केदारनाथ मंदिर | केदारनाथ यात्रा 2024 | Kedarnath Yatra 2024 in Hindi | Kedarnath Temple in Hindi | Kedarnath Mandir | Kedarnath Tourism in Hindi | Kedarnath Travel Guide in Hindi | History | Timings
केदारनाथ -Kedarnath in Hindi
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के पंचकेदार मंदिरों (केदारनाथ, मध्यमहेशश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर) में प्रथम केदार के रूप में पूजा जाता है, इसके भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक भी है।
केदारनाथ उत्तराखंड में की जाने वाली चारधाम यात्रा का भी हिस्सा है। छोटा चारधाम यात्रा में केदारनाथ के अलावा श्रद्धालु गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ की भी यात्रा करते है। समुद्रतल से अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित होने की वजह से केदारनाथ मंदिर के दर्शन सर्दियों के मौसम में बंद रहते है क्योंकि सर्दियों के मौसम में यहाँ पर कई फ़ीट बर्फ़ जमा हो जाती है जिस वजह से मंदिर के पास पैदल पहुँचना लगभग असंभव माना जाता है।
विशाल पत्थरों से बना हुए केदारनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में बना हुआ है जो कि एक बेहद प्राचीन वास्तुशैली मानी जाती है।मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग बेहद प्राचीन है। केदारनाथ मंदिर का इतिहास महाभारत के समय से जुड़ा हुआ है, कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण पांडवों के वंशज जनमेजय ने करवाया था। उसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने भी इस मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य सम्पन्न करवाया।
केदारनाथ का इतिहास – History of Kedarnath in Hindi
धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ मंदिर के निर्माण का इतिहास महाभारत काल के समय से माना जाता है। इस बात की पुष्टि हिन्दू धर्म के अनेक प्राचीन ग्रंथों में भी की गई है। वैज्ञानिक अभी तक केदारनाथ मंदिर के निर्माण वास्तविक समय का पता नहीं लगा पाए है। लेकिन 1000 वर्ष से भी ज्यादा समय से इस मंदिर की श्रद्धालुओं द्वारा तीर्थयात्रा की जा रही है इस बात के स्पष्ट साक्ष्य मिले है।
राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तकों में यह माना है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण 12वीं से 13वीं शताब्दी के आसपास किया गया है। मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर के संग्रहालय में रखी गई एक प्राचीन पुस्तक राजा भोज स्तुति के अनुसार मंदिर का निर्माण 1076 से 1099 ईसवी के आसपास किया गया था।
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि 8वीं शताब्दी के आसपास आदि गुरु शंकराचार्य ने मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य करवाया था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने द्वापरयुग में बने हुए मंदिर के समीप एक दूसरे मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर की सीढ़ियों पर पाली और ब्राम्ही लिपि में लेख भी लिखे हुए पाए गए है जिनका अभी तक स्पष्ट रूप से अनुवाद नहीं हो पाया है।
इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य से पहले शैव सम्प्रदाय का पालन करने वाले लोग केदारनाथ की यात्रा किया करते थे। कुल मिलाकर यह तो स्पष्ट हो जाता है कि केदारनाथ मंदिर 1000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है लेकिन इसके निर्माण के विषय मे आज भी इतिहासकारों में मतभेद बने हुए है।
केदारनाथ का वास्तुशिल्प – Architecture of Kedarnath in Hindi
कत्यूरी वास्तुशैली से निर्मित प्राचीन केदारनाथ मंदिर 06 फ़ीट ऊँचे एक चौकोर चबूतरे पर बना हुआ था जिसे 2013 में आई प्राकृतिक आपदा के बाद बदल दिया गया है। मंदिर के निर्माण में विशाल पत्थरों का उपयोग किया गया है लेकिन मंदिर के शिखर निर्माण में लकड़ी का उपयोग किया गया है। मंदिर के शिखर पर सोने के बने हुए कलश को भी स्थापित किया गया है।
मंदिर प्रांगण तीन भागों में बंटा हुआ है जिन्हें क्रमशः गृभगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप कहा जाता है। गृभगृह में भगवान शिव का प्राचीन शिवलिंग स्थापित किया हुआ है जिसका आकार चार हाथ लंबा और डेढ़ हाथ चौड़ा है। गृभगृह में पांचों पांडवों की द्रौपदी के साथ मूर्तियां भी स्थापित की गई है।
दर्शन मंडप में खड़े होकर श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन कर सकते है और पूजा भी कर सकते है। सभामंडप में खड़े होकर श्रद्धालु भगवान शिव की सामूहिक आरती में भाग ले सकते है। मंदिर के बाहर बने हुए प्रांगण में भगवान शिव के वाहन नंदी की विशाल प्रतिमा भी स्थापित की गई है। मंदिर के पिछले भाग में कई कुंड भी बने हुए है जिनमे श्रद्धालु आचमन और तर्पण भी कर सकते है।
मंदिर का निर्माण कब हुआ इसके संबंध में आज भी संशय बना हुआ है, लेकिन अधिकांश इतिहासकार आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा किये गए जीर्णोद्धार कार्यों पर सहमत है।
केदारनाथ मंदिर की कथा – Legends of Kedarnath Temple in Hindi
केदारनाथ मंदिर एकलौता भगवान शिव का ऐसा मंदिर है जो कि पंचकेदार के रूप में भी पूजा जाता है, और ज्योतिर्लिंग के रूप में भी पूजा जाता है। लेकिन केदारनाथ मंदिर एक ज्योतिर्लिंग के रूप में अलग पौराणिक कथा सुनने को मिलती है और पंचकेदार के रूप में आपको एकदम अलग ही कथा सुनने को मिलती है।
हालांकि दोनों ही कथाओं के अनुसार यह तो स्पष्ट हो जाता है कि क्यों इस प्राचीन मंदिर को इतनी ज्यादा मान्यता मिलती है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा – Legend of Kedarnath Jyotirlinga in Hindi
केदारनाथ के एक ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित होने की कथा महाभारत काल से भी ज्यादा पुरानी मानी जाती है। केदारनाथ के एक ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित होने में जो पौराणिक कथा सबसे ज्यादा सुनाई जाती है उसके अनुसार आज से कई हजारों वर्ष पहले हिमालय में स्थित केदार पर्वत की चोटी पर भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले तो महातपस्वी नर और नारायण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सदियों तक तपस्या की।
ऐसा माना जाता है की दोनों महान तपस्वी कई हजार वर्षों तक बिना अन्न जल ग्रहण किया एक पैर पर खड़े हो कर भगवान शिव की तपस्या करते रहे। इतने लम्बे समय तक लगातार तपस्या करने की वजह से तीनों लोकों में यह दोनों ऋषि चर्चा का विषय बन गए। चारों और इन दोनों ऋषियों की तपस्या की प्रशंसा होने लगी ब्रम्हांड के रचियता परमपिता ब्रम्हा भी नर और नारायण द्वारा की जा रही कठिन तपस्या से बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए।
कई हजार वर्षों की कठिन तपस्या के बाद अंत में भगवान शिव ने प्रसन्न हो नर और नारायण को दर्शन दिए। नर और नारायण अपने द्वारा की गई हजारों वर्षों की तपस्या के बाद भगवान शिव के दर्शन होने से बेहद प्रसन्न हुए। भगवान शिव नर और नारायण की तपस्या से बहुत प्रसन्न थे उन्होंने दोनों ऋषियों से आशीर्वाद स्वरुप कुछ भी मांगने के लिए कहा।
भगवान शिव की यह बात सुनकर दोनों ऋषियों ने भगवान शिव से निवेदन किया की वह अपने परमभक्तों के कल्याण के लिए इस केदारखंड में अपने एक स्वरुप को हमेशा के लिए स्थापित करने की कृपा करें। नर और नारायण की यह बार सुनकर भगवान शिव और भी प्रसन्न हुए और उन्होंने दोनों ऋषियों को आशीर्वाद देते हुए अपने स्वरुप को ज्योतिर्लिंग के रूप में केदारखंड में स्थापित किया।
इस प्रकार केदारनाथ भगवान शिव के एक ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। हिमालय की केदार पर्वत श्रृंखला ने स्थित होने की वजह से केदारनाथ को केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है।
केदारनाथ की पंचकेदार कथा – Legend of Kedarnath in Hindi
केदारनाथ की पंचकेदार जुड़ी हुई पौराणिक कथा महाभारत काल की मानी जाती है। कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में पांडव विजयी तो हुए लेकिन साथ में ही उनके ऊपर युद्ध के दौरान भ्रातृहत्या का पाप भी चढ़ गया था। क्योंकि महाभारत के युद्ध को जितने के लिए पांडवों को अपनी भाइयों और रिश्तेदारों की हत्या करनी पड़ी थी, इस वजह से भगवान शिव भी पांडवों से बहुत नाराज हो गए थे ।
भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि व्यास ने पांडवों को सुझाव दिया की अगर भगवान शिव सभी भाइयों को आशीर्वाद दे दे तो वह सभी भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पा सकते है। ऋषि व्यास के सुझाव पर पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के प्रयास शुरू कर दिए लेकिन भगवान शिव पांडवो से इतने नाराज थे की वह भेस बदलकर काशी चले गए।
पाँचो पांडव भगवान शिव को ढूंढ़ते-ढूंढते काशी पहुंच गए। जैसे ही भगवान शिव को पता चला की पांडव उनको खोजते हुए काशी पहुँच गए तो वह वहाँ से अंतर्ध्यान हो कर हिमालय के केदारखंड में चुप गए। पांडव भी अपनी लगन के पक्के थे वो भगवान शिव को ढूंढते -ढूंढते केदार तक भी पहुँच गए। अब पांडवों से बचने के लिए भगवान शिव ने एक बैल का रूप धर लिया और मवेशियों में जा कर मिल गए।
लेकिन इस बात पांडव सावधान थे उन्होंने बैल के रूप में भगवान शिव को पहचान लिया। भगवान शिव को कहीं और जाने से रोकने के लिए भीम ने विशाल रूप धारण करके तो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिया अन्य मवेशी तो भीम के पैर के नीचे से निकल गए लेकिन एक बैल के रूप में होते हुए भी भगवान शिव भीम के पैर के नीचे से निकलने के लिए तैयार नहीं थे।
बैल के रूप में भगवान शिव को पहचान कर भीम ने भगवान शिव को पकड़ने का प्रयास किया। लेकिन भगवान शिव भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे, इस पर भीम ने बैल की कूबड़ (पीठ) पकड़ ली। भीम के ऐसा करने पर भगवान शिव का एक भाग यानी पीठ तो केदारनाथ में ही रह गई और उनके शरीर चार अन्य भाग, चार अलग-अलग जगहों पर प्रकट हुए।
(इस प्रकार भगवान शिव के शरीर के पांच अलग–अलग हिस्सों को पंच केदार के रूप में पूजा जाने लगा।) अंत में भगवान शिव पांडवों की भक्ति और दृढ़ इच्छा शक्ति से प्रसन्न हो कर सभी भाइयों को भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति का आशीर्वाद देते है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव जब एक बैल के रूप में अंतर्ध्यान हो कर जब दोबारा प्रकट हुए तो उनके धड़ के ऊपर का हिस्सा काठमांडू में प्रकट हुआ ( काठमांडू में स्थित भगवान शिव के मंदिर को पशुपति नाथ मंदिर कहा जाता है) ।
इसके अलावा मध्यमहेश्वर में उनका पेट (नाभि) प्रकट हुआ, तुंगनाथ में उनकी भुजाएं प्रकट हुई, रुद्रनाथ में उनका मुख प्रकट हुआ और सबसे अंत में कल्पेश्वर में उनकी जटाएं प्रकट हुई।
केदारनाथ की भौगलिक स्थित – Kedarnath geographical location in Hindi
केदारनाथ मंदिर चौराबारी ग्लेशियर से निकलने वाली मन्दाकिनी नदी के पास में बना हुआ है। हिमालय के केदार पर्वत की तलहटी में स्थित केदारनाथ मंदिर की समुद्रतल से ऊंचाई 3553 मीटर (11657 फ़ीट) है।
केदारनाथ यात्रा – Kedarnath Trek In Hindi
केदारनाथ भारत का प्रमुख धार्मिक स्थल है। क्योंकि यह मंदिर भगवान शिव के पंच केदार मंदिरों में प्रथम पूजनीय है और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से भी एक है, इसके अलावा उत्तराखंड की पवित्र छोटा चार धाम यात्रा का भी हिस्सा है।
इसके अलावा भगवान शिव के सभी मंदिरों में यह मंदिर सबसे ज्यादा देखा जाता है। मंदिर की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रति वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु केदारनाथ के दर्शन करने के लिए आते है। रुदप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ यात्रा के लिए आप गौरीकुंड तक गाड़ी से जा सकते है। गौरीकुंड के बाद आपको केदारनाथ तक पहुँचने के लिए 18 किलोमीटर की पैदल करनी पड़ती है।
केदारनाथ यात्रा के लिए में एक पूरी अलग पोस्ट लिखूंगा ताकि आपको केदारनाथ यात्रा के समय किसी भी प्रकार की असुविधा ना हो। केदारनाथ यात्रा की पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
2024 में केदारनाथ मंदिर खुलने का समय – Kedarnath Temple Opening Date 2024 in Hindi
केदारनाथ में सर्दियों के मौसम बहुत ज्यादा बर्फ़बारी होती है, इस वजह से केदारनाथ मंदिर कई फ़ीट बर्फ़ से ढ़क जाता है। अत्यधिक बर्फबारी की वजह से केदारनाथ मंदिर के कपाट 06 महीनों के लिए बंद रहते है। पूरे साल में नवंबर माह से लेकर अप्रैल महीने के समय केदारनाथ के दर्शन श्रद्धालुओं के लिए बंद रहते है।
साल के इन 06 महीनों में केदारनाथ की पालकी को उखीमठ के ओंकारेश्वर में ले जाया जाता है और मंदिर के कपाट खुलने तक केदारनाथ की पूजा अर्चना इसी मंदिर में कई जाती है।
केदारनाथ मंदिर के कपाट दोबारा खोलने की तारीख की घोषणा प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के बाद केदारनाथ के रावल के द्वारा की जाती है। वर्ष 2024 में केदारनाथ के कपाट खुलने की तारीख 10 मई तय की गई है। 10 मई सुबह 06:15 बजे से केदारनाथ मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिये खोल दिये जायेंगे।
2024 में केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने का समय – Kedarnath Temple Closing Date 2024 in Hindi
गर्मियों के मौसम के आते-आते केदारनाथ के दर्शन अगले 06 महीनों के लिये श्रद्धालुओं के लिये खुले रहते है। लेकिन हर वर्ष अक्टूबर और नवंबर महीने में केदारनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद कर दिये जाते है।
मंदिर के कपाट बंद करने की घोषणा प्रति वर्ष दीवाली के बाद आने वाली भाई दूज के दिन की जाती है।
केदारनाथ मंदिर में दर्शन का समय – Kedarnath Temple Timings in Hindi
श्रद्धालु सुबह 06:00 बजे से लेकर रात 08:30 बजे तक केदारनाथ मंदिर के दर्शन कर सकते है।
केदारनाथ मंदिर में आरती – Kedarnath Temple Aarti Timings in Hindi
मंदिर में स्थापित भगवान शिव का शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इस वजह से केदारनाथ में प्रातः आरती के समय शिवलिंग को प्राकृतिक रूप से स्नान करवाने के बाद घी का लेप किया जाता है।
उसके बाद धूप और दीपक जला कर शिवलिंग की आरती की जाती है। प्रातः काल मे की जाने वाली आरती के समय श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करके के आरती में भाग ले सकते है। लेकिन संध्या आरती के समय भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है इस वजह से भक्तगण सिर्फ दूर से ही भगवान के दर्शन कर सकते है।
केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के मैसूर शहर के जंगम ब्राह्मण होते है। सदियों से इसी परिवार के सदस्य केदारनाथ की पूजा अर्चना कर रहे है। केदारनाथ में पूरे दिन में कई बार भगवान शिव की पूजा की जाती है जिन्हें अलग-अलग नाम से बुलाया जाता है:-
01 महाभिषेक पूजा
02 अभिषेक
03 लघु रुद्राभिषेक
04 षोडशोपचार पूजन
05 अष्टोपचार पूजन
06 सम्पूर्ण आरती
07 पाण्डव पूजा
08 गणेश पूजा
09 श्री भैरव पूजा
10 पार्वती जी की पूजा
11 शिव सहस्त्रनाम
नोट :- 01 अगर आप केदारनाथ मंदिर में पूजा करवाना चाहते है तो मंदिर समिति द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करवाकर आप मंदिर में पूजा करवा सकते है। मंदिर में पूजा करवाने के शुल्क में समय–समय परिवर्तन किया जाता है।
02 अगर आप केदारनाथ दर्शन करने जा रहें है तो बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करें। बद्रीनाथ के दर्शन किये बिना केदारनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
केदारनाथ कैसे पहुँचे – How to reach Kedarnath in Hindi
केदारनाथ कैसे पहुँचे – How to reach Kedarnath in Hindi
केदारनाथ के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से केदारनाथ की दुरी मात्र 254 किलोमीटर (Dehradun to Kedarnath Distance) है।
भारत के प्रमुख शहरों से देहरादून के जॉली हवाई अड्डे के लिए आप को नियमित हवाई सेवा उपलब्ध मिल जाएगी। देहरादून से बस और टैक्सी सर्विस के द्वारा गौरीकुंड तक बड़ी आसानी से पहुँच सकते है। गौरीकुंड से आपको केदारनाथ के लिए पैदल यात्रा करनी होगी।
रेल मार्ग से केदारनाथ कैसे पहुँचे – How to reach Kedarnath by Train in Hindi
केदारनाथ के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश के अलावा हरिद्वार रेलवे स्टेशन भी केदारनाथ नजदीकी रेलवे स्टेशन माना जाता है। यह दोनों शहर भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशन से बहुत अच्छी तरह जुड़े हुए है।
ऋषिकेश से आप बस और टैक्सी की सहायता से गौरीकुंड तक पहुँच सकते है। ऋषिकेश से केदारनाथ की दुरी मात्रा 216 किलोमीटर (Rishikesh to Kedarnath Distance ) है। हरिद्वार से केदारनाथ की दुरी मात्र 236 किलोमीटर (Haridwar to Kedarnath Distance ) है।
सड़क मार्ग से केदारनाथ कैसे – How to reach Kedarnath by Road in Hindi
सड़क मार्ग से केदारनाथ पहुचँने के लिए आप हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून किसी भी शहर पहुँच सकते है। इन तीनो शहरों से केदारनाथ के लिए नियमित रूप से बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है।
यहाँ फिर आप केदारनाथ की लास्ट मोटरेबल रोड गौरीकुंड तक पहुँच सकते है। गौरीकुंड से आप केदारनाथ की पैदल यात्रा शुरू कर सकते है।
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )