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    Home»Language»Hindi»कल्पेश्वर मंदिर उत्तराखंड 2024 | Kalpeshwar Temple Travel Guide 2024 in Hindi
    Hindi

    कल्पेश्वर मंदिर उत्तराखंड 2024 | Kalpeshwar Temple Travel Guide 2024 in Hindi

    9 Mins Read

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    कल्पेश्वर – Kalpeshwar in Hindi

    उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के पंच केदार मंदिरों में कल्पेश्वर मंदिर पांचवें केदार के रूप में पूजनीय है। कल्पेश्वर मंदिर में  भगवान शिव की जटाओ की पूजा की जाती है इसलिए इस मंदिर को जटाधर और जटेश्वर के रूप में भी जाना जाता है। कल्पेश्वर मंदिर जोशीमठ से 28 किलोमीटर की दुरी पर स्थति उरगम घाटी में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है जिसका निर्माण महाभारत काल के समय पांडवों ने करवाया था।

    भगवान शिव के पंच केदार मंदिरों में पांचवें केदार कल्पेश्वर के अलावा प्रथम केदार के रूप में केदारनाथ, द्वितीय केदार के रूप में मध्यमहेश्वर, तृतीय केदार के रूप तुंगनाथ और चतुर्थ केदार के रूप में रुद्रनाथ को पूजा जाता है। पांचो केदार मंदिरों में इकलौता कल्पेश्वर ही एक ऐसा मंदिर जो की श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए पुरे साल खुला रहता है।

    बाकी के चारों केदार मंदिरों के दर्शन सर्दियों के मौसम में श्रद्धालुओं के लिए बंद रहते है। सभी केदार मंदिरों में कल्पेश्वर मंदिर की यात्रा ही सबसे आसान मानी जाती है।  वैसे तो कल्पेश्वर मंदिर उरगम घाटी में बनी हुई एक प्राकृतिक गुफा के अंदर बना हुआ है।  लेकिन श्रद्धालुओं को मंदिर तक पैदल पहुंचने के लिए मात्र कुछ ही मीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।

    पूर्व कुछ समय पहले तक कल्पेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए भी श्रद्धालुओं को हेलंग घाटी से होते हुए 12 किलोमीटर का ट्रेक करना पड़ता था। वर्तमान में कल्पेश्वर मंदिर के नजदीक सड़क बन चुकी है इस वजह से मंदिर की यात्रा बहुत आसान और सुविधा जनक हो गई है । जोशीमठ से आने वाले यात्रियों को कल्पेश्वर की यात्रा के दौरान कुछ किलोमीटर कच्ची सड़क बनी हुई है।

    मानसून के मौसम जोशीमठ से कल्पेश्वर की यात्रा के समय यह सड़क मार्ग थोड़ा फिसलन भरा और जोखिम भरा रास्ता हो जाता है। इसलिए मानसून के मौसम में कल्पेश्वर की यात्रा के समय जोशीमठ से कल्पेश्वर तक बने हुए सड़क मार्ग पर थोड़ी अतरिक्त सावधानी जरूर रखें।

    कल्पेश्वर मंदिर का इतिहास – History of Kalpeshwar Temple in Hindi


    Kalpehswar
    Kalpeshwar Temple | Click on image for Credits

    कल्पेश्वर मंदिर के निर्माण का इतिहास बाकी के सभी पंच केदार मंदिरों से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार पंच केदार मंदिरों का निर्माण पांडवों के द्वारा किया गया था। पंच केदार मंदिरों के निर्माण से जुडी हुई पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों पर भ्रातृहत्या का बहुत बड़ा पाप चढ़ गया था।

    पांडव भ्रातृहत्या के पाप  मुक्ति पाने का उपाय जानने के लिए राजगुरु ऋषि व्यास के पास गए तो उन्होंने पांडवों को सुझाव दिया की अगर भगवान शिव सभी पांडव भाइयों को आशीर्वाद दे दे तो उन सभी को भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति मिल सकती है। राजगुरु ऋषि व्यास के द्वारा दिए के सुझाव के अनुसार पांडव भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए रवाना हो गए।

    जैसे ही भगवान शिव को यह पता चला की पांडव उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके पास आ रहे है तो वो काशी चले गए। लेकिन पांडव भगवान शिव को ढूंढते-ढूंढते काशी पहुँच गए, भगवान शिव पांडवों से बहुत अधिक नाराज थे इसलिए उन्होंने अपने आपको एक बैल में बदल लिया और हिमालय के केदार पर्वत शृंखला में चले गए।

    पांडव भगवान शिव को ढूंढते-ढूंढते केदार पर्वत भी पहुँच गए। अब पांडवों से दूर जाने के लिए भगवान शिव ने अपने शरीर  को पाँच अलग-अलग हिस्सों में बाँट लिया और हिमालय के पांच अलग-अलग स्थानों में प्रकट हुए। सबसे पहले भगवान शिव के पीठ केदारनाथ में प्रकट हुई इस वजह से केदारनाथ को प्रथम केदार के रूप में पूजा जाने लगा।

    उसके बाद भगवान शिव के शरीर का दूसरा भाग  पेट (नाभि) के रूप में  मध्यमहेश्वर में प्रकट हुआ इसलिए मध्यमहेश्वर को द्वितीय के केदार के रूप में पूजा जाने लगा। इसी प्रकार भगवान शिव के शरीर का तीसरा भाग उनकी भुजाएं तुंगनाथ में प्रकट हुई और तुंगनाथ को तृतीय केदार के रूप में पूजा जाने लगा। रुद्रनाथ में भगवान शिव के शरीर का चौथा भाग उंनका मुँह प्रकट हुआ।

    इस वजह से रुद्रनाथ को चतुर्थ केदार के रूप में पूजा जाने लगा। सबसे अंत में भगवान शिव के शरीर का पांचवां भाग उनकी जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई इसी वजह से कल्पेश्वर को पांचवें केदार के रूप में पूजा जाने लगा। पांडवो ने इन सभी स्थानों की यात्रा की और भगवान शिव की पूजा अर्चना करके इन स्थानों पर पंच केदार मंदिर स्थापित किये।

    पांडवों की निष्ठा और श्रद्धा से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने अंत में पांडवों को भ्रातृहत्या के पाप से मुक्त होने का आशीर्वाद प्रदान किया। कल्पेश्वर मंदिर का वर्णन हिन्दू धर्म के कई प्राचीन धर्मग्रंथों में भी किया गया है। शिव पुराण और केदार खंड के अनुसार दुर्वासा ऋषि ने इस स्थान पर कल्प वृक्ष के निचे बैठ कर तपस्या की थी इसी वजह से इस स्थान को ग्रंथो में कल्पेश्वर कहा गया है।

    एक और पौराणिक कथा के अनुसार देवता जब असुरों के अत्याचारों से परेशान हो गए थे। तो  इस स्थान पर सभी देवताओं ने नारायणस्तुति की और भगवान शिव से अभय का आशीर्वाद प्राप्त किया था। ऐसा भी माना जाता है की ऋषि अर्घ्य ने इस स्थान पर तपस्या करके के स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी को बनाया था।

    कल्पेश्वर मंदिर का वास्तु – Architecture of Kalpeshwar Temple in Hindi

    कल्पेश्वर मंदिर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है और यह मंदिर भगवान शिव के पंच केदार मंदिरों में से एक है।  हिमालय की उरगम घाटी में स्थित कल्पेश्वर मंदिर एक प्राचीन गुफा में बना हुआ है जहाँ पर भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। इसी वजह से कल्पेश्वर मंदिर को जटाधर और जटेश्वर भी कहा जाता है।

    कल्पेश्वर मंदिर की भौगोलिक स्थित – Geography of Kalpeshwar Temple in Hindi

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    Kalpganga River Near Kalpeshwar | Ref img

    हिमालय की उरगम घाटी में स्थित कल्पेश्वर मंदिर उरगम गांव से मात्र  1.5 से 02 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। कल्पेश्वर मंदिर की समुद्रतल से ऊंचाई 2200 मीटर (7218 फ़ीट) है। कल्पेश्वर मंदिर के पास में कल्पगंगा नदी बहती है जो की आगे जा कर हेलंग के पास में बहने वाली अलकनंदा नदी में समाहित हो जाती है।

    उरगम घाटी हिमालय का एक घना वन क्षेत्र है लेकिन आपको यहाँ पर सेब के बाग़ और आलू के खेत भी देखने को मिल सकते है। कल्पेश्वर मंदिर के पास में एक पवित्र कुंड बना हुआ है जिसे अनादिनाथ  कल्पेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।  मंदिर के पास में एक और कुंड भी है जिसे कलेवर कुंड के नाम से जाना जाता है, इस कुंड का जल बेहद पवित्र माना जाता है।

    मान्यता है की इस कुंड का पवित्र जल पिने पर कई प्रकार की बिमारियों का इलाज जो जाता है। इसके अलावा कल्पेश्वर के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु और साधु इस कुंड के जल से भगवान शिव को अर्घ्य देते है। कल्पेश्वर मंदिर एक प्राचीन गुफा के अंदर स्थति है। कल्पगंगा नदी पर बने हुए पुल को पार करके बड़ी आसानी से कल्पेश्वर मंदिर पंहुचा जा सकता है।

    कल्पेश्वर मंदिर में दर्शन का समय – Kalpeshwar Temple Timings in Hindi

    पंच केदार मंदिरों में कल्पेश्वर मंदिर ही इकलौता मंदिर है जिसके दर्शन पुरे साल में कभी भी किये जा सकते है। इसके अलावा पंच केदार मंदिरों में कल्पेश्वर मंदिर की यात्रा ही सबसे आसान मानी जाती है।

    उरगम घाटी में स्थित कल्पेश्वर मंदिर के लिए आप को लगभग 02 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है अगर आप अपने निजी वाहन से कल्पेश्वर दर्शन के लिए आते है तो आप मंदिर के नजदीक तक अपनी गाड़ी लेकर जा सकते है। कल्पेश्वर मंदिर के पुजारी आदि गुरु शंकराचार्य के शिष्य दसनामी और गौसाई परिवार के सदस्य कल्पेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी है। आप दिन के किसी भी समय कल्पेश्वर के दर्शन करने के लिए जा सकते है।

    कल्पेश्वर मंदिर में आरती का समय – Kalpeshwar Temple Aarti Timings in Hindi

    कल्पेश्वर मंदिर में सुबह की आरती सुबह 06:00 बजे की जाती है और रात की आरती  रात को 07:00 की जाती है।

    कल्पेश्वर कैसे पहुंचे – How To Reach Kalpeshwar Temple in Hindi

    lord_shiva
    Lord Shiva

    हवाई मार्ग कल्पेश्वर कैसे पहुंचे – How To Reach Kalpeshwar Temple By Air in Hindi

    कल्पेश्वर के सबसे नजदीक  हवाई  अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट  हवाई  अड्डा है। देहरादून से कल्पेश्वर की दुरी मात्र 268 किलोमीटर है। देहरादून से आपको जोशीमठ के लिए नियमित रूप से बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध मिल जाएगी।

    जोशीमठ से आप टैक्सी की सहायता से कल्पेश्वर बहुत आराम से पहुंच सकते है। देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देश के कई प्रमुख हवाई अड्डों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

    रेल मार्ग कल्पेश्वर कैसे पहुंचे – How To Reach Kalpeshwar Temple By Train in Hindi

    कल्पेश्वर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है।  ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से कल्पेश्वर की दूर मात्र 251 किलोमीटर है। ऋषिकेश से आपको जोशीमठ के नियमित रूप से बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध मिल जायेगी।

    इसके अलावा आप कैब की सहायता से भी ऋषिकेश से कल्पेश्वर बड़ी आसानी से पहुँच सकते है।

    सड़क मार्ग कल्पेश्वर कैसे पहुंचे – How To Reach Kalpeshwar Temple By Raod in Hindi

    अभी कुछ समय पहले कल्पेश्वर सड़क मार्ग द्वारा उत्तराखंड के कई प्रमुख शहरों से जुड़ गया है। बाकी अगर आप  दिल्ली या देश के किसी अन्य शहर से कल्पेश्वर आ रहे है तो आप को सबसे पहले उत्तराखडं के हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून तक पहुंचना होगा। उत्तराखंड के इन तीनो शहरों से जोशीमठ के लिए नियमित बस सेवा और टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है।

    अगर आप अपने निजी वाहन से कल्पेश्वर पहुंचना तो आप जोशीमठ के रास्ते से कल्पेश्वर पहुँच सकते है।

    Haridwar to Joshimath Distance – 275 Km

    Rishikesh to Joshimath Distance – 254 Km

    Dehradun ti Joshimath Distance –  290 Km

    (अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए।  में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )

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