तुंगनाथ मंदिर ट्रेक 2024 | Tungnath Trek Guide 2024 in Hindi | Tungnath in Hindi | Tungnath Trek in Hindi | Tungnath History | Timings | Entry Fees | Best Time For Tungnath Trek in Hindi
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास – Tungnath Temple History in Hindi
हिन्दू धर्म में भगवान शिव विनाश के भगवान माने जाते है। भारत और विश्व के कई अन्य देशों में भगवान शिव के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए है। भारत या दुनिया के किसी भी कोने में स्थित भगवान शिव के सभी प्राचीन मंदिरों की अलग-अलग धार्मिक महत्ता है। आज में भगवान शिव के जिस प्राचीन मंदिर के बारे में बताने जा रहा हूँ उस मंदिर को तुंगनाथ महादेव कहा जाता है साथ मे ही यह प्राचीन शिव मंदिर विश्व में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर है।
उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के पाँच प्राचीन मंदिर केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर महादेव भगवान शिव के इन सभी प्राचीन मन्दिरो को पंचकेदार के नाम से जाना जाता है। सभी पंच केदार मंदिरों में तुंगनाथ महादेव मंदिर को तीसरे नंबर पर रखा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इन सभी प्राचीन शिव मंदिरों का निर्माण पांडवों ने महाभारत के युद्ध के बाद करवाया था। महाभारत के बारे में बताने से पहले में आपको बताना चाहूँगा की तुंगनाथ मंदिर का इतिहास सिर्फ महाभारत काल से नहीं जुड़ा हुआ है बल्कि इस स्थान का सीधा संबंध भगवान राम और रावण से भी जुड़ा हुआ है।
कहा जाता है कि भगवान राम ने तुंगनाथ से थोड़ी ही दूरी पर स्थित चंद्रशिला नाम की जगह पर ध्यान लगाया था। और जिस समय भगवान इस स्थान पर निवास करते थे उस समय रावण ने भी इस स्थान पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। अब हम एक बार वापस महाभारत काल के समय मे आ जाते है। महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद ऋषि व्यास पांडवों से कहते है कि – “कुरुक्षेत्र के युद्ध के समय तुम पाँचों भाइयों ने अपने चचरे भाइयों और रिश्तेदारों की हत्या की इस इसलिए तुम सभी भ्रातृहत्या के दोषी हो और तुम्हारे द्वारा किये गए इस पाप को सिर्फ और सिर्फ भगवान शिव ही क्षमा कर सकते है”।
व्यास ऋषि की बात को मान कर पांचों पांडव भगवान शिव की खोज में निकल जाते है। लेकिन भगवान शिव पांडवों द्वारा कुरुक्षेत्र के युद्ध में किये गए अपराध की वजह से बहुत अत्यधिक नाराज होते है। इस वजह से भगवान शिव पांडवों से बचने के लिए एक बैल का रूप धारण कर लेते है और काशी में एक गुप्त जगह पर जाकर छुप जाते है। लेकिन पाण्डव भगवान शिव को ढूंढते हुए काशी पहुँच जाते है। उसके बाद भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हो जाते है।और बाद में पाँच अलग-अलग भागों प्रकट होते है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काशी से अंतर्ध्यान होने के बाद भगवान शिव के धड़का ऊपर वाला हिस्सा नेपाल की राजधानी काठमांडू में प्रकट होता है। वर्तमान में काठमांडू में स्थित भगवान शिव के मंदिर को पशुपतिनाथ कहा जाता है। इस मंदिर के अलावा भगवान शिव की पीठ केदारनाथ में, भुजाएँ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में और जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट होती है। इसी वजह से उत्तराखंड में स्थित इन सभी मंदिरों को पंचकेदार कहा जाता है।
पांचों पांडव इन सभी स्थानों पर जहां भगवान शिव अलग-अलग रूप में प्रकट होते है वहाँ भगवान शिव के मंदिर का निर्माण करवाते है। ताकि वह सभी इन स्थानों पर भगवान शिव की तपस्या कर सके और उन्हें प्रसन्न कर सके। इसके बाद पांडवों द्वारा की गई तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव पाँचों भाइयों को आशीर्वाद देते है और भ्रातृहत्या के अपराध से मुक्त करते है।
तुंगनाथ मंदिर का वास्तु – Architecture of Tungnath Temple in Hindi
भगवान शिव को समर्पित तुंगनाथ मंदिर 1000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना माना जाता है। मुख्य मंदिर की वास्तुकला केदारनाथ मंदिर के वास्तु के समान ही है। उत्तर भारतीय शैली से निर्मित तुंगनाथ मंदिर के आसपास कई छोटे-छोटे मंदिर भी बने हुए है। मंदिर में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले भगवान शिव के वाहन नदीं की मूर्ति बनी हुई है।
मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान शिव का शिवलिंग काले पत्थर से बना हुआ है। इसके अलावा मंदिर के प्रवेश द्वार की दाईं तरफ भगवान गणेश की छवि उक्केरी हुई है। मंदिर परिसर में व्यास ऋषि, काल भैरव और अष्ठ धातु से बनी हुई मूर्तियाँ भी स्थापित की गई है। इसके अलावा मंदिर में चारों केदार मंदिरों की चांदी से बनी हुई प्रतिकृति भी है और पांडवों के चित्र भी उकेरे हुए है। मंदिर के शिखर को बड़े-बड़े पत्थरों के स्लैब से सजाया हुआ है।
तुंगनाथ मंदिर में पूजा – Worship at Tungnath Temple in Hindi
जहाँ अन्य केदार मंदिरों के पुजारी दक्षिण भारत से संबंध रखते है। वहीं इसके विपरीत तुंगनाथ मंदिर के पुजारी स्थानीय ब्राह्मण परिवार से आते है। मंदिर के पुजारी पास में ही स्थित मक्कू गांव के स्थानीय निवासी है। सर्दियों के मौसम में अत्यधिक बर्फबारी की वजह से तुंगनाथ मंदिर के कपाट छः महीनों के लिए बंद कर दिये जाते है। और भगवान शिव की प्रतीकात्मक छवि को तुंगनाथ से 29 किलोमीटर दूर मकुमठ ले जाया जाता है जहाँ पर अगले छः महीने के लिए भगवान शिव की पूजा की जाती है।
तुंगनाथ का भूगोल – Geography of Tungnath in Hindi
देव भूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तुंगनाथ की समुद्रतल से ऊँचाई 3680 मीटर (12070 फ़ीट) है। तुंगनाथ उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव पंच केदार मंदिरों में सबसे ज्यादा ऊँचाई पर स्थित है। तुंगनाथ पर्वत श्रृंखला से ही मंदाकिनी और अलकनंदा जैसी पवित्र नदियों का निर्माण होता है। इन दोनों नदियों के अलावा तुंगनाथ पर्वत की चोटी यहाँ बहने वाले तीन झरनों का स्त्रोत भी मानी जाती है, जिनसे आकाशमणि नदी का निर्माण होता है। तुंगनाथ से लगभग 1.5 किलोमीटर की पैदल दूरी पर चंद्रशिला है।
(कहते है रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने चंद्रशिला आकर ध्यान लगाया था।) चंद्रशिला की समुद्रतल से ऊंचाई मात्र 3690 मीटर (12106 फ़ीट) है। चंद्रशिला के शिखर से हिमालय की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं केदारनाथ, बन्दरपूँछ, नंदादेवी, नीलकंठ, चौखम्बा और पंच चुली आदि के अविस्मरणीय दृश्य दिखाई देते है। तुंगनाथ के लिए आप अपनी यात्रा चोपता के कृषि क्षेत्रों से शुरू करते है, और अल्पाइन घास के मैदानों को पार करते हुए रोडोडेंड्रोन, कॉपिसेस के जंगलों को पार करते हुए तुंगनाथ के शिखर तक पहुंचते है।
तुंगनाथ के पास में गढ़वाल विश्वविद्यालय ने यहाँ एक वनस्पति स्टेशन भी बना रखा है। मंदिर के शिखर के पास पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आराम के लिए दुगालिबिट्टा में एक विश्रामगृह भी बनाया हुआ है। तुंगनाथ के नज़दीक केदारनाथ वन्य जीवन अभयारण्य भी है जिसे 1972 में स्थापित किया गया था। स्थानीय निवासी इसे केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण्य भी कहते है, क्योंकि की यहाँ पर लुप्तप्राय कस्तूरी मृग पाए जाते है। कस्तूरी मृग को बचाने के लिए और उनकी आबादी बढ़ाने के लिए चोपता के पास खारचुला खरक में कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र भी बनाया हुआ है।
तुंगनाथ की जलवायु – Climate of Tungnath in Hindi
अधिकांश ट्रेकर्स और पर्यटक तुंगनाथ गर्मियों के मौसम में आना पसंद करते है। क्योंकि गर्मियों के मौसम में भी तुंगनाथ में दिन का तापमान 16° डिग्री के आसपास रहता है। सर्दियों के मौसम में तुंगनाथ का तापमान माइनस में चला जाता है। और यहाँ पर सर्दियों के मौसम में बहुत भारी मात्रा में बर्फबारी होती है जिस वजह से तुंगनाथ पर पैदल पहुंचना बहुत मुश्किल हो जाता है। भारी बर्फबारी की वजह से 06 महीने तक तुंगनाथ मंदिर में दर्शन बंद रहते है।
तुंगनाथ ट्रेक – Tungnath Trek in Hindi
पंच केदार मंदिरों में तुंगनाथ का मार्ग ही सबसे छोटा मार्ग है। चोपता से शुरू होने वाली तुंगनाथ की पैदल यात्रा मात्र 03 किलोमीटर है। तुंगनाथ के लिए यात्रा ट्रेक श्रद्धालुओं और यात्रियों के लिए पत्थर से बनी हुई सड़क है जो की तुंगनाथ यात्रा को आसान बनाती है। तुंगनाथ के शिखर तक पहुंचने के लिए आपको 03 से 04 घंटे पैदल चलना पड़ता है।
पूरे ट्रेक के दौरान कहीं-कहीं खड़ी चढ़ाई आती है और कहीं पर एकदम समतल मार्ग आता है। तुंगनाथ ट्रेक के दौरान आपको हिमालय बहुत आकर्षक दृश्य दिखाई देते है। भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था रखने वाली यात्री ऋषिकेश से शुरू होने वाली 170 किलोमीटर लंबी पंच केदार यात्रा के समय तुंगनाथ महादेव के दर्शन करते है।
तीर्थयात्रियों के द्वारा पंच केदार की यात्रा गर्मियों के मौसम में शुरू की जाती है इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जाता है कि एक तो इस समय पहाड़ो में बर्फ नहीं गिरती और दूसरा गर्मियों के मौसम में यहाँ पर ना तो बहुत तेज ठंड होती है और ना ही यहाँ पर गर्मी पड़ती है। पंच केदार यात्रा अप्रैल महीने से शुरू होकर अक्टूबर महीने तक की जा सकती है। सर्दियों के मौसम में तुंगनाथ पर कई फ़ीट बर्फबारी हो जाती है इसलिए 06 महीने तक तुंगनाथ मंदिर के कपाट बंद रहते है।
चंद्रशिला ट्रेक – Chandrashila Trek in Hindi
चंद्रशिला ट्रेक हिमालय के सबसे आसान ट्रेक में से एक माना जाता है। चोपता से तुंगनाथ के दर्शन करने आने वाले लगभग सभी यात्री और श्रद्धालु तुंगनाथ के दर्शन करने के बाद चंद्रशिला का छोटा सा ट्रेक जरूर करते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंद्रशिला को रावण शिला भी कहा जाता है। चंद्रशिला ट्रेक के शिखर पर एक छोटा-से मंदिर भी बना हुआ है जिसे चंद्र शिला मंदिर के नाम से जाना जाता है।
स्थानीय निवासियों के अनुसार भगवान राम रावण का युद्ध मे वध करने के बाद ब्राम्हण हत्या के अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर आकर भगवान शिव की कठोर तपस्या करते है। ताकि भगवान शिव उन्हें ब्राम्हण हत्या के पाप से मुक्त कर सके। चंद्रशिला की पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
तुंगनाथ मंदिर में दर्शन का समय – Tunganath Temple Timings in Hindi
सुबह 06:00 बजे से लेकर शाम 07:00।
तुंगनाथ मंदिर में प्रवेश शुल्क – Tunganath Temple Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
तुंगनाथ घूमने का सबसे अच्छा समय – Best time to Visit Tungnath in Hindi
वैसे तो आप पूरे साल में कभी भी तुंगनाथ जा सकते है लेकिन नवंबर से लेकर अप्रैल महीने तक तुंगनाथ मंदिर के कपाट सर्दियों में होने वाली अत्यधिक बर्फबारी की वजह से बंद रहते है। सर्दियों के मौसम में तुंगनाथ मंदिर 6-7 फ़ीट बर्फ़ से ढक जाता है इस वजह से सर्दियों के मौसम में यहाँ पर कोई भी श्रद्धालु नहीं आते है। अगर आप तुंगनाथ के दर्शन करने के लिये यहाँ पर आ रहे है तो मई के पहले सप्ताह से लेकर अक्टूबर के अंतिम सप्ताह का समय सबसे अच्छा माना जाता है।
सर्दियों में तुंगनाथ ट्रेक – Tungnath Trek in Winter in Hindi
अगर आपको बर्फ़ में ट्रैकिंग करने का शौक है तो तुंगनाथ और चंद्रशिला से अच्छी जगह आपको कहीं नही मिलेगी। सर्दियों के मौसम में भारी बर्फबारी की वजह से चोपता से तुंगनाथ और चंद्रशिला का रास्ता बंद हो जाता है। सर्दियों में तुंगनाथ और चंद्रशिला आने वाले लगभग सभी ट्रेकर्स देवरिया ताल से तुंगनाथ और चंद्रशिला के लिए अपना ट्रेक शुरू करते है। तुंगनाथ और चंद्रशिला ट्रेक करने के लिए आप सर्दियों के मौसम किसी भी स्थानीय ट्रेकिंग टूर्स संस्था से संपर्क करके तुंगनाथ और चंद्रशिला का ट्रैक कर सकते है।
तुंगनाथ का प्रसिद्ध स्थानीय भोजन – Famous Food Of Tungnath In Hindi
अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से चोपता और तुंगनाथ दोनों जगह खाने के लिए बहुत ही कम विकल्प उपलब्ध है। लेकिन तुंगनाथ में यहाँ के स्थानीय निवासियों के द्वारा बनाया गेंहू और मंडुआ के आटे में दाल भरकर बनाया जाने वाला फिंगर मिल्ट पर्यटकों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। स्थानीय निवासी इस पकवान के साथ भांग की चटनी परोसते है।
भांग से बनी हुई चटनी खाने से पहले आपको इस बात का ध्यान जरूर रखना है कि आपके अन्दर भांग को पचाने की शक्ति होनी बहुत जरूरी है। अगर आप भांग को नहीं पचा सकते तो आपको भांग का नशा जरूर चढ़ेगा।
तुंगनाथ में कहाँ ठहरे – Hotels in Tungnath in Hindi
तुंगनाथ के आसपास कई छोटे-बड़े होटल्स, रिसोर्ट और कैंपिंग साइट बनी हुई है। अगर आप तुंगनाथ दर्शन करने के कार्यक्रम बना रहे है तो आपको चोपता के आसपास किसी होटल, रिसोर्ट या फिर कैंपिंग साइट को बुक करना होगा। तुंगनाथ के आसपास बने हुए श्रृष्टि लॉज होटल, मोक्ष होटल, गुरुकृपा पैलेस, अंशु होटल, द मीडोज चोपता रिसोर्ट एंड कैम्प और हॉलिडे पार्क होटल पर आप अपने लिए रूम या फिर कैम्प बूक करवा सकते है।
तुंगनाथ कैसे पहुँचे – How to Reach Tungnath in Hindi
हवाई मार्ग से तुंगनाथ कैसे पहुँचे – How to Reach Tungnath By Flight in Hindi
देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट तुंगनाथ का सबसे नजदीक एयरपोर्ट है। देहरादून एयरपोर्ट से तुंगनाथ की दूरी मात्र 223 किलोमीटर है। (Dehradun to Tungnath Distance) देहरादून से आप टैक्सी, कैब और बस की सहायता से तुंगनाथ बड़े आराम से पहुंच सकते है।
रेल मार्ग से तुंगनाथ कैसे पहुँचे – How to Reach Tungnath By Train in Hindi
ऋषिकेश रेल्वे स्टेशन तुंगनाथ के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से तुंगनाथ की दूरी मात्र 207 किलोमीटर है। (Rishikesh to Tungnath Distance) ऋषिकेश से आप चमोली-गोपेश्वर-चोपता के रास्ते से तुंगनाथ पहुँच सकते है। ऋषिकेश से आप बस, टैक्सी और कैब की सहायता से आप तुंगनाथ बड़ी आसानी से पहुँच सकते है।
सड़क मार्ग से तुंगनाथ कैसे पहुँचे – How to Reach Tungnath By Road in Hindi
आप अपने निजी वाहन की सहायता से रुद्रप्रयाग और उखीमठ के रास्ते से चोपता तक पहुँच सकते है उसके बाद आप 3.5 किलोमीटर पैदल चलकर तुंगनाथ तक पहुँच सकते है। ऋषिकेश से राष्ट्रीय राजमार्ग 58 से आपको रुद्रप्रयाग आना होगा है। रुद्रप्रयाग पहुँच कर आप राष्ट्रीय राजमार्ग 109 लेना होगा जो कि आपको उखीमठ तक लेकर जाएगा।
ऋषिकेश और देहरादून से चलने वाली उत्तराखंड परिवहन की बसों से आप रुद्रप्रयाग और उखीमठ पहुँच कर फिर यहाँ से टैक्सी और कैब की सहायता से आप चोपता तक पहुंच सकते है।
तुंगनाथ के पास नजदीकी पर्यटक स्थल – Near by Places to Visit Tungnath in Hindi
चोपता, चंद्रशिला, रुद्रप्रयाग, केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री।
(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए। में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )