काशी विश्वनाथ मंदिर 2024 | काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास | Kashi Vishwanath Mandir 2024 in Hindi | Kashi Vishwanath Mandir Travel Guide 2024 in Hindi | Kashi Vishwanath Mandir History in Hindi | History | Aarti Timings | Entry Timings | Kashi Vishwanath Mandir In Hindi
काशी विश्वनाथ – Kashi Vishwanath in Hindi
भगवान शिव की नगरी काशी जिसे आज हम वाराणसी और बनारस की नाम से भी जानते है। कहा जाता है की इस प्राचीन और पवित्र शहर की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी। वैसे अगर हम ऐतिहासिक तथ्यों की बात करते है तो हमें यह पता चलता है की वाराणसी विश्व के उन गिने चुने शहरों में से एक जिनकी सभ्यता 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है।
इसके अलावा मूर्ति विज्ञान के विशेषज्ञों ने यहाँ मिले भगवान शिव और उनके पास बैठे हुए बैल को चित्रित किये हुए एक धातु के सिक्के का अध्ययन किया तो उनको यह पता चलता है की यह सिक्का लगभग 12400 वर्ष पुराना है। अब आप इससे यह अंदाज लगा सकते है की वाराणसी कितना पुराना शहर है और इसकी सभ्यता कितने वर्ष पुरानी हो सकती है।
वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक बेहद प्राचीन और प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। वाराणसी की विश्वनाथ गली और गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित काशी विश्वनाथ मन्दिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 07 वें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में स्थापित भगवान शिव के शिवलिंग को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से पूजा जाता है जिसका सामान्य भाषा मे मतलब होता है पूरे ब्रम्हांड का स्वामी।
हिन्दू धर्म से जुड़े हुए अनेक प्राचीन धर्मग्रंथों में काशी विश्वनाथ मंदिर को शैव दर्शन में पूजा के एक केंद्रीय भाग के रूप में बहुत लंबे समय वर्णित किया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर को अनेको बार बाहरी मुगल आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़ा गया जिसमें छठे मुगल आक्रांता औरंगजेब के नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
औरंगजेब ने प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर को पूरी तरह से तोड़ कर उस मंदिर की बची हुई दीवारों पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवा दिया। औरंगजेब द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पास में स्थित है। वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 1780 में इंदौर की मराठा शासक रानी अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा करवाया गया था और महाराजा रणजीत सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए लगभग 1000 किलो सोना दिया जिससे मंदिर के स्वर्ण शिखर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर का शिखर सोने का होने की वजह से काशी विश्वनाथ मंदिर को स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। वर्तमान में 13 दिसंबर 2021 को हमारे देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उदघाटन किया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण का कार्य 2019 मे शुरू किया गया था। और इस कॉरिडोर के निर्माण का मूल कारण काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा नदी तक जाने वाले रास्ते को सुगम बनाना था। ताकि गंगा नदी से जल लाकर विश्वनाथ भगवान का जलाभिषेक किया जा सके।
ऐसा माना जाता है कि विश्वनाथ भगवान का जलाभिषेक गंगा नदी के पवित्र जल से किया जाता था, जो कि वाराणसी बहुत ज्यादा निर्माण होने की कई वर्षों से बंद हो चुका था। अब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण होने के बाद विश्वनाथ भगवान शिवलिंग का गंगा नदी से जलाभिषेक वाली प्राचीन परंपरा वापस शुरू ही जाएगी।
इसके अलावा काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखकर भी इस कॉरिडोर निर्माण करवाया गया है। विश्वनाथ भगवान के दर्शन करने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु काशी विश्वनाथ मंदिर में आते है और मंदिर परिसर छोटा होने की वजह से श्रद्धालुओं को यहाँ पर कई प्रकार की असुविधाओं का सामान करना पड़ता था।
इसी बात को ध्यान में रखकर काशी विश्वनाथ मंदिर के परिसर को 50000 वर्ग मीटर तक बड़ा कर दिया गया है। इस परिसर को बड़ा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर लगभग 1400 परिवारों के घरों और व्यवसायों की स्थानांतरित किया और उनको उचित मुआवजा भी दिया।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण करते समय गंगेश्वर महादेव मंदिर, जौविनायक मंदिर, श्री कुंभ महादेव मंदिर और मनोकामेश्वर महादेव मंदिर सहित लगभग 40 से अधिक प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार भी किया गया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास – Kashi Vishwanath Temple History in Hindi
मूल काशी विश्वनाथ का निर्माण कब हुआ इसके बारे में कोई भी ज्ञात तथ्य प्राप्त नहीं हुए है लेकिन हिन्दू धर्म से जुड़े हुए कई प्राचीन और धार्मिक ग्रंथ जैसे स्कन्द पुराण, काशी पुराण और शिव पुराण में इस मन्दिर का विवरण विस्तार पूर्वक किया गया है।
इसके अलावा ज्ञात तथ्यों के अनुसार 1194 ईस्वी में मुगल आक्रांता कुतुबुद्दीन ऐबक ने मूल काशी विश्वनाथ को पूरी तरह से तबाह कर दिया जिसका पुनर्निर्माण 1230 ईस्वी में मुगल शासक इल्तुतमिश (1211-1266 ईस्वी) के शासनकाल के समय एक गुजराती व्यापारी के द्वारा करवाया जाता है। इसके बाद हुसैन शाह शर्की (1447-1458) या सिकंदर लोधी (1489-1517) ने भारत पर अपने आक्रमणों और शासन के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को दोबारा से तोड़ दिया।
कुछ वर्ष बीतने के बाद मुगल शासक अकबर के शासनकाल के समय जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह ने मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य करवाया। इसके बाद राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने वर्ष 1585 में मंदिर के मूल स्थान पर काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
वर्ष 1632 में मुगल आक्रमणकारी शाहजहां के आदेश पर उसकी सेना काशी विश्वनाथ मंदिर को दोबारा से तोड़ने के लिये निकलती है लेकिन हिन्दू राजाओं की सेनाओं से हुए भीषण युद्ध की वजह से मुगल सेना काशी विश्वनाथ मंदिर तो नहीं तोड़ पाती लेकिन काशी में 63 अन्य हिन्दू मंदिर तोड़ देती है। मुगल शासक जहाँगीर के शासनकाल के समय पर वीर सिंह देव ने मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य करवाया। कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है वीर सिंह देव ने नए काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।
इसके बाद मुगल आक्रान्ता औरंगजेब ने वर्ष 1669 ईस्वी में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ कर उसके अवशेषों पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया । मूल काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेष आज भी ज्ञानवापी मस्जिद की पिछली दीवारों पर स्पष्ट दिखाई देते है। काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण करने के लिए औरंगजेब 18 अप्रैल 1669 को मुगल सेना को एक लिखित आदेश देता है।
उसके बाद 2 सितंबर 1669 को मुगल सेना काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण कर उसको तोड़ने की सूचना को औरंगजेब तक पहुंचा देती है। औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण के लिए दिए गए आदेश की मूल प्रति आज भी कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में सुरक्षित रखी हुई है। औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर पर किये गए आक्रमण के बारे में उस समय के मुस्लिम लेखक साकी मुस्तइद खां ने अपनी पुस्तक “‘मासीदे आलमगिरी” ने विस्तार पूर्वक लिखा है।
कुछ समय बीतने के बाद भारत मे जब ब्रिटिश शासन शुरू हो जाता है तब उस समय 1742 मे मराठा शासक मल्हार राव होल्कर ने ज्ञानवापी मस्जिद को तोड़कर विश्वेश्वर मंदिर के पुनर्निर्माण की योजना बनाई लेकिन उस समय अवध के तत्कालीन नवाब के हस्तक्षेप की वजह से ज्ञानवापी मस्जिद तोड़कर मूल मंदिर का निर्माण नहीं हो पाता है।
लेकिन वर्ष 1780 में मल्हार राव होल्कर की बहू अहिल्याबाई होल्कर ज्ञानवापी मस्जिद के पास में जमीन खरीदकर नए काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाती है। 1828 में ग्वालियर के मराठा शासक दौलत राव सिंधिया की विधवा पत्नी बैजा बाई ज्ञानवापी परिसर में 40 से अधिक खंभों वाली एक छत का निर्माण करवाती है।
इसके अलावा 1833 से लेकर 1840 ईस्वी तक ज्ञानवापी कुएँ और इसके पास में स्थित घाट के पास कई अन्य हिन्दू मंदिरों का निर्माण भी करवाया जाता है। उस समय यहाँ किये गए मंदिरों के निर्माण और संचालन के लिए भारत के कई हिन्दू राजाओं के द्वारा योगदान किया गया था।
वर्ष 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी पत्नी महारानी दातार कौर के कहने पर काशी विश्वनाथ मन्दिर के लिए 1000 किलो से भी अधिक सोना दिया जिसे बाद में मंदिर के शिखर पर लगाया गया और इसके अलावा नागपुर के राजा रघुजी भोसलें तृतीय ने मंदिर के लिये चांदी दान की थी।
काशी विश्वनाथ की पौराणिक कथा – Mythology of Kashi Vishwanath in Hindi
01 – ऐसा माना जाता है कि विवाह से पहले भगवान शिव हिमालय के पहाड़ो में रह कर तपस्या करना बहुत पसंद करते थे। हिमालय की भीषण ठंड से भी उनको किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती थी। कहा जाता है कि जब ठंड बहुत तेज हो जाती थी तब वह अपने आप को गर्म रखने के लिए शमशान की राख अपने शरीर पर पोत लिया करते थे।
इसके अलावा वह जंगली जानवरों की खाल को भी कंबल की तरह उपयोग में लाया करते थे। लेकिन जब उनका विवाह माता पार्वती के साथ हो जाता है तो पहाड़ो से मैदानी इलाकों में रहने के लिये आते है और उनको यह स्थान पसंद आता है जिसे आज हम सब वाराणसी (काशी) के नाम से जानते है।
काशी में आकर भगवान शिव ने इस क्षेत्र को ऊर्जा के एक शक्तिशाली केंद्र के रूप में स्थापित किया । उसी ऊर्जा को आज भी वाराणसी में महसूस किया जा सकता है।
02 – काशी को रोशनी का शहर कहा जाता है और इससे जुड़ी हुई एक बड़ी ही रोचक कथा आपको यहाँ पर सुनने को मिल सकती है। एक बार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा और सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के बीच में एक विवाद उत्पन्न हो जाता है कि उन दोनों में श्रेष्ठ कौन है। धीरे-धीरे यह विवाद इन दोनों देवताओं के बीच मे बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकलता देख वहाँ उपस्थित अन्य देवता भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु को यह सुझाव देते है की आप दोनों के विवाद का हल भगवान शिव के पास है।
अन्य देवताओं की बात मान कर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु, भगवान शिव के पास पहुँच कर उनके विवाद को समाप्त करने का अनुरोध करते है। दोनों देवताओं के विवाद को खत्म करने के लिये भगवान शिव एक विशाल प्रकाश स्तंभ का रूप धारण कर लेते है। भगवान शिव जिस प्रकाश स्तंभ का रूप धारण करते है उसकी रोशनी धरती को चीरते हुए पाताल लोक तक चली जाती है और रोशनी का दूसरा हिस्सा अनंत ब्रम्हांड तक पहुँच जाता है।
भगवान शिव का ऐसा रूप देखकर भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा बड़े ही आश्चर्यचकित होते है। इसके बाद भगवान शिव के दिये गए निर्देश के अनुसार भगवान ब्रह्मा प्रकाश स्तंभ की ऊंचाई का पता करने के लिए अपने हंस पर सवार होकर ब्रम्हांड की तरफ चले जाते है। और भगवान विष्णु एक सुकर का रूप धारण पाताल लोक में इस प्रकाश स्तंभ के सिरे को खोजने के लिए खुदाई शुरू कर देते है।
दोनों ही देवता कई युगों तक उस प्रकाश स्तंभ के सिरे को खोजने का प्रयास करते रहते है। अंत मे भगवान विष्णु अपनी हार स्वीकार करके भगवान शिव के पास लौटते है और उनके आगे समर्पण कर देते है। लेकिन इधर भगवान ब्रम्हा अपनी हार किसी भी तरह से स्वीकार नहीं करना चाहते थे इसलिए वह भगवान शिव यह झूठ बोलते है कि उन्होंने प्रकाश स्तंभ का ऊपरी सिरा खोज लिया है और अपने दावे को सही ठहराने के लिए वह केतकी फूल से झूठी गवाही भी दिलवा देते है।
भगवान शिव को भगवान ब्रह्मा के झूठ का पता था इसलिए वह नाराज होकर भगवान ब्रह्मा को यह श्राप देते है ना तो भगवान ब्रह्मा की कभी कोई पूजा करेगा और ना ही कभी उनके लिए मंदिर का निर्माण करवाया जाएगा। यही वजह है कि आज भी भगवान ब्रह्मा के बहुत कम मंदिर हमें देखने की मिलते है।
ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर जिस स्थान पर भगवान शिव ने अपने आपको प्रकाश स्तंभ के रूप में स्थापित किया था आज उस स्थान को हम सभी काशी के नाम से जानते हैं। और यही कारण है कि काशी को रोशनी का शहर भी कहा जाता है।
03 – एक बार भगवान शिव को देवताओं के निवेदन करने पर काशी छोड़ना पड़ा था अब इसकी वजह क्या थी। इस घटना से जुड़ी हुई एक बड़ी ही रोचक पौराणिक कथा आपको इस प्राचीन शहर में सुननें मिल सकती है। एक समय की बात है जब भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी में रहा करते थे।
उस समय भगवान शिव अधिकांश समय गहन तपस्या में लीन रहा करते थे इसलिए देवताओं यह चिंता सताने लगी कि कहीं काशी की ऊर्जा नष्ट ना हो जाये। इसलिये उन्होंने देवोदास नाम के राजा से काशी का राजा बनने की प्रार्थना की। देवोदास उस समय एक बहुत प्रभावशाली राजा हुआ करते थे, इसलिए उन्होंने देवताओं से कहा में काशी का राजा तभी बन सकता हूँ जब भगवान शिव यह नगर छोड़ कर यहाँ से चले जायें।
राजा देवोदास को यह पता था जब तक भगवान शिव काशी में निवास करेंगे तब तक सभी लोग भगवान शिव के पास ही जाएंगे। इसके अलावा उनको यह भी पता था कि जब तक भगवान शिव काशी में रहेंगे उनको वहाँ पर कोई भी राजा के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। इस प्रकार राजा देवोदास के कहने पर सभी देवता भगवान शिव से निवेदन करते है कि वह काशी छोड़कर कहीं और चले जाएं।
देवताओं के निवेदन करने पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी छोड़ मदांर पर्वत पर निवास करने के लिए चले जाते है। लेकिन मंदार पर्वत पर जाने के बाद भी भगवान शिव का वहाँ पर मन नहीं लगा क्योंकि वो काशी वापस आना चाहते थे। लेकिन जब तक राजा देवोदास काशी में रहते वो वापस काशी नहीं जा सकते थे।
इसलिए राजा देवोदास को काशी से निकालने के भगवान शिव 64 योगिनियों को वहाँ पर भेजते है ताकि वह राजा देवोदास को पथभ्रष्ट कर सके। राजा देवोदास और काशी की प्रजा को भ्रष्ट करने के लिये 64 योगिनियां चारों तरफ फैल जाती है। लेकिन काशी उन सब को इतना ज्यादा पसंद आता है कि वह सभी अपना काम भूल कर यहीं रह जाती है और वापस लौट कर नहीं जाती।
इसके बाद भगवान शिव सूर्य को यहाँ भेजते है। और सूर्य को भी यह जगह इतनी पसंद आती है कि वो भी वापस लौट कर नहीं जाते। इसी वजह से आज भी काशी में कई सूर्य मंदिर बने हुए है जिनमें भी आदित्य मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। ऐसा ही कुछ ब्रह्मा के साथ भी होता है और वह हमेशा के लिए काशी में ही रुक जाते है।
अब अंत मे भगवान शिव अपने सबसे विश्वसनीय गणों को काशी भेजते है ताकि वह सब मिल कर किसी प्रकार राजा देवोदास को काशी से बाहर निकाल सके। लेकिन जब वह सभी काशी पहुँचते तब उन सबको भी काशी अत्यंत प्रिय लगती है। इसलिए भगवान शिव के गण यह सोचते है कि जब भगवान शिव को मंदार पर्वत से वापस काशी ही आना है तो वो लोग वापस लौटकर क्या करेंगे।
इस प्रकार भगवान शिव के गण काशी के द्वारपाल बन जाते है और भगवान शिव का इंतज़ार करने लगते है। इस प्रकार भगवान शिव के द्वारा राजा देवोदास को पथभ्रष्ट करने और काशी छोड़ने के लिए कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए लेकिन उन्हें किसी प्रकार की सफलता प्राप्त नहीं होती है क्योंकि राजा देवोदास स्वयं एक बहुत बड़ी पुण्यात्मा होते है।
अंत के भगवान शिव के द्वारा राजा देवोदास को मुक्ति का प्रस्ताव दिया जाता है जिसे राजा देवोदास स्वीकार कर लेते है। और जब राजा देवोदास मुक्ति का प्रस्ताव स्वीकार करके काशी छोड़ देते है तो भगवान शिव वापस लौट कर काशी आ जाते है। इसी वजह से काशी में अविमुक्तेश्वर नाम का मंदिर बना हुआ है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव किसी भी परिस्थिति में काशी छोड़कर नहीं जाएंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर की वास्तुकला – Kashi Vishwanath Temple Architecture in Hindi
काशी विश्वनाथ मंदिर के गृभगृह में स्थापित भगवान शिव का शिवलिंग चांदी की वेदी पर स्थापित किया गया है। मुख्य मंदिर कई अन्य छोटे बड़े मंदिरों से घिरा हुआ है जिनमें अविमुक्तेश्वर मंदिर, गणेश मंदिर, विष्णु मंदिर, शनि मंदिर, काल भैरव मन्दिर, कार्तिकेय मंदिर तथा भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित छोटे-छोटे मंदिर बने हुए है।
मुख्य मंदिर की उत्तर दिशा में एक छोटा कुंआ भी बना हुआ है जिसे ज्ञानवापी कुंआ कहा जाता है। कुएं से जुड़े हुए इतिहास के अनुसार जब मुगल आक्रमणकारियों ने मंदिर पर हमला किया था तो मुगलों से भगवान शिव के शिवलिंग को बचाने के लिए मंदिर के पुजारी शिवलिंग सहित इस कुएं में छलाँग लगा देते है। मुख्य मन्दिर की सरंचना तीन भागों में बंटी हुई है।
जिनमें पहले गुंबद को छोड़कर बाकी के दोनों गुंबद सोने के बने हुए है। तीसरे गुंबद के ऊपर एक ध्वज और त्रिशूल स्थापित किया गया है और इसकी ऊंचाई लगभग 15.5 मीटर है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के त्योंहार – Kashi Vishwanath Temple Festival in Hindi
महाशिवरात्रि और बसंत पंचमी जैसे बड़े त्योंहार के अलावा रंगभरी एकादशी एक ऐसा त्योंहार है जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। फाल्गुन शुक्ल एकादशी जो की लगभग हर वर्ष मार्च महीने में आती है के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में रंगभरी एकादशी त्योंहार के रूप में मनाया जाता है।
इस त्योंहार के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर से भगवान शिव की गौना बारात निकलती है जिसमें भगवान शिव के श्रद्धालु बाराती के तौर पर शामिल होते है। भगवान शिव की इस गौना बारात में श्रद्धालु डमरू, ढोल, शंख और नगाड़ों को बजाते है और साथ-साथ में अबीर-गुलाल से होली खेलते हुए माता पार्वती के घर पहुँचते है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में रंगभरी एकादशी का त्योंहार लगभग 350 साल से मनाया जाता है और इसमें भगवान शिव की गौना बारात काशी विश्वनाथ मंदिर से माता पार्वती के मायके जाती है। वर्तमान में मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के टेढ़ीनीम स्थित निवास को माता पार्वती का मायका माना जाता है। काशी के स्थानीय निवासियों के अलावा रंगभरी एकादशी के इस त्योंहार में देश-विदेश से हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु वाराणसी आते है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश शुल्क – Kashi Vishwanath Mandir Entry Fee in Hindi
काशी विश्वनाथ मंदिर में किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है। लेकिन अगर आप काशी विश्वनाथ मंदिर में होने वाली आरती को आसानी से देखना चाहते है या फिर दर्शन आराम से करना चाहते है तो आपको मंदिर प्रशासन के द्वारा निर्धारित शुल्क देना होगा।
Darshan | Ticket Price |
Mangla Aarti | 350/- INR |
Mid Day Bhog Aarti | 180/- INR |
Sapt Rishi Aarti | 180/- INR |
Shringar / Bhog Aarti | 180/- INR |
Sugam Darshan | 300/- INR |
नोट:- 01 काशी विश्वनाथ मंदिर आरती और सुगम दर्शन के प्रवेश शुल्क में मंदिर प्रशासन के द्वारा कभी भी बदलाव किया जा सकता है।
02 आप काशी विश्वनाथ मंदिर की ऑफिसियल वेबसाइट ( https://shrikashivishwanath.org/ ) से अपने लिए सुगम दर्शन और आरती के लिए टिकट बुक करवा सकते है।
03 सुगम दर्शन और आरती के टिकट काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर – 03 ( नीलकंठ गेट ) और गेट नंबर – 04 ( सरस्वती फाटक ) पर चेक किये जाते है।
04 काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश से जुड़े हुए सभी प्रकार के अधिकार मंदिर प्रशासन के साथ सुरक्षित है।
05 काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश और आरती से जुड़े हुए सभी प्रकार के शुल्क काशी विश्वनाथ मंदिर की ऑफिसियल वेबसाइट पर चेक किये जा सकते है।
06 काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश और आरती से जुडी हुई सभी प्रकार के टिकट सिर्फ काशी विश्वनाथ मंदिर की ऑफिसियल वेबसाइट से ही बुक करवाएं।
काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश का समय – Kashi Vishwanth Mandir Timings in Hindi
आप दिन में भी समय काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश कर सकते है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में आरती का समय – Kashi Vishwanth Mandir Aarti Timings in Hindi
Aarti | Timings |
Mangla Aarti | 03:00 AM To 04:00 AM |
General Darshan | 04:00 AM To 11:00 AM |
Bhog Aarti | 11:15 AM To 12:20 PM |
Sandhya Aarti | 07:00 PM To 08:15 PM |
Shrinagar Aarti | 09:00 PM To 10:15 PM |
Shayana Aarti | 10:30 PM To 11:00 PM |
नोट :- 01 काशी विश्वनाथ मंदिर में होने वाली आरती में मंदिर प्रशासन के द्वारा बदलाव संभव है।
02 काशी विश्वनाथ मंदिर में होने वाली सभी तरह आरती के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा निर्धारित शुल्क देकर आप आरती देख सकते है।
03 काशी विश्वनाथ मंदिर में होने वाली आरती के टिकट आप मंदिर के ऑफिसियल वेबसाइट पर देख सकते है।
04 काशी विश्वनाथ में होने वाली आरती के टिकट आप मंदिर की ऑफिसियल वेबसाइट पर बुक करवा सकते है।
05 काशी विश्वनाथ मंदिर में आरती टिकट से जुड़े हुए सभी प्रकार के अधिकार मंदिर प्रशासन के पास सुरक्षित है।
काशी विश्वनाथ मंदिर घूमने का सबसे अच्छा समय – Best time to Visit Kashi Vishwanath Temple in Hindi
काशी विश्वनाथ मंदिर वैसे तो पुरे साल श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है लेकिन अक्टूबर से लेकर मार्च का समय काशी विश्वनाथ मंदिर घूमने का सबसे अच्छा समय माना जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित होटल – Hotels Near Kashi Vishwanath Temple in Hindi
वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ठहरने के लिए बहुत सारी धर्मशाला, गेस्ट हाउस और होटल्स बने हुए है। लगभग सभी धर्मशाला, गेस्ट हाउस और होटल्स आप ऑनलाइन या फिर टेलीफोन के माध्यम से बुक करवा सकते है। इसके अलावा बहुत सारी ऑनलाइन होटल बुकिंग वाली वेबसाइट के माध्यम के द्वारा भी आप काशी विश्वनाथ मंदिर के पास में आप अपने लिए होटल या धर्मशाला में अपने लिए रूम बुक करवा सकते है।
काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे – How to reach Kashi Vishwanath Temple in Hindi
हवाई मार्ग से काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुँचे – How to reach Kashi Vishwanath Temple by Air in Hindi
काशी विश्वनाथ मंदिर के बाबतपुर का लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। बाबतपुर हवाई अड्डे के लिए आपको भारत प्रमुख हवाई अड्डों से कनेक्टिंग फ्लाइट नियमति तौर पर मिल जायेगी। बाबतपुर हवाई अड्डे से आप टैक्सी की सहायता से बड़ी आसानी से काशी विश्वनाथ मंदिर पहुँच सकते है। बाबतपुर हवाई अड्डे से काशी विश्वनाथ मंदिर की दुरी मात्र 26 किलोमीटर है।
रेल मार्ग से काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुँचे – How to reach Kashi Vishwanath Temple by Rail in Hindi
काशी विश्वनाथ मंदिर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वाराणसी का सिटी रेलवे स्टेशन है जिसकी काशी विश्वनाथ मंदिर से दुरी मात्र 02 किलोमीटर है। इसके अलावा आप मंडुआडीह रेलवे स्टेशन (दुरी 04 किलोमीटर) और मुग़ल सराय रेलवे स्टेशन (दुरी 17 किलोमीटर ) से भी बड़ी आसानी से काशी विश्वनाथ मंदिर बड़ी आसानी से पहुंच सकते है। इन सभी रेलवे स्टेशन से आप काशी विश्वनाथ मंदिर टैक्सी और कैब की सहायता से पहुंच सकते है।
सड़क मार्ग से काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुँचे – How to reach Kashi Vishwanath Temple by Road in Hindi
उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों से वाराणसी सड़क मार्ग द्वारा बड़ी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा आपको दिल्ली, लखनऊ, कानपूर और जयपुर जैसे शहरों से वाराणसी के लिए नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध मिल जायेगी। आप टैक्सी, कैब और अपने निजी वाहन के द्वारा भी काशी विश्वनाथ मंदिर बड़ी आसानी से पहुँच सकते है।
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )