गोविंद देव जी का मंदिर 2024 | गोविंद देव जी मंदिर जयपुर का इतिहास | Govind dev Ji Temple Jaipur in Hindi 2024 | Govind dev Ji Temple History in Hindi | Govind Dev Ji Temple Timing | Entry Fee
गोविन्द देव जी मंदिर, जयपुर – Govindd dev Ji Temple Jaipur
जयपुर में स्थित विश्व प्रसिद्ध गोविन्ददेव जी के मंदिर में स्थापित विग्रह को भगवान श्री कृष्ण का मूर्त रूप माना जाता है। गोविन्ददेव जी के मूल मंदिर का निर्माण ई. 1590 (सं. 1647) में वृंदावन में किया गया था।
वृन्दावन में बने हुए गोविन्ददेव जी के मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी श्री रूप गोस्वामी जी और सनातन गुरु श्री कल्याणदास जी को दी गई थी, तथा मंदिर निर्माण का पूरा खर्च आमेर के राजा सवाई मानसिंह प्रथम के पुत्र राजा श्री भगवान दास जी ने वहन किया था। जयपुर स्थित गोविन्ददेव जी के मंदिर का निर्माण राजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा सं. 1715 में करवाया गया था।
भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित गोविन्ददेव जी का यह मंदिर जयपुर का एकलौता बिना शिखर का मंदिर है। गोविन्ददेव जी का मंदिर सिटी पैलेस में स्थित चन्द्र महल की पूर्व दिशा में बने हुए जयनिवास के बगीचे के मध्य अहाते में बना हुआ है। गोविन्ददेव जी के मंदिर में स्थापित भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह को वृन्दावन से लेकर जयपुर में प्रतिष्ठत करने की यात्रा बहुत लंबे संघर्ष के बाद संभव हो पायी थी।
गोविन्ददेव जी मंदिर और भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह का इतिहास – Govinddev ji temple and history of Lord Krishna’s Deity in Hindi
गोविन्ददेव जी जयपुर राजपरिवार के आराध्य भगवान है मंदिर में स्थापित विग्रह को भगवान श्रीकृष्ण का मूर्त रूप माना जाता है।पौराणिक कथाओं और इतिहास के अनुसार मंदिर में स्थापित गोविन्ददेव जी के विग्रह से भगवान श्रीकृष्ण का सुंदर श्याम रंग चेहरा और आँखें हूबहू मिलती है।
इतिहासकारों के अनुसार गोविन्ददेव जी के विग्रह का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ ने करवाया था। गोविन्ददेव जी के विग्रह से पहले ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण के दो और विग्रह बनवाये जिनमें एक का नाम श्री मदन मोहन रखा और दूसरे विग्रह का नाम गोपीनाथ जी रखा गया इस प्रकार ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण के कुल तीन विग्रह बनवाये।
वर्तमान में भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह राजस्थान में ही स्थापित है। गोविन्ददेव जी और गोपीनाथ जी के विग्रह जयपुर में स्थापित है और श्री मदन मोहन जी का विग्रह जयपुर से कुछ दूरी पर स्थित करौली में स्थापित किया हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण के ये तीनो विग्रह समान रूप से पूजनीय है तथा तीनों विग्रहों को भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात रूप माना जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण के तीन विग्रह का इतिहास – History of revealing Govind Dev Ji’s Deity to Jaipur in Hindi
पौराणिक कथाओं और कुछ इतिहासकारों के अनुसार महाभारत के युद्ध के कुछ समय उपरांत अभिमन्यु के पुत्र महाराजा परीक्षित ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ को मथुरा का राजा घोषित कर दिया । मथुरा का राजा बनने के उपरांत ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े हुए सभी धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार करवाना शुरू कर दिया था।
अपने पितामह भगवान श्रीकृष्ण के प्रति ब्रजनाभ की बहुत ही गहरी आस्था थी एक तरह से भगवान श्रीकृष्ण ब्रजनाभ के लिए सर्वप्रथम पूज्नीय थे। अपनी इसी आस्था और श्रध्दा के कारण ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण का हूबहू विग्रह बनाने का संकल्प किया। भगवान श्रीकृष्ण को ब्रजनाभ की दादी जी ने देखा था, इसलिए अपनी दादी जी के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के किये गए वर्णनों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह का निर्माण उस समय के श्रेष्ठ हस्तशिल्पियों से शुरू करवाना प्रारम्भ किया।
विग्रह पूरी तरह से बन जाने के बाद ब्रजनाभ ने विग्रह को दादी जी को दिखाया जिसे देखकर ब्रजनाभ के दादी जी ने कहा की विग्रह के पावँ तो श्रीकृष्ण से मेल खाते लेकिन बाकी के शरीर का शिल्प भगवान श्रीकृष्ण से मेल नहीं खाता। इसके बाद ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रथम विग्रह को मदन मोहन नाम दिया। मदन मोहन जी का विग्रह वर्तमान में राजस्थान के करौली जिले में प्रतिष्ठत है।
प्रथम विग्रह के तुरंत बाद ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण के दूसरे विग्रह का निर्माण करवाया जिसके बारे में ब्रजनाभ के दादी जी ने कहा की इस विग्रह का वक्षस्थल और बाजू भगवान श्रीकृष्ण से मेल खाते है बाकी का शरीर भगवान श्रीकृष्ण से मेल नहीं खाता है। भगवान श्रीकृष्ण के दूसरे विग्रह का नाम ब्रजनाभ ने गोपीनाथ दिया। गोपीनाथ जी के विग्रह को जयपुर के पुरानी बस्ती में एक भव्य मंदिर में प्रतिष्ठत किया गया है।
दादी जी द्वारा किये गए भगवान श्रीकृष्ण के उल्लेख के अनुसार ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण के तीसरे विग्रह का निर्माण और करवाया। भगवान श्रीकृष्ण के तीसरे विग्रह का देखकर ब्रजनाभ के दादी जी भाव-विभोर हो गए। उन्होंने ब्रजनाभ को बताया की इस विग्रह का चेहरा भगवान श्रीकृष्ण से पूरा मेल खाता है। यह सुन कर ब्रजनाभ बहुत प्रसन्न हुए। और इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण तीसरा और अंतिम विग्रह को गोविंद देव जी के नाम से बुलाया जाने लगा।
उस के बाद ब्रजनाभ ने भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रहों को एकसाथ एक विशाल और भव्य मंदिर में पूरे विधि-विधान के साथ प्रतिष्ठित करवाया। वर्तमान में भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह राजस्थान में प्रतिष्ठित है। गोविन्द देव जी और गोपीनाथ जी के विग्रह जयपुर में प्रतिष्ठित है और मदन मोहन जी का विग्रह करौली में प्रतिष्ठित है। ऐसी मान्यता है की अगर कोई भी व्यक्ति एक दिन में भगवान श्रीकृष्ण इन तीनों विग्रहों के दर्शन करता है तो उसके भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यह तीनो विग्रह भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात स्वरूप के विग्रह होने के कारण तीनों मंदिरों में पूरे साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते है।
गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर का इतिहास- Govind Dev Ji Temple History in Hindi
गोविन्द देव जी के विग्रह को जयपुर में प्रतिष्ठित करने से पहले इस विग्रह का निर्माण कैसे हुआ और इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह श्री मदन मोहन जी, श्री गोपीनाथ जी और श्री गोविन्द देव जी के विग्रह निर्माण के बारे में आपको एक संक्षिप्त विवरण देना उचित समझा। भगवान श्रीकृष्ण के इन तीनों विग्रहों के निर्माण का इतिहास जितना प्रेरणादायी और रोचक है।
उतना ही प्रेरणादायी और संघर्ष पूर्ण गोविंद देव जी के विग्रह को जयपुर प्रतिष्ठित करने का इतिहास रहा है। इतिहासकारों और पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री मदन मोहन जी, श्री गोपीनाथ जी और श्री गोविन्द देव जी, भगवान श्रीकृष्ण के इन तीनों विग्रह का निर्माण 5000 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ द्वारा करवाया गया था।
ब्रजनाभ के शासनकाल की समाप्ति के तुरंत बाद ही मथुरा और उसके अन्य प्रान्तों पर यक्ष जाति के शासक अपना अधिकार कर लेते है। यक्ष जाति के शासक मथुरा की आम जनता को परेशान करना शुरू कर देते है और मथुरा में धार्मिक महत्व की इमारतों को नष्ट करना शुरू कर देते है।
यक्षों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों और तोड़ फोड़ से भगवान श्रीकृष्ण के तीनो विग्रहों को बचाने के लिए मंदिर के पुजारी तीनों विग्रहों को भूमि में छुपा देते है। कुछ समय के पश्चात गुप्त शासक नृपति परम द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रहों को भूमि से निकाल कर पुनः एक भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित करवाया जाता है।
दसवीं शताब्दी के आते आते भारत में विदेशी और मुगल आक्रांताओं के आक्रमण बढ़ने लग गए जिनमें भी महमूद गजनवी का नाम सबसे ज्यादा लिखा जाता है। इन्हीं बाहरी आक्रमणों से बचने के लिये भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रहों को पुनः भूमि में छुपा दिया जाता है।
भारत में मुगल आक्रांताओं ने बहुत लंबे समय तक शासन किया जिस वजह से भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह के बारे में मथुरा के सभी पुजारियों और श्रद्धालुओं द्वारा भूला दिया गया। 600 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद 16वीं शताब्दी में भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त चैतन्य महाप्रभु ने अपने दो शिष्यों रूप गोस्वामी जी और सनातन गोस्वामी जी को मथुरा और वृन्दावन के आसपास के क्षेत्रों में भगवान श्रीकृष्ण के लीला स्थलों की खोज करने की जिम्मेदारी सौंपी।
रूप गोस्वामी जी और सनातन गोस्वामी जी ने कुछ समय तक भगवान श्रीकृष्ण के लीला स्थालों को ढूंढ कर उन सभी स्थालों की जानकारी इकट्ठा की। ऐसा माना जाता है की एकबार भगवान श्री गोविन्द देव जी ने रूप गोस्वामी जी को सपने में दर्शन दिए और वृन्दावन के पास स्थित गोमा टीले पर उनके विग्रह को ढूंढ़ने के निर्देश दिए।
श्री गोविन्द देव जी द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार, रूप गोस्वामी जी ने कई सदियों से भूमि दबे हुए भगवान के विग्रह को खोज कर एक साधारण सी कुटिया में भगवान श्री गोविंद देव जी के विग्रह की दोबारा से प्राण-प्रतिष्ठा की।
श्री गोविन्द देव जी के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा की सूचना जब जयपुर का महाराजा सवाई मानसिंह को मिली तब उन्होंने वृन्दावन में आकर श्री गोविन्द देव जी के विग्रह की पूजा अर्चना की और 1590 में श्री गोविंद देव जी को समर्पित, एक सात मंजिला विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
उस समय के मुगल शासक अकबर ने श्री गोविन्द देव जी के निर्माण उपयोग में लिया गए लाल पत्थर की व्यवस्था करवाई और मंदिर के आसपास की जमीन को गौशाला के लिए दान कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार किसी मुगल शासक द्वारा इतने बड़े हिन्दू देवालय के निर्माण में सहयोग का एकलौता उदाहरण है।
कुछ समय के उपरांत राधारानी के विग्रह को उड़ीसा से लाया गया और श्री गोविन्द देव जी के साथ प्रतिष्ठित किया गया। अकबर के बाद भारत पर मुगल आक्रांता औरंगजेब के पास भारत की सत्ता आ गई। औरंगजेब ने तुरंत प्रभाव से भारत के सभी हिन्दू धार्मिक स्थलों को तोड़ने के आदेश दे दिए और मंदिरों को मिलने वाली सभी तरह की सुविधाओं को पूरी तरह से बंद कर दिया।
मथुरा और वृन्दावन के हिन्दू धार्मिक स्थल भी औरंगजेब के इन तानाशाही आदेशों से अछूते नहीं रहे। उस समय श्री गोविन्द देव जी मंदिर के पुजारी शिवराम गोस्वामी जी व अन्य श्रद्धालु गोविन्द देव जी और राधारानी के विग्रह को एकबार वापस जंगल में ले जाकर छिप गए। कुछ समय के पश्चात आमेर के तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह प्रथम के पुत्र रामसिंह ने अपने संरक्षण में भगवान श्री गोविन्द देव जी के विग्रह को भरतपुर के कामां लेकर आए।
कुछ समय के बाद सवाई महाराजा जयसिंह द्वितीय, श्री गोविन्द देव जी के विग्रह को भरतपुर से आमेर घाटी लाकर श्री गोविन्द देव जी के विग्रह की प्राण- प्रतिष्ठा की। सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने जिस स्थान पर श्री गोविंद देव जी के विग्रह को प्रतिष्ठित किया उस जगह को आज कनक वृन्दावन के नाम से जाना जाता है। जयपुर का प्राचीन श्री गोविन्द देव जी का मंदिर आज भी कनक वृन्दावन में स्थित है।
एक कथा के अनुसार जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह को सपने में भगवान श्री गोविन्द देव जी दर्शन देकर यह निर्देश देते है की उनके विग्रह को कनक वृन्दावन से स्थानांतरित करके जयपुर में स्थित चन्द्रमहल के पास विराजमान किया जाए।
उसके बाद सवाई राजा जयसिंह तुरंत प्रभाव से चन्द्रमहल के पास स्थित जयनिवास के आहते में श्री गोविन्द देव जी के मंदिर का निर्माण करवाते है। श्री गोविन्द देव के मंदिर का निर्माण कार्य 1735 में पूरा हुआ। इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार करवाया गया है की जिससे चन्द्रमहल में स्थित महाराजा के शयनकक्ष से भगवान श्री गोविन्द देव जी के सीधे दर्शन हो सकते है।
मंदिर में भगवान श्री गोविन्द देव जी के समीप चैतन्य महाप्रभु गौर-गोविन्द की लघु प्रतिमा भी स्थापित की गई है। राधारानी और गोविन्द देव जी की प्रतिमाओं के दोनों तरफ दो सखियाँ भी खड़ी की गई है। राधारानी के पास खड़ी प्रतिमा का नाम विशाखा सखी है सवाई राजा जयसिंह ने इस प्रतिमा का निर्माण राधारानी की सेवा के लिए करवाया था।
दूसरी सखी जिसका नाम ललित सखी है का निर्माण सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था। ललिता नाम की एक सेविका भगवान श्री गोविन्द देव जी पान सेवा बहुत ही भक्ति भाव से किया करती थी इससे प्रसन्न होकर सवाई प्रताप सिंह ने ललिता सखी की प्रतिमा को गोविन्द देव जी के विग्रह के पास स्थापित करवाया।
गोविंद देव जी मंदिर जयपुर में दर्शन का समय – Govind Dev Ji Temple Jaipur Timings in Hindi
गोविन्द देव जी मंदिर में आरती का समय – Govind Dev Ji Temple Aarti Timings
आरती | काल | समय | समय |
मंगला आरती | प्रातःकाल | 4 : 30 प्रातः | 5 : 45 प्रातः |
धुप आरती | प्रातःकाल | 7: 45 प्रातः | 9 : 00 प्रातः |
श्रृंगार आरती | प्रातःकाल | 9:30 प्रातः | 10:15 प्रातः |
राज भोग आरती | प्रातःकाल | 11:00 प्रातः | 11:30 प्रातः |
ग्वाल आरती | संध्या | 05:15 संध्या | 05:45 संध्या |
संध्याकाल आरती | संध्या | 06:15 संध्या | 07:30 संध्या |
श्यन आरती | रात्रि | 08:30 रात्रि | 09:00 रात्रि |
नोट:- श्री गोविन्द देव जी मंदिर में दर्शन और आरती का समय मौसम के हिसाब से बदलता रहता है |
गोविन्द देव जी मंदिर जयुपर में प्रवेश शुल्क -Govind Dev Ji Temple Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
गोविंददेव जी मंदिर के आस पास घूमने की सबसे अच्छी जगह – Tourist Place Near Govind Dev Ji Temple in Hindi
रणथम्भौर किला, रणथम्भौर नेशनल पार्क , रणथम्भौर नेशनल पार्क टाइगर सफारी, पुष्कर, जयपुर भाग-01, जयपुर भाग-02, जयपुर भाग-03, हाथी गांव, आमेर किला, कोटा, केवलादेव घना पक्षी विहार, सरिस्का टाइगर रिज़र्व, झालाना लेपर्ड रिज़र्व, भानगढ़ किला इसके अलावा उत्तर प्रदेश भी एक नजदीकी राज्य है यहां पर मथुरा, वृन्दावन और आगरा भी घूमने जा सकते है |
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )