हिमालय की तलहटी में स्थित ज्वाला देवी मंदिर काँगड़ा जिले का प्रमुख धार्मिक स्थल है। धर्मशाला से ज्वाला देवी मंदिर की दुरी मात्र 52 किलोमीटर है। ज्वाला देवी मंदिर 52 शक्तिपीठो में से एक मंदिर है, ऐसा माना जाता है की देवी सती की जीभ इसी स्थान पर गिरी थी, और जब देवी सती की जीभ इस स्थान पर गिरी थी उसी समय यहाँ पर एक अग्नि प्रज्जवलित हो गई जो की आज भी निरंतर जल रही है।
कुछ श्रद्धालुओं का यह मानना है की यहाँ पर देवी सती के वस्त्र गिरे थे। यह प्राचीन मंदिर कटरा में स्थित वैष्णो देवी मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों में एक माना जाता है। ज्वाला देवी मंदिर के गर्भगृह में किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है बल्कि यहाँ पर जमीन से निकलने वाली 09 अलग-अलग ज्वालाओं की पूजा की जाती है।
इस मंदिर में जलने वाली सभी ज्वालायें कई सदियों से प्राकृतिक रूप से जल रही है, इनको ज्वालाओं को जलाने के लिए किसी भी प्रकार के ईंधन का उपयोग नहीं किया जाता है। इन सभी ज्वालाओं को देवी दुर्गा के 09 रूप – महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्य वासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी मान कर ही इनकी पूजा अर्चना की जाती है। यहाँ पर देवी दुर्गा को राबड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
नवरात्रों के समय ज्वाला देवी मंदिर में बहुत बड़े वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे भाग लेने के लिए पुरे देश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु ज्वाला देवी मंदिर आते है। माँ ज्वाला देवी ठाकुरों, लखनपाल, भाटी और गुजरातियों की कुल देवी भी मानी जाती है। ज्वाला देवी मंदिर का उल्लेख महाभारत और कई अन्य पौराणिक ग्रंथो में भी किया गया है।