पंच केदार यात्रा 2024 | Panch Kedar Yatra Travel Guide 2024 in Hindi | Panch Kedar Yatra in Hindi | Best Time To Visit Panch Kedar | Panch Kedar History in Hindi | Panch Kedar Temple In Hindi
पंच केदार – Panch Kedar in Hindi
पंच केदार मंदिर भगवान शिव के पाँच ऐसे मंदिर है जिनमे भगवान शिव के शरीर के पांच अलग-अलग अंगो की पूजा की जाती है। महाभारत के अनुसार इन सभी मंदिरो का निर्माण पांडवो ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए करवाया था। वैसे तो यह माना जाता है की यह सभी मंदिर 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुराने है। इतिहासकारों के अनुसार यह सभी मंदिर 1000 वर्ष पुराने है।
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित भगवान शिव के पाँच मंदिर केदारनाथ, मध्यमहेशश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर यह सभी मंदिर पंच केदार के नाम से प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म में पंच केदार मंदिर भगवान शिव के सबसे प्रमुख मंदिर माने जाते है और प्रति वर्ष हजारों-लाखों के संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के इन प्राचीन मंदिरों के दर्शन करते है।
भगवान शिव के इन पाँच मंदिरों की यात्रा ही पंच केदार यात्रा के नाम से प्रसिद्ध है। पंच केदार मंदिर पूरे साल में गर्मियों के मौसम में सिर्फ 06 महीनों के लिए ही श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिये खुले रहते है। सर्दी के मौसम में होने वाली अत्यधिक बर्फबारी की वजह से केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ और रुद्रनाथ मंदिर के कपाट नवंबर से लेकर अप्रैल महीने तक श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद कर दिये जाते है।
सर्दियों के मौसम में यहाँ पर बहुत ज्यादा बर्फ़बारी होती है जिसकी वजह से यह मंदिर कई फ़ीट बर्फ़ से ढ़क जाते है। इन सभी मंदिरों के आसपास कई फ़ीट बर्फ जमा हो जाती है जिसको वजह से सर्दियों के मौसम में इन चारों मंदिरों तक पहुंचना किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं जाता है। अत्यधिक बर्फबारी की वजह से सर्दियों के मौसम में इन चारों केदार मंदिरो की पूजा ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है।
अगर आपको सर्दियों के मौसम में इन चार केदार मंदिरों के दर्शन करना चाहते है तो रुद्रप्रयाग होते हुये उखीमठ पहुंचना होता है और फिर यहाँ पर आप ओंकारेश्वर मंदिर में केदार मंदिरों के दर्शन कर सकते है। पंच केदार मंदिरो में एकलौता कल्पेश्वर मंदिर ही एक ऐसा मंदिर जिसके दर्शन पुरे साल श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते है।
भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाने वाली पंच केदार यात्रा बेहद कठिन मानी जाती है। अगर आप शारीरिक रूप से मजबूत नहीं है और पांच केदार यात्रा करना चाहते है तो आपको पंच केदार यात्रा करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी । एक बार में पंच केदार यात्रा पूरी करने के आपके के लिए आप के पास कम से कम 15-20 दिन का अतिरिक्त समय होना चाहिए तभी आप सभी पंच केदार मंदिरों के दर्शन आराम से कर पायेंगे।
केदारनाथ – kedarnath in Hindi
उत्तराखंड के रुद्रप्रायग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर पंच केदार मंदिरों में प्रथम केदार के रूप में पूजा जाता है। इस प्राचीन शिव मंदिर में भगवान शिव की पीठ को पूजा की जाती है। केदारनाथ पंच केदार मंदिरों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूजनीय है। पंच केदार मंदिरो में सबसे ज्यादा संख्या में श्रद्धालु इसी मंदिर के दर्शन करने के लिए उत्तराखंड आते है।
पंच केदार मंदिर के अलावा केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड में की जाने वाली छोटा चारधाम यात्रा (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री ) में भी एक माना जाता है। इसके अलावा केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में भी एक माना जाता है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया ऐसे कोई भी प्रामाणिक उल्लेख कहीं पर भी देखने को नहीं मिले है।
लेकिन इस मंदिर का सीधा सम्बन्ध महाभारत से जोड़ा जाता है और ऐसा माना जाता है की पांडवों के वंशज जनमेजय ने केदारनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। केदारनाथ का उल्लेख हिन्दू धर्म से जुड़े कई प्राचीन ग्रंथो और पुराणों में देखने को मिलता है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग कई हजार वर्ष पुराना माना जाता है। कहते है की आदि शंकराचार्य ने 1000 वर्ष पहले केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था।
लेकिन इस बात के स्पष्ट संकेत मिले है की 10वीं शताब्दी के आसपास भी तीर्थ यात्री केदारनाथ के दर्शन करने के लिए जाते थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार शैव संप्रदाय के लोग आदि शंकराचार्य से पहले केदारनाथ की यात्रा किया करते थे। समुद्रतल से 3,583 मीटर (11,755 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ साल में सिर्फ 06 महीने अप्रैल से लेकर नवंबर तक ही श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुला रहता है।
सर्दियों के मौसम में केदारनाथ की पालकी को ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में लेकर जाया जाता है और फिर नवंबर से लेकर अप्रैल महीने तक केदारनाथ की पूजा इसी मंदिर में की जाती है। आप गौरीकुंड से लगभग 18 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद केदारनाथ मंदिर तक पहुँच सकते है। केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी मैसूर के जंगम ब्राम्हण है सदियों से इसी परिवार के सदस्य केदारनाथ मंदिर में पूजा कर रहे है।
केदारनाथ में सुबह के समय होने वाली आरती के समय शिवलिंग को प्राकृतिक रूप से स्नान कराने के बाद उस पर घी का लेप किया जाता है। सुबह की आरती के समय श्रद्धालु मंदिर में स्थापित शिवलिंग का श्रद्धालु नजदीक से दर्शन कर सकते है। संध्या आरती के समय शिवलिंग का विधिवत श्रृंगार किया जाता है इस समय श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन दूर से ही कर सकते है।
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मध्यमहेश्वर – Madhyamaheshwar in Hindi
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के गौंडार गाँव में स्थित मध्यमहेशश्वर मंदिर पंच केदार में द्वितीय केदार माना जाता है। समुद्रतल से 3497 मीटर (11473 फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित मध्यमहेशश्वर मंदिर में भगवान शिव पेट (नाभि) की पूजा की जाती है। अक्कलिधर / रांसी से शुरू होने वाले मध्यमहेशश्वर मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको लगभग 18 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है ।इस मंदिर के निर्माण के पीछे का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।
माना जाता है जब भगवान शिव पांडवों से छिपने के लिए पांच अलग- अलग भागों में बंट गए थे तब उनका पेट (नाभि) इस स्थान पर प्रकट हुआ था। उनके बाद भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करके के उनकी पूजा करनी शुर कर दी थी। मध्यमहेशश्वर मंदिर उत्तर भारतीय शैली के बना हुआ एक प्राचीन शिव मंदिर है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का नाभि के आकार में बना हुआ काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित किया गया है। मंदिर के पास दो छोटे मंदिर और भी बने हुए है जिसमे से एक मंदिर में शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। और दूसरे में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप की पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर की तरह इस यह मंदिर भी श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिए साल के सिर्फ 06 महीने ही खुला रहता है।
सर्दियों के मौसम मध्यमहेशश्वर की पूजा भी ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है। इस मंदिर के मुख्य पुजारी भी मैसूर के जंगम ब्राम्हण परिवार के सदस्य है जो कि पंच केदार मंदिरों की सदियों से सेवा कर रहे है। मध्यमहेशश्वर से 02 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा से प्राचीन शिव मंदिर भी बना हुआ है जिसे बुरा मध्यमहेशश्वर कहा जाता है।
बड़ी-बड़ी खाई और घाटियों को पार करके जब आप इस मंदिर तक पहुचंते है तो आपको यहाँ से केदारनाथ मैसिफ, नीलकंठ, चौखम्बा, त्रिशूल, पंचूली और केमेट जैसी पर्वतश्रेणीयों के अदभुत दृश्य दिखाई देते है। केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य का हिस्सा होने की वजह से आपको इस मंदिर के आसपास मोनाल, तीतर और कस्तूरी मृग जैसे लुप्तप्राय वन्यजीव भी पाए जाते है।
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तुंगनाथ – Tungnath in Hindi
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के चोपता गाँव से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तुंगनाथ मंदिर पंच केदार में तृतीय केदार माना जाता है। पंच केदार और भगवान शिव के अन्य किसी भी मंदिर की अपेक्षा में तुंगनाथ मंदिर दुनिया में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। इसके अलावा केदारनाथ के बाद भगवान शिव के सबसे ज्यादा श्रद्धालु तुंगनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए आते है।
हालांकि यह मंदिर भी सर्दियों के मौसम 06 महीनों के लिए श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिए बंद रहता है। लेकिन कुछ साहसी लोग सर्दियों के मौसम में भी बर्फ़ की कई फ़ीट परत को पार करके तुंगनाथ के दर्शन करने के लिए यहाँ आते है। तुंगनाथ मंदिर की समुद्रतल से ऊँचाई 3680 मीटर (12070 फ़ीट) है और इस मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा की जाती है।
सर्दियों के मौसम में अन्य केदार मंदिरों की तरह तुंगनाथ की पूजा भी उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है। तुंगनाथ मंदिर से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रशिला शिखर है जिसके बारे में कहा जाता है कि चंद्रमा ने अपने श्राप से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी।
जहाँ अन्य केदार मंदिरों के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राम्हण परिवार सदस्य है वहीँ तुंगनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी मंदिर के पास स्थित मक्कू गांव के ब्राह्मण परिवार के सदस्य है। तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध ट्रैकिंग स्पॉट भी है। इसी वजह से यहाँ पर भगवान शिव के भक्तों के अलावा आपको कई ट्रेकर्स भी दिखाई दे सकते है।
तुंगनाथ मंदिर के परिसर में भगवान शिव के वाहन नंदी की मूर्ती स्थापित की गई है। मंदिर के गृभगृह में स्थापित भगवान शिव का शिवलिंग काले पत्थर से बना हुआ जिसकी पूजा भगवान शिव की भुजाओं के रूप में की जाती है। मंदिर परिसर हिन्दू धर्म के अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की गई है जिनमें काल भैरव की अष्ठ धातु से बनी हुई मूर्ति और व्यास ऋषि की मूर्ति को प्रमुखता से दिखाया गया है। तुंगनाथ में अन्य केदार मंदिरों की चांदी से बनी प्रतिकृति भी है।
तुंगनाथ मंदिर की अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
रुद्रनाथ – Rudranath in Hindi
पंच केदार मंदिरों में रुद्रनाथ मंदिर को चतुर्थ केदार के रूप में पूजा जाता है। पंच केदार की सभी मंदिरों में रुद्रनाथ मंदिर की पैदल दूरी सबसे ज्यादा और सबसे कठिन मानी जाती है। रुद्रनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए आप जब उत्तराखंड के सागर गाँव से अपनी पैदल यात्रा शुरू करते है तो लगभग 24 किलोमीटर का ट्रेक करने के बाद रुद्रनाथ मंदिर तक पहुँचते है।
समुद्रतल से 3600 मीटर (11800 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर रोडोडेंड्रोन और अल्पाइन चरागाहों के घने जंगल के भीतर स्थित है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के मुख की “नीलकंठ महादेव” के रूप में पूजा की जाती है। सर्दियों के मौसम रुद्रनाथ मंदिर भी श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद रहता है।
रुद्रनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी गोपेश्वर के भट्ट और तिवारी ब्राम्हण परिवार के सदस्य है। रुद्रनाथ मंदिर में हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस वार्षिक मेले मुख्य रूप से स्थानीय निवासी शामिल होते है। रुद्रनाथ मंदिर के पास में कई पवित्र कुंड भी बने हुए है जिन्हे सूर्य-कुंड, चंद्र-कुंड, तारा-कुंड और मन-कुंड के नाम से जाना जाता है।
मंदिर से नंदा देवी, देवस्थान, हाथी परबत, त्रिशूल और नंदा घुन्ती जैसी हिमालय की प्रमुख पर्वत श्रंखलाओं के दृश्य दिखाई देते है। इस मंदिर के पास एक वैतरणी नदी भी बहती है जिसे रुद्रागंगा के नाम से भी जाना जाता है। नदी के अंदर रुद्रनाथ की ग्रे पत्थर से बनी हुई एक मूर्ति भी स्थापित की गई है। इस नदी में स्थानीय लोग मृत व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन और पिंडदान भी करते है।
स्थानीय लोगो मे ऐसा विश्वास है कि इस पवित्र नदी में अपने परिजन की अस्थियोँ का विसर्जन और पिंडदान करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह व्यक्ति जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। रुद्रनाथ मंदिर मुख्य रूप से एक प्राचीन गुफा में स्थित है जिसके सामने अब एक मंदिर का निर्माण कर दिया गया है।
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कल्पेश्वर – kalpeshwar in Hindi
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में उर्गम घाटी के स्थित कल्पेश्वर मंदिर भगवान शिव के पंच केदार मंदिर में पांचवा और आखिरी पंच केदार मंदिर है। समुद्रतल से मात्र 2200 मीटर (7219 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर पंच केदार मंदिरों में सबसे कम ऊँचाई पर स्थित मंदिर है। इसके अलावा यह पंच केदार मंदिरों में इकलौता ऐसा मंदिर है जो कि पूरे साल श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुला रहता है।
कल्पेश्वर मंदिर एक प्राचीन गुफा में बना हुआ है। इस मंदिर में भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है इस वजह से इस मंदिर को जटाधारी और जटेश्वर भी कहा जाता है। कुछ समय पहले कल्पेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए ऋषिकेश – बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित हेलंग गाँव से 12 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके पहुंचा जाता था।
वर्तमान में कल्पेश्वर के नजदीक स्थित देवग्राम तक पक्की सड़क बन गई है इसलिए अब यह पैदल दूरी घटकर मात्र 300 मीटर की ही रह गई है। इतनी कम दूरी की वजह से कल्पेश्वर मंदिर की यात्रा पंच केदार में सबसे आसान यात्रा हो गई है। कल्पेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी आदि शंकराचार्य के शिष्य दशनामी और गौसाईं है। हिमालय की उर्गम घाटी में स्थित कल्पेश्वर मंदिर घने जंगलों के बीच में स्थित है।
हेलंग से कल्पेश्वर मंदिर की पैदल यात्रा के दौरान आपको अलकनंदा और कल्पगंगा नदी का संगम दिखाई देता है। उर्गम घाटी में सेब के बगीचे और सीढ़ीदार खेत बने हुए है इसके अलावा घाटी में आलू की खेती भी बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है।
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(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )