकन चर्च है जिसका निर्माण 1852 में करवाया गया था। इस चर्च का निर्माण बैपटिस्ट जॉन के सम्मान में करवाया गया था। नव-गॉथिक वास्तुकला में निर्मित यह चर्च ग्लॉस पर की गई सुंदर कारीगरी के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
चर्च के निर्माण के समय लेडी एल्गिन (मैरी लुईसा लैम्बटन), लॉर्ड एल्गिन की पत्नी ने इस चर्च के निर्माण के लिए बेल्जियम स्टेनडं-ग्लास दान में दिए थे, जिनका उपयोग इस चर्च की खिड़कियों में किया गया था। यह चर्च इंडियन चर्च ट्रस्टी, मेट्रोपॉलिटन बिशप ऑफ इंडिया CIPBC के अधीन आता है। वर्ष 1905 में आये भूकंप की वजह से इस चर्च की इमारत को बहुत भारी नुकसान हुआ था।
कहा जाता है की 1905 में आये भूकंप में 19,800 लोग मारे गए थे और बहुत सारे लोग घायल भी हो गए थे। इस भूकंप में इस चर्च का बेल टॉवर टूट गया था। बाद में 1915 में इस चर्च के बेल टॉवर को ठीक करके नई घंटी लगाई गई। यह नई घंटी इंग्लैंड से मंगवाई गई थी और इस घंटी को चर्च परिसर के बाद स्थापित किया गया था।
सेंट जॉन इन द वाइल्डरनेस चर्च धर्मशाला देखने का समय – St John in the Wilderness Church Dharamshala Timings in Hindi
यह चर्च सुबह के 07:00 बजे से लेकर शाम को 06:00 बजे तक खुला रहता है।
सेंट जॉन इन द वाइल्डरनेस चर्च धर्मशाला में प्रवेश शुल्क – St John in the Wilderness Church Dharamshala Entry Fee in Hindi
पर्यटकों से किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है।
वॉर मेमोरियल धर्मशाला – War Memorial Dharamshala In Hindi
धर्मशाला में स्थित वॉर मेमोरियल हिमालय प्रदेश के उन वीर सैनिकों के सम्मान में बनाया गया है जिन्होंने ने चीन और पाकिस्तान से हुए युद्धों के समय सर्वोच्च बलिदान का परिचय दिया और इस देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। स्मारक में स्थापित किये गए संगमरमर के तीन काले पत्थरों पर हिमाचल प्रदेश के उन वीर सैनिकों के नाम अंकित किये गए है जिन्होंने ने विभिन्न युद्धों में देश की रक्षा करते हुए अपनी जान दे दी थी।
स्वंतंत्रता के बाद भारत के पाकिस्तान के साथ कुल चार बार युद्ध हुए (1947, 1965, 1971, 1999) और चीन के साथ 1962 में एक युद्ध लड़ना पड़ा। इन सभी युद्धों में भारत की संप्रभुता की रक्षा करते हुए हिमाचल प्रदेश के कई सैनिकों अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। चीन और पाकिस्तान से हुए युद्धों के अलावा सयुंक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भाग लेते हुए भी कई भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गँवा दी थी।
इस वॉर मेमोरियल में अब तक 1046 शिलालेख लिखे गए है। पाइंस के विशाल पेड़ो के बीच में स्थित यह वॉर मेमोरियल धर्मशाला के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। इस युद्ध स्मारक का निर्माण इस प्रकार किया गया है जिससे यह प्रतीत हो की यह स्मारक जीवन की निरंतरता को दर्शा रहा है।
स्मारक की घुमावदार दीवारें यह प्रदर्शित करती है की इस देश की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए सभी सैनिक प्रत्येक भारतीय के मन में हमेशा के लिए अमर हो गए हैं।
वॉर मेमोरियल धर्मशाला देखने का समय – War Memorial Dharamshala Timings In Hindi
पर्यटक सुबह 08:00 बजे से लेकर शाम को 08:00 बजे तक वॉर मेमोरियल देखने जा सकते है।
वॉर मेमोरियल धर्मशाला देखने का समय – War Memorial Dharamshala Entry Fee In Hindi
पर्यटकों के लिए वॉर मेमोरियल में प्रवेश शुल्क 05/- रुपये निर्धारित किया गया है।
ग्युटो मोनेस्ट्री धर्मशाला – Gyuto Monastery Dharamshala in Hindi
धर्मशाला से मात्र 08 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्युटो मोनेस्ट्री तिब्बती समाज और बौद्ध धर्म में विश्वास रखने वाले लोगो का प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है। मूल ग्युटो मोनेस्ट्री का निर्माण 15वीं शताब्दी के समय तिब्बत में किया गया था लेकिन 20वीं शताब्दी में जब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया तो तिब्बत से आये बौद्ध भिक्षुओं ने धर्मशाला में ग्युटो मोनेस्ट्री का पुनर्निर्माण करवाया।
ग्युटो मोनेस्ट्री काले जादू और तांत्रिक विद्या के लिए पूरी दुनिया भर में जाना जाता है। यहां पर काला जादू और तंत्र विद्या सीखने वाले भिक्षुओं का यह मानना है की इसका उपयोग लोगों की भलाई के लिए भी किया जा सकता है। पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म का पालन करने वाले लोगों के लिए ग्युटो मोनेस्ट्री किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है इसी वजह से बौद्ध धर्म के अनुयायी पूरे साल ग्युटो मोनेस्ट्री की यात्रा करते रहते है।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन इस मोनेस्ट्री में बौद्ध धर्म का पालन करने वाले लोग बहुत ज्यादा संख्या में आते है। साल के इस समय इस मोनेस्ट्री में तिब्बत और बौद्ध धर्म की सांस्कृतिक ख़ूबसूरती देखने लायक होती है। अगर आप बुद्ध पूर्णिमा के समय यहाँ आ रहें तो यहाँ मिलने वाला तिब्बत का स्थानीय भोजन जरूर खाकर देखे।
ग्युटो मोनेस्ट्री एक बहुत शक्तिशाली धार्मिक तीर्थ स्थल है जिसका तिब्बत और बौद्ध धर्म के लोगों में बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व भी है। काला जादू और तांत्रिक विद्या इस मठ के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहाँ की जाने वाली तांत्रिक साधना में यमंतक, गुह्यसमाज और चक्रसमार्वरा जैसी प्रथाएँ मुख्य रूप से शामिल है।
मंदिर परिसर में सखमुनि बुद्ध के बहुत ही सुंदर प्रतिमा भी स्थापित की गई है और इस प्रतिमा को इस प्रकार बनाया गया है की जब भी इस मूर्ति पर सूर्य की रोशनी गिरती है तो एक बहुत समृद्ध सुनहरा रंग चारों तरफ फैल जाता है। ग्युटो मोनेस्ट्री एक पहाड़ की चोटी पर बनी हुई है, इस पहाड़ की चोटी से हिमालय की धौलाधर पर्वत श्रृंखला और ब्यास नदी के बहुत सुंदर दृश्य दिखाई देते है।
ग्युटो मोनेस्ट्री धर्मशाला देखने का समय – Gyuto Monastery Dharamshala Timings in Hindi
सुबह 07:00 बजे से लेकर शाम को 07:00 बजे तक श्रद्धालु और पर्यटक ग्युटो मोनेस्ट्री देखने के लिए आ सकते है। एक धार्मिक स्थल होने की वजह से यह मोनेस्ट्री पूरे सप्ताह खुली रहती है।
ग्युटो मोनेस्ट्री धर्मशाला देखने का समय – Gyuto Monastery Dharamshala Entry Fee in Hindi
यहाँ पर किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है।
कांगड़ा वैली धर्मशाला – Kangra Valley Dharamshala in Hindi
हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखला में स्थित काँगड़ा वैली धर्मशाला के पास स्थित सबसे खूबसूरत पर्यटक स्थल में से एक माना जाता है। धर्मशाला से कांगड़ा वैली की दुरी मात्र 28 किलोमीटर है।
हिमालय में स्थित काँगड़ा वैली धौलाधार पर्वत श्रृंखला से ब्यास नदी तक फैली हुई है। समुद्रतल से इस वैली की ऊंचाई लगभग 2000 फ़ीट है, धौलाधार रेंज की ढलान में स्थित होने की वजह से इस वैली में बारह महीने बहने वाले झरने भी दिखाई देते है जो की इस घाटी की सुंदरता को बढ़ाने में सहायता करते है।
कांगड़ा वैली में रहने वाले स्थानीय निवासी अपनी दैनिक दिनचर्या कांगड़ी भाषा का उपयोग करते है। काँगड़ा वैली भौगोलिक रूप से धौलाधार रेंज और चम्बा की सीमा को चिह्नित करते हुए रेंज की सबसे ऊँची चोटी 4863 मीटर (15,956 फ़ीट) तक जाती है।
UNESCO World Heritage Site के संभावित दावेदार मसरूर रॉक कट टेम्पल भी काँगड़ा घाटी में ही स्थित है। काँगड़ा घाटी में स्थित ये मंदिर “हिमालयन पिरामिड” के नाम से भी प्रसिद्ध है।
मैक्लोडगंज – McLeodganj in Hindi
धर्मशाला दो हिस्सों में बंटा हुआ हिमाचल का एक बहुत ही खूबसूरत शहर है और साथ में एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है। धर्मशाला के एक हिस्से को कोतवाली बाज़ार(लोअर धर्मशाला) और दूसरे हिस्से को मैक्लोडगंज(अपर धर्मशाला) कहा जाता है। मैक्लोडगंज से धर्मशाला की दूर मात्रा 5.5 किलोमीटर है।
मैक्लोडगंज धर्मशाला का एक उपनगर होने के बावजूद भी अपनी एक अलग पहचान रखता है। अधिकांश लोगों को तो मैक्लोडगंज आने के बाद पता चलता है की यह छोटा सा शहर धर्मशाला का उपनगर है।
स्थानीय निवासी इस शहर को मैक्लोडगंज या फिर मैकलोड गंज कह कर भी बुलाते है। इस खूबसूरत शहर में तिब्बत से आये हुए लोगों की एक बड़ी आबादी रहती है इसलिए इस जगह को “छोटा ल्हासा” या फिर “ढासा” भी कहा जाता है। मैक्लोडगंज में तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय भी बना हुआ है।
औपनिवेशिक काल में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर डोनाल्ड फ्रिल मैक्लॉड के नाम पर इस शहर का नाम मैक्लोडगंज रखा गया था। समुद्रतल से 2082 मीटर (6831 फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित मैक्लोडगंज हिमाचल के सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक माना जाता है। मैक्लोडगंज की और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
धर्मकोट – Dharmkot in Hindi
धर्मशाला से मात्र 06 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धर्मकोट एक बहुत छोटा और खूबसूरत हिल स्टेशन है। इसकी खूबसूरती को अनुमान आप इस बात से लगा सकते है की वर्तमान समय में बहुत सारे विदेशी यात्री इस जगह पर स्थायी रूप से भी रहने लगे है।
धर्मकोट से दिखाई देने वाले धौलाधर रेंज और कांगड़ा घाटी के लिये बहुत ज्यादा प्रसिद्ध माना जाता है। इसके अलावा यहाँ पर बने हुए विपश्यना ध्यान केंद्र, धम्म शिकारा और तुशिता ध्यान केंद्र है जिनमें आप बौद्ध धर्म का अध्ययन और तिब्बती महायान परंपरा का अभ्यास कर सकते है।
अधिकांश पर्यटक धर्मकोट में प्राकृतिक दृश्यों को देखने के साथ-साथ मेडिटेशन करने के लिए यहाँ पर आना बहुत पसंद करते भी।
चाय के बागान धर्मशाला – Tea Gardens Dharmshala in Hindi
वैसे तो पूरे भारत में आसाम की चाय बहुत ज्यादा पसंद की जाती है, और वहाँ पर चाय के बड़े-बड़े बागान आँखों को एक अलग एक सुकून देते है। उसी ही तरह धर्मशाला के चाय के बागान भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है बस यह चाय के बागान भारत के सबसे छोटे चाय के बागान में गिने जाते है।
आकार में छोटे होने के बावजूद भी यह चाय के बागान कई एकड़ में फैले हुए होते है और यही वजह है की धर्मशाला घूमने आने वाले पर्यटक यहाँ के चाय के बागान देखने जरूर देख कर जाते है। चाय के बागान में फैली हुई चाय की पत्तियों की सुगंध आपको एक सुखद अनुभव प्रदान करती है। इन चाय के बागानों से आप को कांगड़ा वैली और धौलाधर पर्वत श्रृंखला के बहुत सुंदर और मनमोहन दृश्य दिखाई देते है।
मसरूर रॉक कट टेम्पल धर्मशाला – Masrur Rock Cut Temple Dharmshala in Hindi ( Masroor Rock Cut Temple)
धर्मशाला के पास स्थित कांगड़ा घाटी में बने हुए मसरूर मंदिर (मसरूर रॉक कट टेम्पल) 8वीं शताब्दी में निर्मित प्राचीन हिन्दू मंदिर है। उत्तर भारतीय नागर वास्तुशैली में निर्मित यह प्राचीन मंदिर मुख्य रूप से हिन्दू धर्म के भगवान शिव और भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिरों का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण करने वाले वास्तुकारों और कारीगरों की योजना एक बहुत विशाल मंदिर परिसर बनाने की थी लेकिन वह योजना किसी कारणवश अधूरी रह गई।
वर्तमान में इन मंदिरों में स्थापित अधिकांश मूर्तियाँ या तो खो गई है या फिर क्षतिग्रस्त हो गई है। मूर्तियों के क्षतिग्रस्त होने का सबसे बड़ा कारण 1905 में यहां पर आया एक भूकंप माना जाता है। मसरूर मंदिरों के शिखर निर्माण में एक विशाल पत्थर का उपयोग किया गया है और हिन्दू धर्म ग्रंथों में मंदिर निर्माण की वास्तुकला का उपयोग करते हुए मंदिर परिसर के पास पवित्र जल का स्त्रोत भी बनाया गया है।
मंदिर में कुल तीन प्रवेश द्वार बने हुए है जिनमें से दो प्रवेश द्वार अधूरे बने हुए है। विशेषज्ञों के अनुसार मंदिर में प्रवेश के लिए एक चौथे प्रवेश द्वार का निर्माण भी शुरू किया गया था लेकिन उसका निर्माण कार्य भी पूरा नहीं किया गया था। यहाँ बने हुए मुख्य मंदिर के चारों तरफ कई छोटे-छोटे मंदिर बने हुए है। मुख्य मंदिर के गृभगृह में हिन्दू देवी-देवताओं और वैदिक ग्रंथों को उकेरा गया है।
1913 में अंग्रेज अधिकारी हेनरी शटलवर्थ इन मंदिरों को पुरातत्वविदों के ध्यान में लेकर आये थे। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान यह कहा था की यह साइट एक “वैष्णव मंदिर” है और साथ में यह दावा किया की इन मंदिरों की यात्रा करने वाले पहले यूरोपियन है। उसके बाद 1915 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के हेराल्ड हरग्रेव्स ने स्वंतंत्र रूप से इन प्राचीन मंदिरों का अध्ययन किया था। 12वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत बड़े स्तर पर विदेशी आक्रमण और सामाजिक अस्थिरता फैली हुई थी।
इस समय के दौरान किसी भी तरह के ऐतिहासिक साहित्य में मसरूर मंदिरों का उल्लेख नहीं मिलता है। कुछ इतिहासकारों का मानना है की इस समय मसरूर और कांगड़ा घाटी के आसपास के क्षेत्र में पहाड़ी राजाओं और छोटे-छोटे जागीरदारों का राज था। और उनके बाद कई वर्षों तक मुगल आक्रमणकारियों ने इस जगह पर शासन किया।
औपनिवेशिक काल में 19वीं शताब्दी के आखरी सालों में ब्रिटिश अधिकारियों ने इन मंदिरों के सरंक्षण के प्रयास शुरू किये थे। 1887 में मसरूर मंदिरों का अध्ययन करने के लिये पहली आधिकारिक यात्रा शुरू की गई थी। यह साइट पहले ही बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त अवस्था में थी और 1905 में आये भूकंप ने भी इस मंदिर परिसर को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया था।
मंदिर से जुड़ी हुई पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के समय पांडवो ने अपने गुप्त वनवास के समय इन मंदिरों का निर्माण करवाया था। कुछ समय के बाद कौरवों को जब उनके बारे में पता चल गया तब वो लोग इस स्थान को छोड़ कर चले गए इसी वजह स इन मंदिरों का निर्माण अधूरा रह गया।
मसरूर रॉक कट टेम्पल धर्मशाला देखने का समय – Masrur Rock Cut Temple Dharmshala Timings in Hindi ( Masroor Rock Cut Temple)
सुबह 07:00 बजे से लेकर शाम को 07:00 बजे तक।
मसरूर रॉक कट टेम्पल धर्मशाला में प्रवेश शुल्क – Masrur Rock Cut Temple Dharmshala Entry Fee in Hindi ( Masroor Rock Cut Temple)
यहाँ पर किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है।
कोतवाली बाज़ार धर्मशाला (धर्मशाला स्थानीय बाजार) – Kotwali Bazaar Dharamshala In Hindi (Local Market in Dharamshala in Hindi)
धर्मशाला के स्थानीय बाजार में कोतवाली बाजार सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, इस बाजार को स्थानीय निवासी लोअर धर्मशाला के नाम से भी जानते है। कोतवाली बाजार में पर्यटकों द्वारा तिब्बती ट्रिंकट और गरम कपड़े बहुत ज्यादा पसंद किये जाते है।
धर्मशाला के इस स्थानीय बाजार में शॉल, स्वेटर और कार्डिगन और दैनिक दिनचर्या से जुड़ा हुआ सामान खरीदने के लिए बहुत सारी दुकानें उपलब्ध मिल जाएगी। आप यहाँ के तिब्बती बाजार से क्रिस्टल, पत्थर और लकड़ी आदि से बने हुए बुद्ध की मूर्ति भी खरीद सकते है।
बुद्ध की मूर्ति के अलावा आप यहाँ से कालीन, तिब्बती आसन और हिमाचल में पहने जाने वाले गरम कपड़े भी खरीद सकते है।
धर्मशाला का स्थानीय भोजन – Local food in Dharamshala in Hindi
एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने की वजन से आपको धर्मशाला में खाने के लिए कई रेस्टोरेंट, ढ़ाबे और स्ट्रीट फ़ूड के विकल्प उपलब्ध मिल जाएंगे है। यहां पर आप के लिये उत्तर भारतीय भोजन, दक्षिण भारतीय भोजन और पंजाबी खाने के ढ़ेर सारे विकल्प उपलब्ध है, लेकिन यहाँ पर मिलने वाले थुपका और मोमोज़ जैसे फास्ट फूड बहुत ज्यादा स्वादिष्ट होते है।
अगर आप धर्मशाला घूमने जा रहे है तो आपको यहाँ का स्थानीय भोजन जरूर ट्राई करना चाहिए जैसे तुड़किया भात, थुपका, शप्ता, मोमोज़, मीठा, मैगी और चाय, धम, क्ले ओवन पिज़्ज़ा, भागसू केक और आलू फिंग शा आदि।
इनमें से कुछ खाने की चीजें मांसाहारी भी है तो अगर आप शाकाहारी है तो इनमें से कुछ भी खाने से पहले खाने बनाने वाले से पूछ ले की इन से कौन सी चीज़ शाकाहारी है और कौन सी मांसाहारी है।
धर्मशाला में होटल – Hotel in Dharamshala in Hindi
धर्मशाला हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। पूरे साल लाखों की संख्या में पर्यटक घूमने के लिए धर्मशाला आते है। एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने के साथ-साथ धर्मशाला कांगड़ा जिले का जिला मुख्यालय भी है।
एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल और जिला मुख्यालय होने की वजह से धर्मशाला में पर्यटकों के ठहरने के लिये बहुत सारी होटल बनी हुई है। अपनी धर्मशाला यात्रा के समय आप चाहे तो ऑनलाइन होटल बुकिंग वेबसाइट से अपने लिए रूम बुक करवा करके धर्मशाला जा सकते है।
होटल रूम बुकिंग वेबसाइट पर्यटकों को पूरे साल धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत सारे आकर्षक ऑफर देती रहती है। आप अलग-अलग वेबसाइट पर रेट और रिव्यु की तुलना करके अपने होटल में रूम बुक करवा सकते है। आप के पास समय है तो आप धर्मशाला पहुँच कर भी अपने लिए एक अच्छा रूम बूक कर सकते है।
धर्मशाला घुमने का सबसे अच्छा समय – Best time to visit Dharamshala in Hindi
वैसे तो आप पूरे साल में किसी भी समय धर्मशाला घूमने के लिए जा सकते है। धर्मशाला में बहुत तेज गर्मी नहीं पड़ती है अप्रैल से लेकर जून महीने में यहां का तापमान 22° डिग्री सेल्शियस से लेकर 35° सेल्शियस तक जाता है।
जुलाई से लेकर सितंबर तक धर्मशाला में मानसून का मौसम रहता है इस वक़्त भी यहाँ की खूबसूरती देखने लायक होती है। अक्टूबर से लेकर मार्च में ठंड का मौसम रहता है और इस समय यहाँ पर आपको बर्फबारी भी देखने के लिए मिल सकती है। अब ये आप पर निर्भर करता है की आप कब धर्मशाला घूमने का प्लान बनाते है।
धर्मशाला कैसे पहुँचे – How to reach Dharamshala in Hindi
हवाई जहाज से धर्मशाला कैसे पहुँचे – How to reach Dharmashala by Flight in Hindi
धर्मशाला के सबसे निकटतम हवाईअड्डा गग्गल हवाईअड्डा है। धर्मशाला से गग्गल हवाईअड्डे की दूरी मात्र 13 किलोमीटर है। भारत के प्रमुख शहरों से गग्गल हवाईअड्डे की लिए उड़ान संचालित की जाती है।
आप चाहे तो पठानकोट हवाईअड्डे से भी धर्मशाला बड़ी आसानी पहुँच सकते है। धर्मशाला से पठानकोट की दूरी मात्र 90 किलोमीटर है। गग्गल और पठानकोट से आपको नियमित रूप से धर्मशाला के लिए बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध मिल जाएगी।
रेल से धर्मशाला कैसे पहुँचे – How to reach Dharmashala by Rail in Hindi
पठानकोट रेलवे स्टेशन धर्मशाला के सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन है। धर्मशाला से पठानकोट रेलवे स्टेशन की दूरी मात्र 86 किलोमीटर है। पठानकोट रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशन से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
पठानकोट से आप बस और टैक्सी के द्वारा बहुत आसानी से धर्मशाला पहुँच सकते है। कांगड़ा रेलवे स्टेशन से धर्मशाला मात्र 22 किलोमीटर दूर है लेकिन यहाँ पर किसी भी बड़े रेलवे स्टेशन नियमित रेल सेवा उपलब्ध नहीं है।
सड़क मार्ग से धर्मशाला कैसे पहुँचे – How to reach Dharmashala by Road in Hindi
धर्मशाला के लिए दिल्ली, पंजाब और हरियाणा से सरकारी और निजी बस सेवा नियमित रूप से उपलब्ध रहती है। धर्मशाला सड़क मार्ग से दिल्ली और उत्तर भारत के कई शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। धर्मशाला जाने वाली अधिकांश बसें लोअर धर्मशाला के मुख्य बस टर्मिनल तक ही जाती है।
लेकिन हरियाणा रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (HRTC) की कुछ बसें अपर धर्मशाला (मैक्लोडगंज) के मुख्य चौक तक भी जाती है। बस के अलावा आप टैक्सी और निजी वाहन से बड़ी आसानी से धर्मशाला तक पहुँच सकते है।
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